यहां विराजित हैं शनिदेव, ढैय्या और साढ़ेसाती से मिलती है मुक्ति

Friday, Nov 11, 2016 - 10:35 AM (IST)

जूनी इंदौर में शनिदेव का प्राचीन व चमत्कारिक मंदिर स्थित है। यह मंदिर हिंदुस्तान का ही नहीं, दुनिया का सबसे प्राचीन शनि मंदिर है। माना जाता है कि यहां शनिदेव स्वयं पधारे थे। अन्य शनि मंदिरों में शनिदेव की प्रतिमा काले पत्थर की बनी होती है लेकिन यहां शनिदेव का सिंदूरी श्रृंगार किया जाता है। इस मंदिर में शनिदेव को प्रतिदिन आकर्षक पोशाक पहनाई जाती है अौर उनका श्रृंगार किया जाता है। यहां शनिदेव की पूजा तेल से नहीं अपितु दूध और जल से होती है। 

 

सुबह सबसे पहले शनिदेव का दूध अौर जल से स्नान करवाकर उनका सिंदूर से श्रृंगार किया जाता है। उसके पश्चात उन्हें फूलों, शाही पोशाकों से सजाया जाता है। कहा जाता है कि इस पूरी प्रक्रिया में 6 घंटे का समय लग जाता है। मंदिर में अन्य मंदिरों से अलग आरती से पूर्व शहनाई बजाई जाती है जो आरती पूरी होने तक लगातार बजती है। कहा जाता है कि शनिदेव की प्रतिमा स्वयंभू हैं। ये प्रतिमा कई सौ वर्ष पूर्व यहां स्थापित की गई थी। यहां शनिदेव के आगे शीश झुकाकर मन्नत मांगने से कामनाएं पूर्ण हो जाती है। कहा जाता है कि इस मंदिर का इतिहास करीब 700 वर्ष पुराना है। 

 

एक कथा के अनुसार ये इलाका जंगलों से घिरा हुआ था। यहां रहने वाले एक अंधे धोबी को सपने में शनिदेव ने कहा था कि जिस पत्थर पर वे प्रतिदिन कपड़े धोते हैं उसमें उनका वास है। धोबी ने कहा कि वह तो अंधा है उसे कैसे पता चलेगा। अगले दिन जब धोबी जागा तो उसकी आंखों की रोशनी आ गई थी। उसके पश्चात धोबी ने उस पत्थर को निकलवाकर शनि भगवान की प्रतिमा स्थापित की। स्थानीय लोगों का कहना है कि एक दिन प्रतिमा अपने आप उसी जगह पर विराजित हो गई जिस स्थान से प्रतिमा खोदकर निकलवाई गई थी। तब से वहीं पर पूजा अर्चना होने लगी।

 

यहां दूर दराज के इलाकों से भी लोग शनिदेव के दर्शनों हेतु आते हैं। यहां आकर पूजा अौर अनुष्ठान करवाते हैं। कहा जाता है कि यहां आने से व्यक्ति की प्रत्येक मनोकामना पूर्ण हो जाती है अौर शनि के प्रकोपों से भी मुक्ति मिल जाती है। वैसे तो शनिदेव की पूजा से हर प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है लेकिन इस मंदिर में शनिदेव के दर्शनों से ढैय्या और साढ़ेसाती से पीड़ित जातकों को विशेष रूप से फायदा होता है।
 

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