धर्म ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है

Sunday, Oct 06, 2019 - 05:12 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
पिता की उंगली पकड़ कर मेले में घूमते हुए वह बालक तरह-तरह की चीजों, खिलौनों से सजी दुकानों की चमक-दमक देखकर खुशी से फूला नहीं समा रहा था। तभी भीड़ का एक रेला आया और बालक से पिता की उंगली छूट गई। बालक घबरा कर रोता हुआ मेले में अपने पिता को ढूंढने की कोशिश कर रहा था। पिता की उंगली छूटने मात्र से वह दुखी हो रहा था। मेले की रौनक और साज-सामान जिन्हें देख वह पहले खुश हो रहा था, अब अच्छे नहीं लग रहे थे।

संसार के मेले में हमारी स्थिति भी ऐसी ही है। सम्पूर्ण वैभव होते हुए भी यदि धर्म की पकड़ छूट गई, परम पिता परमात्मा से अलग हो गए तो सब कुछ होते हुए भी आनंद अनुभव नहीं कर सकते।

धर्म की जीवन में सकारात्मक भूमिका है। धर्म ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है। हमारी नकारात्मक प्रवृत्तियों पर रोक लगा कर हमें दूसरों के प्रति संवेदनशील बनाता है। धर्म न हो तो जीवन सुविधापूर्ण भरण-पोषण, व्यापार-व्यवसाय तक सीमित हो मात्र एक जरूरत बन कर रह जाएगा जबकि वास्तविक जीवन केवल जरूरत के अतिरिक्त बहुत कुछ और भी है।

भूख मिटाने के लिए गेहूं जरूरी है, फिर गुलाब की क्या जरूरत है? जीना है तो रोजी-रोटी जरूरी है लेकिन जीवन में गेहूं हो और गुलाब न हो तो ठीक चलेगा क्या? रोटी-रोजी तक ही सीमित हो गए तो जीवन के भीतर सुवास कहां से आएगी, सौंदर्य कैसे पैदा होगा? वैसे आज की सोच के हिसाब से जरूरत तो धर्म की भी नहीं, परमात्मा की भी नहीं है। इन दोनों के बिना काम ज्यादा सुविधा से चलता है क्योंकि फिर बेईमानी करो, चोरी करो तो कोई अड़चन नहीं, झूठ बोलो तो कोई भय नहीं। हमारे पास होगा केवल सांसारिक सुविधाओं का आडम्बर। बचेगी केवल धन-आभूषण से भरी तिजोरी, बैंक में जमा पूंजी। उनमें वृद्धि करने की चिन्ता।

Jyoti

Advertising