Inspirational Context: आप भी बनना चाहते हैं महान तो Follow करें ये Rules

Sunday, Nov 06, 2022 - 08:38 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Inspirational Context: हृदय के द्वार बड़ी आसानी से छोटी-छोटी कुंजियों से खुल जाएंगे, उनमें से एक कुंजी है ‘धन्यवाद’ कहना और दूसरी ‘कृपया’ कहना। तात्पर्य यह है कि व्यक्ति अपनी शालीनता, विनम्रता, सरलता का परिचय इन उद्गारों से दे सकता है। विनम्रता और कुलीनता किसी भी व्यक्ति के शृंगार के लिए नितांत आवश्यक है। किसी भी महान व्यक्ति के लिए इससे बड़ा कोई अन्य सद्गुण नहीं हो सकता।

1100  रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें

इस विषय में भारतीय और पाश्चात्य सभी मनीषियों ने इसकी प्रशंसा मुक्त कंठ से की है - ‘विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्।’

अत: मानव जीवन के जितने सद्गुण हैं, मनुष्यता के जो भी तत्व हैं, उनका ठोस आधार एकमात्र विनम्रता है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने जहां ‘बरवहिं जलद् भूमि निअराएं, जथा नवहिं बुध विद्या पाएं’  लिख कर विद्या को विनम्रता का मूल कारण माना, वहीं वह तो विनम्रता के बारे में यहां तक लिख गए कि जिसके मुंह से धोखे से भी ‘राम नाम’ निकले, उसके पग की जूती मेरे शरीर के चमड़े से बने।

अपनी लघुता के कारण ही चींटी शक्कर लेकर चलती है और हाथी सिर पर धूल लिए फिरता है। सरलता के परिप्रेक्ष्य में मनुष्य स्वयं शांति का अनुभव करता है और व्यवहार से दूसरों को भी शांति मिलती है अर्थात अहंकार को नष्ट किए बिना विनम्रता नहीं आ सकती।
उद्धेरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसाद येत।
आत्मैव ह्मात्मनो बंधुरात्मैव रिपुरात्मन:॥

अर्थात स्वयं से स्वयं का उद्धार करना चाहिए, पतन नहीं। स्वयं ही स्वयं का मित्र है और स्वयं ही शत्रु। अत: अपने स्थान पर ठीक हो जाएं तो आप श्रेष्ठ बन जाएंगे। परोपकारी जीव सदा विनम्र, शीलवान व सरल होता है।

वृक्ष फलों के भार से झुक जाते हैं, सत्पुरुष समृद्धि प्राप्त कर परम विनीत बन जाते हैं। यूं भी जो व्यक्ति विनम्र तथा सरल होते हैं, निश्चय ही प्रभु उनका मार्गदर्शन करते हैं।

आर्थर हैल्प्स ने लिखा है, ‘‘विनम्रता मानव के कितने ही कष्टों की अचूक महाऔषधि है। अभिमान यदि रात्रि का अंधकार है तो विनम्रता   और सहजता दिन का उज्ज्वल प्रकाश।’’

अत: इन क्षणों में हम महत्ता के अधिक निकट होते हैं। सद्गुण और विद्या स्वर्ण के समान है, यदि इन्हें रगड़कर चमकाया न जाए तो वे अपना सौंदर्य खो देंगे। तात्पर्य यह है कि यदि स्वर्ण के समान मूल्यवती विद्वता हमारे पास है तो हमारी विनम्रता उसमें सुगंध और चमक का कार्य करेगी। अपने से बड़ों के सम्मुख विनम्र होना हमारा कर्तव्य है। समान आयु वालों के सम्मुख विनम्र होना शिष्टाचार है। छोटों के प्रति विनम्र होना हमारी सुरक्षा का कवच है।

जहां अभिमान देव को दानव बना देता है, ठीक इसके विपरीत मानवता, सहजता, सरलता मानव को देवत्व की ओर ले जाती हैं। अर्थात विनम्रता विवेक की पहली और अंतिम सीढ़ी है। अत: शिष्टाचार भद्र आचरण का अंतिम और चरम पुष्प है। समाज में सर्वप्रथम अपेक्षा शिष्टाचार अथवा विनम्रता की होती है, तत्पश्चात विद्या व सद्गुण।

शास्त्र कथन है कि क्षमा रूपी खड्ग जिस हाथ में है, उसका दुर्जन क्या बिगाड़ सकते हैं। जब किसी से अपेक्षा ही नहीं तो दुख कैसा। संसार से कोई भी अपेक्षा करने का अर्थ है स्वयं को पराधीन बनाना।

जरा जीवन पर विचार कर देखें तो पता चलेगा कि उसमें न जाने कितने उतार-चढ़ाव हुए हैं, कितनी बार प्राणी हंसा है, कितनी बार रोया है। संसार के प्रवाह में बहते हुए प्राणी अक्सर चंचल बना रहता है, अब तक कोई ऐसा विश्राम स्थल नहीं मिला, जहां थोड़े समय के लिए शांति से स्थिर होकर थकान मिटा सके। थक कर जिसका सहारा लेते हैं, वह भी हलचल में है, सतत् उसी प्रवाह में बह रहा है।
सांसारिक थपेड़ों के अंतर्गत इंद्रियां व्याकुल हो जाती हैं, प्रतिकूल हालात में बुद्धि कोई निर्णय नहीं कर पाती। ऐसे समय में मानव मन असफलता को प्राप्त होता है।

तात्पर्य यह है कि हमें इहलोक और परलोक में सद्गति प्राप्त करने के लिए विनम्र, शिष्ट होना ही होगा क्योंकि यहां न तो भय है, न ही अहंकार। शिष्टाचार मानव का निर्माण करता है। विनम्रता और सहनशीलता एक ही गुण के दो नाम हैं।

मन, वाणी और शरीर तीनों की एकता होने पर संकल्प सिद्धि होती है। मन में जिसका संकल्प हो, वही बात वाणी से कही जाए और वही कर्म शरीर से किया जाए तो वह संकल्प किसी प्रकार असफल नहीं हो सकता।

प्रतिज्ञा और विचार द्वारा तो मानव स्वयं के क्रोध पर भी नियंत्रण प्राप्त कर सकता है, चित्त में कोई चिंतन न हो, इसी का नाम मौन है। इस प्रकार मानव महान बन सकता है। 

 (‘प्रभु प्रेम पुकार’ से साभार)

Niyati Bhandari

Advertising