Inspirational Story: पशुओं को आवारा कहने वाले अवश्य पढ़ें ये कथा

Friday, Sep 25, 2020 - 11:36 AM (IST)

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Inspirational Story: एक गांव में कालू नामक आदमी रहता था। वह बहुत गरीब था। मजदूरी करके जीवनयापन करता। परिवार के लिए दो वक्त की रोटी बड़ी मुश्किल से जुटा पाता था। एक दिन उसे किसी ने सलाह दी कि गाय पालो और दूध बेचने का काम करो। उसे भी यह काम पसंद आया। उसने सोचा, बहाने से गौ माता की सेवा भी हो जाएगी।


गाय खरीद लाया और खूब मन लगातार पति-पत्नी गाय की सेवा करने लगे। गाय का दूध बेचने अब वह शहर जाने लगा। सुबह चार बजे दूध लेकर शहर को चला जाता। अपनी आमदनी बढ़ने पर वह बहुत प्रसन्न रहने लगा। गाय ने कुछ महीनों बाद बछिया को जन्म दिया। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसे गौशाला खोलने की सूझी। दो-चार गाय किसी और से खरीद लाया। उसे दूध बेचने से खूब मुनाफा हो रहा था। गोबर खेतों में खाद के काम आती। देखते ही देखते उसके खेत भी सोना उगलने लगे। उसकी पत्नी मीरा तो बहुत खुश थी। एक दिन एक गाय ने बछिया की जगह बछड़े को जन्म दिया। वे बहुत दुखी हुए। उन दोनों ने सोचा, अब तो बैल हल जोतने के काम भी नहीं आते, ट्रैक्टर से ही खेत जुतवा लेते हैं।

कालू पत्नी से बोला, ‘‘क्यों न सुबह जल्दी बछड़े को साथ लेकर शहर में ही छोड़ दूं।’’


उसने ऐसा ही किया। कुछ दिनों बाद पुन: गाय ने बछड़े को ही जन्म दिया। दोनों बेहद दुखी हो गए। जो गाय की सेवा में ही लगे रहते थे, वही अब उन्हें मारने और गालियां देने लग पड़े। बछिया न देनी तो तुम्हारा क्या करना, ऐसा कहते। मनुष्य के स्वभाव में इस तरह परिवर्तन आना शर्मनाक है।

कालू पत्नी से बोला, ‘‘जिस तरह उस बैल बच्चे को शहर छोड़ा था, इसे भी ऐसे ही छोड़ूंगा। अगली सुबह उसने चुपचाप उसे भी शहर में छोड़ दिया।’’

कुछ समय तक यह सिलसिला इसी तरह चलता रहा। किसी को भी खबर नहीं लग पाती। साल बाद शहर की लम्बी गली में आठ-दस बैल सड़क पर घूमने लगे। कभी कूड़ा खाते तो कभी लोगों की गालियां। एक-दो साल बाद वे ताकतवर बन गए। खाना न मिलने पर बहुत परेशान होते। कभी सब्जी मंडी के चक्कर लगाते तो कभी लोगों के खेतों में पेट भरने का जुगाड़ करते। उन्हें अब पीटा भी जाता था।

कालू की न जाने कैसी ग्रह दशा बनी कि उसकी सभी गाएं बछड़े को ही जन्म देतीं। अब उसकी पत्नी भी परेशान हो गई। उससे बोली, यह गौ-पालन बंद कर देते हैं।

उधर भूखे बैल हर किसी को मारने को पड़ रहे थे।


अगली सुबह सड़क किनारे खड़े दो बैल रंभा-रंभा कर अपने साथियों को बुला रहे थे। कुछ ही क्षणों में बैलों का जमावड़ा लग गया। सड़क पर जा रहे वाहनों को परेशानी हो गई। कोई हॉर्न बजाकर बैलों को हटाने का प्रयास करता तो कोई निर्दयता से गाड़ी से ही धकिया देता।

एक बैल ने गुस्से से लाल होकर उस गाड़ी का शीशा भी तोड़ दिया। परिणामस्वरूप डंडे खाने पड़े।

सफेद रंग के बैल ने स्थिति संभाली और कनखियों से साथियों से अंधेरा होते ही इकट्ठा होने को कहा। सभी बैल समझ गए। पूंछ हिलाकर सहमति जताई।

शाम को अंधेरा होते ही पीपल के पेड़ के पास सभी इकट्ठे हो गए। जब आवागमन बंद हो गया तो सफेद रंग का बैल बोला, ‘‘साथियो बैल की जून सबसे बुरी है। हमें कुछ साल पहले तो पूजा जाता था पर आज परिस्थिति विपरीत है। हम सब भाई यहां पहुंचा दिए गए और भूखे रहने को विवश हैं तो केवल उस कालू और उस जैसे लोगों की वजह से। आज हम सब इन्हें सबक सिखाएंगे। सब्जी मंडी की सारी दुकानों को तहस-नहस कर देंगे। चलो मेरे साथ।’’

सभी बैल इकट्ठे होकर चल पड़े और अपने मन की भड़ास निकाल ली। कालू भी उस दिन देर से घर जा रहा था। आता हुआ दिखा तो उसे भी सींगों पर उठा कर पटक डाला। बड़ी मुश्किल से भागा। सुबह तक कालू एक पार्क के झूले पर बैठ जान बचाने का प्रयास करता रहा।

जनता त्राहि-त्राहि कर उठी।

एक बैल दूसरे से बोला, ‘‘कैसे हैं ये मानव। हम जानवरों को तंग करते समय कभी नहीं सोचते और हम कुछ करें तो हाय-तौबा मचा देते हैं। क्या जीने का अधिकार केवल इन्हें ही है? अपना फायदा हो तो ठीक, नहीं तो किसी पर दया नहीं दिखाते। ईश्वर इन्हें रास्ता दिखा।’’

एक बैल जो हृष्ट-पुष्ट था बोला, ‘‘ये मनुष्य हमें जब आवारा कहते हैं तो मन में बहुत दुख होता है। इनसे जरा पूछें, हमें आवारा कहते हो, आवारा तो आप हैं, हम बेजुबान तो बेसहारा हैं। काश! ईश्वर ने हमें भी जुबान दी होती पर अब और नहीं, यदि हमारे साथ यही निर्दयतापूर्वक व्यवहार होता रहा तो हम भी मानवों को चैन से नहीं रहने देंगे।’’

कालू को भी अपने किए पर पछतावा हो रहा था। उसने घर जाकर पत्नी को वचन दिया कि किसी भी लालच में आज से गलत काम नहीं करेंगे। हमें तो हमारे बैलों ने सबक सिखा दिया। अब हम औरों को जीवन में कोई गलत काम न करने की प्रेरणा देंगे।

Niyati Bhandari

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