भारतीय वास्तु शास्त्र की अवहेलना करने वाले उद्योगपति होते हैं Defaulter

Tuesday, Jun 07, 2022 - 11:02 AM (IST)

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Best Vastu Tips In The Workplace: पिछले दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में बताया है कि विलफुल डिफाल्टर्स यानी जान-बूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों की संख्या 31 मार्च 2019 को 2,017 थी, जो बढ़कर 31 मार्च, 2020 को 2,208 हो गई। इसके बाद 31 मार्च, 2021 तक ये आंकड़ा बढ़कर 2,494 पहुंच गया अर्थात पिछले तीन सालों के दौरान जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों की संख्या में 477 की वृद्धि हुई है। इसी प्रकार एक समय आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर के.सी. चक्रवर्ती ने कहा था, बैंकों का एनपीए उनके कुल कर्ज का 22 फीसदी है यानी हर चौथा कर्ज एनपीए है। इस तरह की खबरों की जानकारी हम सभी को प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से मिलती ही रहती है।

भारत में दो तरह के व्यापारी एवं उद्योगपति हैं- एक वह जो दिन दूनी और रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैं। जिनकी संख्या ऊंगलियों पर गिनी जा सकती है तथा दूसरे वह जो अपने कारोबार को चलाने के लिए पूरी क्षमता से प्रयास करने के बाद भी बुरी तरह से नाकाम होकर डिफॉल्टर हो जाते हैं। भारत में ऐसे लोगों की संख्या हमेशा ही बहुत ज्यादा रही है और वर्तमान में यह संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। जो उद्योगपति बहुत तरक्की कर रहे हैं, उनमें से अधिकतर केवल ऐसे कामों के कारण ही तरक्की कर पा रहे हैं, जिसमें उन्हें किसी भी उद्योग को लगाने, व्यापार करने या किसी भी प्रकार की सेवा प्रदान करने के लिए कई प्रकार की विशेष सुविधाएं एवं सहायता सरकार द्वारा मिलती है। उनके द्वारा दी गई सेवा या उत्पाद को खुले बाजार में किसी भी प्रकार की कोई प्रतिस्पर्धा का सामना भी नहीं करना पड़ता क्योंकि उनके मूल्य सरकार द्वारा तय किए जाते हैं जैसे इलेक्ट्रिसिटी, पेट्रोलियम प्रोडक्ट, रक्षा उत्पाद, एयरपोर्ट, शिपिंग यार्ड, रेल सेवा, मेट्रो सेवा इत्यादि की गतिविधियों को चलाना एवं इनकी देखरेख करना इत्यादि। इन विशेष सुविधाओं के बाद भी उद्योगपति एवं कारोबारी बड़ी संख्या में डिफाल्टर होते रहते हैं।

लोगों को अधिक से अधिक रोजगार मिले इस कारण सरकार भी कारोबारियों को विशेष सुविधाएं एवं रियायतें बढ़ी सहजता से प्रदान कर देती है। सरकार की इस कमजोरी का फायदा उठाते हुए कारोबारी सरकार से जिस प्रकार की सुविधाएं मांगते हैं उसकी बानगी देखिए-

‘‘इंदौर में प्रस्तावित धीरूभाई अंबानी डिफेंस पार्क के लिए अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप (एडीएजी) ने 25 साल तक सभी तरह के टैक्स में छूट मांगी है। रिलांयस ने यह शर्त भी रखी है कि स्पेशल इकॉनोमिक जोन (सेज) की सहुलियतें भी एग्रीमेंट के 60 दिन के भीतर होनी चाहिए। रिलायंस समूह डिफेंस पार्क (रक्षा क्षेत्र में निवेश) के साथ इलेक्ट्रॉनिक्स (सेमी कंडक्टर फैब) और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी निवेश करने की इच्छुक है। पार्क के लिए इंदौर में प्रस्तावित जगह का मुआयना करने के बाद भोपाल आए रिलांयस समूह के प्रतिनिधियों की ओर से कहा गया कि वे निवेश कर सकते हैं लेकिन पानी व बिजली के साथ सभी टैक्स मसलन रोड़ टैक्स, एंट्री टैक्स, स्टाम्प ड्यूटी आदि में 25 साल तक छूट मिलनी चाहिए। रिलांयस समूह ने म.प्र. के साथ-साथ कुछ अन्य राज्यों में भी प्रपोजल दिए है। सरकार ने सभी शर्तों को मान्य भी कर लिया था।

दूसरी ओर वह उद्योगपति भी हैं जिन्हें सरकार से कुछ सुविधाएं तो मिल जाती हैं, परन्तु उन्हें अपने उत्पाद को बेचने के लिए ओपन मार्केट में उतरना पड़ता है, जहां जबरदस्त प्रतिस्पर्धा रहती है। देखने में आया है कि इनमें से लगभग 80 प्रतिशत कारोबारी डिफॉल्टर होते हैं तथा मुश्किल से लगभग 20 प्रतिशत लोग सफलता प्राप्त कर पाते हैं। विशेषतौर पर यह बात उद्योगों में ज्यादा देखने को मिलती है।

प्रतिस्पर्धा के कारण तो भारत में रिटेल कारोबार में दिग्गज माने जाने वाले कार्पोरेट तक सफल नहीं हैं। इसलिए एक ओर रिलांयस अपने रिटेल काउंटर कम कर चुका है, वहीं बिड़ला ने अपने कई ‘‘मोर सुपर बाजार’’ घटा दिए हैं, वॉलमार्ट और भारती का करार भी टूट चुका है।

नाकाम उद्योगपतियों को मोटिवेशन देने के लिए दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री बताते हैं कि इतिहास के अनुसार सर्वश्रेष्ठ बिज़नेसमैन भी बहुत-सी नाकामियों से गुजरकर सफल हुए हैं। वे चाहे प्रायः उनकी चर्चा न करें, लेकिन इन्हीं नाकामियों ने उन्हें ऐसे सबक सिखाए होते हैं, जिनके बूते पर वे अंततः सफल हुए होते हैं। हम जिन नाकामियों को इतना नापसंद करते हैं, उन्हीं की नीवं पर चमचमाते साम्राजयों का निर्माण होता है।

सच तो यह है कि, यदि नाकाम कारोबारी बुद्धिमान, समझदार और दूरदर्शी हो तो उनको कामयाबी पहली या दूसरी कोशिश में ही मिल जानी चाहिए। कई कारोबार में नाकाम होकर बड़ी मात्रा में पैसा बर्बाद करने के बाद यदि किसी कारोबारी को एक काम में कामयाबी मिल जाती है तो उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए जाते हैं तो क्या यह सही है? सच तो यह है कि इन्होनें अपनी नाकामियों की असली वजह पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। देते भी क्यों क्योंकि इन्हें न तो सरकार से मिली सुविधा और न ही बैंकों से मिले लोन को चुकता करने की फ्रिक थी। यदि फ्रिक होती तो अपने नाकाम होने के कारणों पर गम्भीरता से ध्यान देते।

इनकी नाकामियों की एकमात्र वजह यह है कि इन्होंने भारतीय वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों की अवहेलना की। जो 80 प्रतिशत कारोबारी डिफॉल्टर होते हैं उनके व्यवसायिक स्थलों में वास्तुदोष जरूर देखने को मिलेगें। लेकिन जो 20 प्रतिशत सफल कारोबारी हैं उनके व्यवसायिक स्थल सहजभाव से वास्तुनुकूल होते हैं। सौभाग्य से पूरे विश्व में केवल हमारे ऋषि-मुनियों ने ही हजारों वर्षों तक अनुसंधान करके एक ऐसे शास्त्र की रचना की जिसके सिद्धांतों का पालन करने से आदमी सुकून के साथ सुखद, सरल और समृद्धिपूर्ण जीवन यापन कर सकता है। बिना नाकाम हुए भी कोई भी कारोबारी किसी भी प्रकार के कारोबार में पहले प्रयास में ही निश्चित सफलता प्राप्त कर सकता है।

सरकार को भी चाहिए कि वह इण्स्ट्रीयल पार्क या स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन (सेज) बनाते समय वास्तुनुकूल स्थानों का चयन करें। यदि किसी उद्योगपति का कारोबार घाटे में चल रहा है तो उसे चाहिए कि अपने कार्य स्थल के वास्तुदोषों को दूर करवाए। कोई नया करोबार शुरू करने के पहले वास्तुनुकूल स्थान का चयन करने के बाद ही निर्माण कार्य शुरू करे और इसमें भी वास्तु के सिद्धांतों का पालन करें तो निश्चित ही करोबार में अच्छा मुनाफा होने के साथ-साथ सफलता प्राप्त होगी, यह तय है।

वास्तु गुरू कुलदीप सलूजा
thenebula2001@gmail.com

 

Niyati Bhandari

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