ससुराल की कैद से हैं परेशान, रातों-रात बदलें अपना अस्तित्व

Wednesday, Dec 07, 2016 - 12:08 PM (IST)

एक महिला के पति सेना में थे, जिनकी नियुक्ति रेगिस्तानी इलाके में सैन्य प्रशिक्षण कैंप में हो गई। उसे भी अपने पति के साथ वहां रहने जाना पड़ा। उसे धूल कतई पसंद नहीं थी और इस वजह से वह वहां पर बेहद दुखी और परेशान रहती। उसके पति युद्धाभ्यास के लिए चले जाते और उसे वहां छोटे-से घर में अकेले रहना पड़ता। वहां जबरदस्त गर्मी थी और तापमान अमूमन 45-50 डिग्री सैल्सियस तक रहता। वहां लगातार लू चलती रहती। 


शहरी माहौल में पली-पढ़ी और कॉन्वैंट में शिक्षित महिला को वहां के स्थानीय निवासियों का साथ भी पसंद नहीं था। वह उन्हें पिछड़ा और गंवार समझती। एक दिन तंग आकर उसने अपने माता-पिता को खत लिखा कि वह ये सब और बर्दाश्त नहीं कर सकती और अपना सब कुछ छोड़कर मायके आना चाहती है। यहां रहने से तो जेल में रहना अच्छा है।


इसके जवाब में उसके जेलर पिता ने उसे 2 पंक्तियां लिख भेजीं, जिन्हें पढऩे के बाद उसके जीवन की दिशा ही बदल गई। उसके पिता ने लिखा था- ‘‘दो कैदियों ने एक साथ जेल के बाहर देखा। पर एक ने आसमान में तारे देखे, जबकि दूसरे ने जमीन में कीचड़।’’ 


यह पढ़कर महिला सोच में पड़ गई। उसे लगा कि यहां की दुनिया इतनी बुरी भी नहीं है। उसने स्थानीय निवासियों से मेलजोल बढ़ाना शुरू किया। वह उनके बर्तन बनाने और बुनाई इत्यादि के काम में दिलचस्पी लेने लगी। 


इसके नतीजतन उसे स्थानीय लोग अपनी कला के उत्कृष्ट व प्रिय नमूने भेंट देने लगे, जो वे अन्यथा किसी को देते या बेचते नहीं थे। अब वह रेगिस्तान में उगते और डूबते सूरज का बड़े मनोयोग से नजारा लेती।  उसमें यह विचित्र परिवर्तन कैसे हुआ? वही रेगिस्तान था और वहां रहने वाले लोग भी वही थे। कुछ भी नहीं बदला था। सिर्फ उस महिला का मन बदल गया था। जो चीजें पहले उसे कष्टकारी लगती थीं, उन्हें उसने अत्यंत रोचक और रोमांचकारी अनुभवों में बदल लिया था। इस तरह वह उसी पुरानी दुनिया में अपने नए नजरिए के साथ खुश रहने लगी। उसने स्वनिर्मित कारागृह से बाहर झांककर तारों को निहारा और अपनी दुनिया रोशन कर ली।

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