Kundli Tv- जानें, क्यों किया जाता है श्राद्ध

Saturday, Sep 29, 2018 - 09:22 AM (IST)

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जो मनुष्य इस धरती पर जन्म लेता है उस पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं देव ऋण, ऋषि ऋण  तथा पितृ ऋण। पितृ पक्ष में इन 16 दिनों में हम श्राद्ध कर्म में शामिल होकर उक्त तीनों ऋणों से मुक्त हो सकते हैं। सच्चे मन से किए संकल्प की पूर्ति होने पर पितरों को आत्म शांति मिलती है तथा वे हम पर आशीर्वाद की वर्षा करते हैं। हमारे शास्त्रों-पुराणों एवं गीता में 84 लाख योनियों का वर्णन मिलता है जबकि इन पितरों की आयु 1000 वर्ष मानी जाती है। पितरों के रुष्ट होने पर देवता भी समीप नहीं आते। अगर पितर न होते तो हम कहां से आते? गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है: 

श्लोक-
तस्मात शास्त्र प्रमाण ते कार्याकार्य व्यवस्थितों।
ज्ञात्वो शास्त्र विधानोक्तं कर्म कर्तुदमर्हाहसि।।


अर्थात-
जब अनेक विधियों से पितरों की शांति हो जाती है तो व्यक्ति को प्रसन्नता और शांति मिलती है।


हर मनुष्य के अंदर अपने पूर्वजों (पितरों) के गुण योग (अंश) होते हैं। हमारे पूर्वजों में प्रथम शरीर निर्माता पिता के 26 गुण, फिर उसके पिता (दादा) के 16 गुण (अंश) उसके पिता (पड़दादा) के गुण और अंतिम 8वें दादा का एक गुण (अंश) शरीर में विद्यमान होता है। जब पिता के शुक्राणुओं द्वारा जीव माता के गर्भ में जाता है तो उसके 84 अंश (गुण) होते हैं जिनमें 26 गुण (अंश) तो शुक्रधारी पुरुष के स्वयं के भोजनादि द्वारा उपजते हैं। शेष 58 पितरों द्वारा प्राप्त होते हैं। यदि पूर्वज न होते तो हमारा अस्तित्व ही न होता।


स्वर्णदान, रजतदान से अन्नदान श्रेष्ठ कहा गया है। जो पुरुष अपने पित्तरों को श्रद्धापूर्वक पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं उनको इसी जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि अमावस्या के दिन पितृगण वायु रूप में घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। 
वे अपने परिजनों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। सूर्यास्त के बाद वे निराश होकर लौट जाते हैं। वे इतने दयालु होते हैं कि आपके पास श्राद्ध कर्म करने के लिए कुछ भी न हो तो दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके आंसू बहा देने से ही वे तृप्त हो जाते हैं। एक थाली पितरों के लिए, एक गाय, एक कौवे और कुत्ते के लिए निकालनी चाहिए ताकि हमारे पूर्वज किसी भी रूप में प्रसन्न होकर आशीष दें और कार्य सफल हों।
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Niyati Bhandari

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