Dev Deepawali 2020: आप भी हैं पटाखे चलाने के शौकिन, अवश्य पढ़ें ये कहानी

Saturday, Nov 28, 2020 - 08:46 AM (IST)

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Inspirational Story: देव दीपावली का त्यौहार नजदीक आ रहा था। राहुल हर बार की तरह इस बार भी अनोखे ढंग से देव दीपावली मनाने की योजना बना रहा था। उसका दोस्त था अंजन। जब राहुल ने अंजन से पटाखे खरीद कर लाने की बात की तो अंजन बोला, ‘‘तुम्हें नहीं मालूम कि इस बार पटाखे चलाने पर पाबंदी है।’’

राहुल एकदम बोला, ‘‘अरे डरपोक! पिछले वर्ष भी तो पाबंदी लगाई गई थी लेकिन कौन मानता है पाबंदियों को? याद है, मैं पिछले वर्ष पूरे पांच हजार रुपए के पटाखे खरीद कर लाया था। बोलो, चलें पटाखे खरीदने?’’

अंजन बोला, ‘‘नहीं यार, मेरा मन नहीं मानता। आपको तो पता ही है कि मेरे दादाजी आजकल बीमार रहते हैं। उन्हें सांस की भी तकलीफ है। मेरा मन नहीं मानता कि मैं पटाखे चलाऊं। पटाखों से निकलने वाली जहरीली गैसों का धुंआ कितना हानिकारक होता है। शायद अभी आपको पता नहीं है।’’

राहुल उसका मजाक उड़ाता हुआ बोला, ‘‘मुझे तुम्हारी शिक्षा की जरूरत नहीं और न ही मैं अपने फैसले को बदलने वाला हूं। तुमने नहीं खरीदने पटाखे तो न सही। मैं तो आज ही बाजार से खरीद कर लाऊंगा। बड़ा मजा आएगा जब पटाखे फोड़ूंगा, तुम देखते रहना।’’

अंजन को उसकी ऐसी बातें जरा भी अच्छी न लगीं। शाम को राहुल बाजार से अच्छे-खासे पटाखे खरीद लाया। वह अपने दोस्तों को कह रहा था कि इस बार आतिशबाजी आसमान की तरफ नहीं बल्कि किसी और अंदाज से चलाएगा। दोस्त सोचने लगे कि पता नहीं वह किस ढंग से आतिशबाजी चलाएगा।

आखिर दीपावली का दिन भी आ गया। राहुल के घर के सामने सड़क गुजरती थी। वह पटाखों से भरा बड़ा लिफाफा लेकर गली में आ गया। उसके दोस्त उसके पास खड़े देखने लगे।

पहले तो राहुल ने छोटे-छोटे पटाखे फोड़े। फिर बड़े पटाखों की बारी आई। पिछली बार तो उसने बोतल में आतिशबाजी खड़ी करके चलाई थीं लेकिन इस बार उसके पास कोई बोतल नहीं थी।

राहुल के पापा उसे कई बार आवाज दे चुके थे ताकि सारा परिवार मिलकर पूजा कर सके लेकिन वह बार-बार ‘अभी आया पापा’ कहकर फिर अगली आतिशबाजी चलाने में मशगूल हो जाता। अब राहुल एक-एक करके आतिशबाजी चलाने लगा। वह आतिशबाजी को सीधे रुख चलाने की बजाय सड़क पर लम्बा रखता और फिर मोमबत्ती से आग लगाता। आतिशबाजी आग पकड़ते ही सड़क पर तेजी से भागती नजर आती। दोस्त यह देखकर खुश होते और चिल्लाने लगते।

ज्यों-ज्यों उसके दोस्त शोर मचाते, त्यों-त्यों राहुल को और मजा आता। वह अपने आप को उनका हीरो समझ रहा था। उस द्वारा चलाई जा रही आतिशबाजियां दूर तक जातीं लेकिन कई रास्ते में ही ठुस्स हो जातीं। उसकी ऐसी हरकत का क्या अंजाम हो सकता है, वह इससे बिल्कुल लापरवाह था। वह दोस्तों को बहादुर बनने का नाटक दिखाता हुआ कभी-कभी हाथ पर अनार रखकर चला रहा था और कभी बम को हाथ में ही पकड़कर चला रहा था।

इस बार राहुल ने फिर आतिशबाजी जलाई। सामने एक मोड़ था। ज्यूं ही आतिशबाजी ने आग पकड़ी तो वह सड़क पर तेजी से चलती हुई सीधा एक व्यक्ति के स्कूटर से जा टकराई जो अभी-अभी मोड़ काटकर आ रहा था।
वह व्यक्ति एकदम संतुलन खो बैठा और स्कूटर नीचे गिर पड़ा।

देखते ही राहुल की जैसे सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई। उसे स्कूटर सवार व्यक्ति अपनी जान-पहचान वाला महसूस हुआ। जब वह भाग कर उस व्यक्ति के पास आया तो यह देखकर उसकी सांस फूल गई कि वह उसके चाचाजी थे जो बाजार से मिठाई के दो डिब्बे लेकर आ रहे थे।

जब तक राहुल ने उन्हें सम्भाला, तब तक सब कुछ चौपट हो चुका था। उनके सड़क पर गिरते ही मिठाई का एक डिब्बा सड़क पर गिरकर बिखर गया था। उसके चाचा जी अपनी बाजू पकड़ कर दर्द से कराहने लगे। तब तक अन्य बच्चे भी वहां आ गए थे।

चाचा जी खुद को सम्भालकर बोले, ‘‘ये आतिशबाजी किस ने चलाई थी?’’

एक बच्चे ने राहुल की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘अंकल जी, राहुल ने।’’
चाचाजी ने राहुल की तरफ देखा लेकिन कुछ न बोले।

एक बड़ी आयु का लड़का उनका स्कूटर घर ले आया। इतने में राहुल के पापा को भी इस घटना का पता चल चुका था। वह बाहर आए। राहुल मन ही मन थर-थर कांपने लगा। उसे डर था कि उसके पापा उसे मारेंगे। उन्होंने राहुल से कुछ न कहा लेकिन उनका राहुल की तरफ देखने का अंदाज कुछ अलग ही था।

राहुल की आंखों में आंसू आ गए। वह चाचाजी से क्षमा मांगता हुआ बोला, ‘‘चाचा जी, मुझे नहीं पता था कि मेरी यह शरारत इतनी महंगी पड़ सकती है। आप मुझे क्षमा कर दीजिए। भविष्य में कभी आपको ऐसी शिकायत का मौका नहीं दूंगा।’’

चाचाजी अब तक सम्भल चुके थे। वह बोले, ‘‘चलो। जो हुआ सो हुआ। बेटा, याद रखिए किसी भी त्यौहार में ऐसी शरारत नहीं करनी चाहिए जिसके कारण त्यौहार का मजा ही किरकिरा हो जाए। मुझे उम्मीद है, आगे से तुम ऐसा नहीं करोगे।’’

‘‘चाचाजी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं। आगे से ऐसा कुछ नहीं होगा।’’ राहुल ने कहा।

राहुल ने तुरंत पटाखे फोड़ने बंद कर दिए और घर आ गया। कुछ देर बाद सारा परिवार मिल-जुल कर पूजा कर रहा था।

Niyati Bhandari

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