Inspirational Concept: लक्ष्मी का रूप होती बेटियां, खुद करती हैं अपने भाग्य का निर्माण

Friday, Feb 19, 2021 - 01:32 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कुणाल और सूरज दोनों दोस्त थे। दोनों के पास बेटियां थीं। बेटा नहीं था। कुणाल अपनी दोनों बेटियों के साथ खुश था। सूरज की तीन बेटियां थीं लेकिन लड़के की चाहत थी। चौथी भी बेटी हो गई। सूरज बहुत निराश था। कुणाल बधाई देने आया। सूरज ने पूछा कि, ‘‘बेटी के जन्म से निराश क्यों हो? अगर ऐसा है तो बेटी मुझे दे दो। निराश मत हो। मैं इस बेटी को अपनी बेटियों से अधिक प्यार दूंगा।’’

कुणाल की पत्नी ने भी वही कह दिया। सूरज तैयार हो गया। आखिर मां की ममता भी अपने पति के आगे झुक गई। सूरज ने चुपचाप अपनी बेटी कुणाल को सौंप दी। वह खुशी-खुशी उसे लेकर चला आया। सूरज और उसकी पत्नी को मायूसी आ गई लेकिन दोनों चुप रहे। दो दिन गुजरे ही थे कि कुणाल का रुका हुआ धन मिल गया जिसकी उसे उम्मीद भी नहीं थी जिसे वह खो चुका था। कुणाल बहुत खुश हुआ कि मेरे घर लक्ष्मी देवी का रूप आ गई है। सूरज को इत्तेफाक से रात्रि में सपना आया कि मेरे घर से लक्ष्मी चली गई है। वह कुछ डर सा गया। सुबह उठा, अपनी पत्नी को बताया। पत्नी ने भी वही बात सुबह उठते हुए कही। दोनों निराश हो गए। हमने गलती की है। ममता जाग उठी।

सूरज अपनी पत्नी के साथ कुणाल के घर पहुंच गया। दोनों ने एक-दूसरे को हकीकत बताई। जहां कुणाल बेटी को पाकर खुश था वहीं सूरज बेटी को देकर निराश था। अब सूरज सोचने लगा कि कुणाल से बेटी वापस कैसे ले? शॄमदा महसूस कर रहा था। कुणाल उसके चेहरे से शॄमदगी को समझ गया। बेटी को लौटा दिया। वह खुशी-खुशी घर लौट आया। सूरज ने समझ लिया कि ‘‘बेटी लक्ष्मी का रूप होती है। अपने भाग्य को खुद बनाती है।’’
 

Jyoti

Advertising