जिसके हृदय में प्रभु भक्ति नहीं वहीं मनुष्य है नीच

Wednesday, Mar 07, 2018 - 02:49 PM (IST)

सारे संसार में परमात्मा एक है और उसी ने सब प्राणियों को पैदा किया है और सारी सृष्टि में व्याप्त है। सब  प्राणी एक ही नूर से उत्पन्न हुए हैं और सबमें उसी प्रभु का नूर मौजूद है। जब जीव एक ही नूर से पैदा हुए हैं तो उनमें कौन अच्छा है और कौन बुरा है।


अवलि अल्ला नूर उपाइया कुदरति के सभ बंदे एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे।


संतों का मार्ग आंतरिक अनुभव का मार्ग है पढ़ने लिखने का नहीं भक्ति का मार्ग है। सोच-विचार का नहीं प्रेम का मार्ग है। पोथी पढ़-पढ़ कर जग मर गया पर कोई पंडित नहीं हुआ जो प्रेम का अढ़ाई अक्षर पढ़ लेता है वही पंडित होता है।


पोथी पढि़-पढि़ जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।


कबीर साहब कहते हैं कि ईश्वर प्रेमी को ढूंढता फिर रहा हूं परंतु मुझे सच्चा ईश्वर प्रेमी कोई नहीं मिला। जब एक ईश्वर प्रेमी दूसरे ईश्वर प्रेमी से मिल जाता है तो विषय-वासनाओं रूपी सम्पूर्ण सांसारिक विष प्रेम रूपी अमृत बन जाता है।


प्रेमी ढूंढत मैं फिरौं, प्रेमी मिलै न कोय, प्रेमी कौ प्रेमी मिलै तब विष से अमृत होय।


कबीर साहब ने जात-पात को बढ़ावा नहीं दिया और कहा कि प्रभु की कोई जात नहीं है तो उसको भक्तों और प्रेमियों की क्या जात हो सकती है। कबीर साहब संसार को उपदेश देते हैं मनुष्य को जात-पात के कीचड़ में नहीं डूबना चाहिए।


जात नहीं जगदीश की, हरि जन कि कहा होय, जात-पात के कीच में डूब मरो मत कोय।


कबीर साहब ने अपने जीवन में किसी भी व्यक्ति को नीचा या ऊंचा नहीं माना। उनके अनुसार अगर कोई मनुष्य नीचा है तो वही जिसके हृदय में प्रभु भक्ति नहीं, ‘कहै कबीर मधिम नहीं कोई सो मधिम जा मुखि राम न होई।’’


कबीर साहब ने सारे संसार को आपसी प्रेम, भाईचारा और प्रभु भक्ति का संदेश दिया, इंसानियत व मानवता की भलाई और सत्य की राह पर चलने की प्रेरणा दी।

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