हकीकत या फसाना: खुद के भविष्य को जानने का ये भी है 1 तरीका

Thursday, Jan 07, 2021 - 04:32 PM (IST)

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Inspirational Story: बहुत समय पहले की बात है। दूर देश में एक राजा राज करता था। राजा की एक रानी थी, एक राजकुमार था। सुंदर इतना कि प्रजा उसे यूनानी देवता कहती थी। रानी अपने बेटे को बेहद प्यार करती थी। उस राजकुमार का नाम था आर्थर। एक दिन आर्थर के मन में विचार आया कि दुनिया देखी जाए। रानी भला अपनी आंखों के तारे को दूर कैसे जाने देती लेकिन आर्थर ठान चुका था और किसी सैनिक या सामान भी साथ ले जाने को तैयार न हुआ। वह जितना सुंदर था, उतना साहसी भी था। बेटे से बिछुड़ते हुए रानी का दिल बैठा जा रहा था फिर भी उसने आर्थर को मुस्कुराते हुए विदा किया। चलते-चलते  उसके हाथ में तारों-सितारों से जड़ी एक थैली जरूर पकड़ा दी। भला आर्थर मां से वह थैली लेने से कैसे इंकार करता?


आर्थर चल पड़ा। वह आगे-आगे चलता ही रहा। राह में जैसा जो कुछ मिल जाता, खा-पी लेता। कहीं भी आराम कर लेता। रास्ते में उसे एक झोंपड़ी दिखाई पड़ी। उसमें रहती थी एक गरीब बुढिय़ा। बुढिय़ा बीमार थी। आर्थर ने उसकी देखभाल की तो बुढिय़ा ठीक हो गई। कहने लगी, ‘‘मेरा भी एक बेटा था। न जाने कहां चला गया। तू मेरे पास ही रह, मेरे बेटे की तरह।’’

आर्थर ने कहा, ‘‘मुझे तो बहुत दूर जाना है, मैं रुक नहीं सकता।’’ बुढिय़ा ने उसे ढेरों आशीष देकर विदा किया।


चलते-चलते वह एक जंगल में पहुंचा। वहां उसने एक महल देखा। महल ऐसा शानदार कि धरती पर किसी ने देखा-सुना न था। महल के द्वार पर पहरेदार नहीं थे। आर्थर भीतर गया। महल खूब सजा-धजा था पर कहीं कोई चहल-पहल नहीं थी। वहां सब कुछ पत्थर का था।

आर्थर कई कमरों में गया। किसी में तरह-तरह की पोशाकें, कहीं पलंग बिछे थे तो कहीं अलमारियां लगी थीं। आगे बढऩे पर एक रसोई घर था। उसमें खाने-पीने की सब्जियां फल और तरह-तरह के पेय थे। आर्थर भूखा तो था ही। उसने कुछ फल उठाकर खाने चाहे पर यह क्या? वे तो जैसे पत्थर के बने थे।

घूमते हुए सांझ घिर आई। सूना महल सांय-सांय करने लगा लेकिन वहां अंधेरा नहीं हुआ। रात में जिस तरह आकाशगंगा की रोशनी होती है ठीक वैसी ही रोशनी की झिलमिल वहां हो गई। आर्थर ने सोचा, ‘‘शायद रात में यहां कोई आए।’’


सवेरा हुआ। आर्थर की नींद टूटी। महल में कहीं कुछ न हुआ न कोई आया। दिन-पर-दिन बीतते जाते पर आर्थर जो कुछ सोचता, न होता। उसे घर की याद आती, रानी मां की याद सताती पर वह तो दुनिया देखने के लिए निकला था।

अचानक उसका ध्यान उस थैली की ओर गया जो मां ने दी थी। उसने थैली खोली। परंतु यह क्या? उसमें तो काले-भूरे रंग की मिट्टी थी। उसे लगा, ‘‘मां ने गलती से हीरे-जवाहरात की किसी थैली की जगह यह थैली दे दी होगी।’’

आर्थर ने थैली में से एक-एक मुट्ठी भरकर वह चूरा जहां-तहां छिड़क दिया। कुछ देर बाद वहां जैसे कोई भूचाल-सा आ गया। तभी वहां चांदी की तरह चमकता एक बड़ा-सा तारा रथ आ उतरा जिसमें से परी-सी कोई सुंदर स्त्री उतरी, वह इधर-उधर कुछ ढूंढने लगी।

आर्थर एक ओर छिप गया, यह देखने के लिए कि अब आगे क्या होता है? फिर तारे की एक पंखुड़ी और खुली, फिर तीसरी पंखुड़ी खुली। अब तीन परियां सभा भवन में खड़ी थीं। वे आईं तो पूरा महल जैसे नींद से जाग उठा। पहले सभी कुछ पत्थर का था, अब वैसा नहीं रहा।

वहां छोटे कद के कई नौकर भी आ गए। आर्थर समझ नहीं पाया कि वे कहां से और कब आ गए। बौने फुर्ती से काम करने लगे। कोई खाना तैयार करने लगा तो कोई सजावट करने लगा। घंटों बाद तीन परियां खाने की मेज पर बैठीं लेकिन बौनों ने मेज पर चार लोगों का खाना लगाया। परियों ने खाना शुरू नहीं किया, मानो किसी की प्रतीक्षा कर रही हों। देर हो गई तो उनमें से एक परी ने ताली बजाई, फिर प्यानो जैसी मधुर आवाज सुनाई दी। हम अपने मेहमान के बिना खाना कैसे खाएं?

आर्थर तो अभी तक छिपा हुआ था। वह बाहर नहीं आया। परी ने अपनी बात दोहराई। तीसरी बार उसने कहा, ‘‘हम चाहती हैं कि राजकुमार आर्थर भोजन में हमारा साथ दें।’’


अब तो आर्थर को झिझकते हुए उनके सामने आना ही पड़ा। आर्थर ने ऐसा स्वादिष्ट भोजन कभी नहीं खाया था। काफी दिन हो गए थे, आर्थर को स्वादिष्ट भोजन नहीं मिला था। उसने खूब डट कर भोजन किया, फिर एक परी ने आर्थर से पूछा, ‘‘तुमने हमें यहां किसलिए बुलाया है?’’

आर्थर बोला, ‘‘मैं तो महल का रहस्य जानना चाहता था परंतु मैंने आपको नहीं बुलाया।’’

परी बोली, ‘‘तुमने परी लोक की मिट्टी यहां फैलाई थी न, हमें आना ही पड़ा। बहुत पहले यह मिट्टी हमने तुम्हारी रानी मां को दी थी क्योंकि उन्होंने संकट में घिरी एक परी की मदद की थी। हमने उनसे कहा था कि जब वह दो मुट्ठी मिट्टी बिखेरेंगी, हम आ जाएंगी।’’

आर्थर तो उस महल का रहस्य जानने को उत्सुक था। परी ने उसे बताया, ‘‘यह महल कभी परियों ने बनवाया था। वह यहां आकर रात-रात भर नाचा करती थीं किन्तु किसी तरह यह रहस्य यहां के राजा को पता चल गया। एक रात उसकी सेना ने महल घेर लिया। परियां झटपट उड़ गईं पर एक परी कैद कर ली गई। कई बौने भी पकड़े गए। बाद में तुम्हारी माता ने हस्तक्षेप करके किसी प्रकार उस परी को राजा की कैद से मुक्त कराया। तब से हमने यहां आना ही छोड़ दिया।’’

धीरे-धीरे आर्थर की समझ में आ रहा था कि यह भव्य महल इतना सूना क्यों था? वह सोच में डूबा था। परियां एकटक उसे देख रही थीं। एक ने आर्थर से पूछा, ‘‘तुम्हारी कोई समस्या हो तो बताओ?’’

‘‘कोई समस्या नहीं है।’’ आर्थर ने झट से कह दिया।

‘‘है कैसे नहीं?’’ परियों ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी समस्या है कि तुम जल्दी से जल्दी दुनिया की सैर कैसे करो? उधर तुम्हारी मां परेशान है। जब से तुम यात्रा पर निकले हो हर समय तुम्हारी ही चिंता में डूबी रहती हैं।’’

आर्थर की आंखों के सामने मां का उदास चेहरा घूम गया। वह मां से तुरंत मिलने को बेचैन हो उठा लेकिन फिर उसने सोचा कि यदि वह अभी वापस चल दिया तो फिर दुनिया की सैर कैसे कर पाएगा? परियों ने जैसे उसके मन की उलझन समझ ली।

एक परी ने कहा ‘‘आर्थर, तुमने परीलोक की मिट्टी छूकर हमें बुलाया है इसलिए तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। आओ इस तारा रथ में बैठ जाओ जिससे तुम बहुत जल्दी दुनिया देख लोगे। यात्रा के बाद मां के पास चले जाना।’’

आर्थर कृतज्ञता से भर उठा। वह तारा रथ में जा बैठा जो आकाश में उडऩे लगा। उसके झरोखों से उसे एक से बढ़कर एक अनोखे दृश्य दिखाई दे रहे थे। समुद्र पार करके नए-नए देशों, वनों और पर्वतों को लांघता तारा रथ उड़ा जा रहा था। तारा रथ में बैठकर आर्थर ने बहुत जल्दी ही पूरी दुनिया देख ली।

एक शाम उसे कुछ परिचित आवाजें सुनाई पड़ीं जिन्हें वह खूब पहचानता था। तभी तारा रथ धरती पर आ उतरा और आर्थर रथ से बाहर निकला। तारा रथ परी महल के पास नहीं उसके अपने नगर में उतरा था। पास ही मंत्री और दरबारी खड़े थे। आर्थर को देख कर वे सब बहुत खुश हुए। पूछने पर उन्होंने कहा, ‘‘कोई अनोखा संदेश वाहक कह गया था कि राजकुमार बस लौटने ही वाले हैं।’’

आर्थर सब समझ गया। परियों ने ही उसकी खबर करा दी होगी। आर्थर के लौट आने का समाचार पूरे नगर में फैल गया। वह मां से मिलने के लिए महल की ओर चला तो उसने तारा रथ को आकाश में उड़कर दूर जाते हुए देखा। सब हैरान थे कि आर्थर इतनी जल्दी कैसे लौट आया। मां ने पूछा तो आर्थर बोला, ‘‘मां! यह सब तुमने किया। तुम्हारी दी हुई मिट्टी का ही चमत्कार है कि मैंने कुछ दिन में ही पूरी दुनिया घूम ली।’’

आर्थर की मां हंस पड़ी। उन्हें मालूम था कि यह चमत्कार किसने किया होगा।

शिक्षा : उपकार का प्रतिफल हमेशा सुख कारक ही मिलता है। अत: हम सबको सदैव उपकार के लिए तत्पर रहना चाहिए।

(राजा पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित ‘परियों की कहानियां’ से साभार)

 

 

Niyati Bhandari

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