Importance of music: दिलों और सरहदों को जोड़ता है ‘संगीत’

Saturday, Jul 22, 2023 - 07:57 AM (IST)

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Importance of sangeet in india: हमारे देश की रंग-बिरंगी संस्कृति के मौज-मस्ती, प्रेम, विरह, भक्ति भाव, देशभक्ति, विवाह, त्यौहार और प्रकृति के सौंदर्य रस से आप्लावित गीतों का संसार हमारी अपनी समृद्ध धरोहर हैं। गीत-संगीत हमारी आत्मा में बसा है। अभिव्यक्ति का सरल परंतु प्रभावी माध्य्म है। दिल के तारों को झंकृत करने की अद्भुत शक्ति हैं संगीत में।


 
‘मेरे तो गिधरगोपाल दूजा न कोई’ जैसे भजन मंदिरों में घंटियों की ध्वनि के साथ आरतियों के स्वर, कृष्ण की रासलीला, रामायण के कथा गीत, फिल्मी गायकों के भजन श्रोताओं को भक्ति भाव की आनन्द सरिता में गोते लगाने दे कर भक्ति भाव का संचार करते हैं। ‘ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भरलो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी’ जैसे देश भक्ति भाव के गीत दिलों में देशभक्ति का जज्बा जगाते हैं।
     
‘रंग बरसे रे भीगी चुनरिया रंग बरसे’ जैसे होली गीत होली की मस्ती में डुबो देते हैं। ‘आज मेरे यार की शादी है लगता है जैसे सारे संसार की शादी है’ जैसे विवाह गीत थिरकने को मजबूर कर देते हैं। ‘यूं ही तुम मुझ से बात करती हो या कोई प्यार का इरादा है’ जैसे मस्ती और प्यार भरे गीत दिलों में प्यार का अहसास भर देते हैं।
 
‘संदेशे आते हैं बड़ा तड़पाते हैं’ जैसे जुदाई गीत विरह-वेदना को गहराई तक छू जाते हैं। ‘हम तुम एक कमरे में बंद हों और चाबी खो जाए’ जैसे गीत किशोर प्रेमियों की दिल की धड़कन बन जाते हैं। ‘है अगर दुश्मन जमाना, हम नहीं हम नहीं’ जैसी कव्वालियां अलग ही आनन्द प्रदान करती हैं।

‘आया सावन झुमके’ जैसे गीत मौसम की पुरवाई का अंदाज बयां करते हैं। ‘ठारे रहियो ओ बांके यार रे ठारे रहियो’ जैसे गीत शास्त्रीय संगीत की रसधारा में बहा ले जाते हैं। ‘ए मेरी जोहरा जफी तू अभी तक है हंसी और मैं जवां, तुझ पे कुर्बान मेरी जान’ जैसे गीत बुजुर्गों में भी जवानी का जोश भर देते हैं। ‘म्हारी घूमर छै नखराली’ जैसे पर्व गीत आंचलिक संस्कृति की अपनी पहचान हैं।

सेहतमंद रखता है संगीत
अवसर कोई भी हो संगीत और नृत्य से ही रंग जमता है। विशेष रूप से युवा दिलों की धड़कन है संगीत। क्या बच्चे क्या बुजुर्ग सभी में संगीत के प्रति दीवानगी का आलम देखा जा सकता है। गीतों का संबंध हमारे स्वास्थ्य से सीधा जुड़ा है। जब हम संगीत सुनते हैं और गुनगुनाते हैं तो सारी कायनात को भूल कर धुनों और स्वरों की दुनिया में खो जाते हैं। तनाव, बेचैनी, अकेलापन दूर करने में संगीत सुनने से बड़ी कोई कारगर दवा नहीं है। संगीत हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। सब कुछ भूल कर हम संगीत की दुनिया में समा जाते हैं। यह अवस्था हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए रामबाण है। शोध बताते हैं कि जो बच्चे संगीत सुनते हैं उनका बौद्धिक विकास अच्छा होता है।

प्राचीन वैदिक समय से ही संगीत भारतीय संस्कृति का हिस्सा रहा है। उस समय संगीत चिकित्सा के कई प्रमाण मिलते हैं। ‘ओम’ का नाद इसका सर्वोपरि प्रमाण है जो आज तक विद्यमान है। भृमर योग भी संगीत पर आधारित है जिसमें भौंरे की गुंजन की तरह ध्वनि की जाती है। वेदों में वीणा, वान एवं कर्करी आदि तंतु वाद्यों सहित दुदुम्भी, गर्गर, आधाट, बाकुर, नाड़ी, तूनव, शंख आदि वाद्यों का उल्लेख मिलता है।


                     
युद्ध, उत्सव, प्रार्थना, भजन के समय गाने-बजाने की परम्परा रही है। देवराज इंद्र की सभा में गायक, वादक, नर्तक हुआ करते थे। गंधर्व गाते थे, किन्नर वाद्य बजाते थे और अप्सराएं नृत्य करती थीं। गंधर्व कला में गीत प्रधान रहा है। गीत की लय और वाद्यों के सुर मिल कर संगीत बना। बाद में नृत्य भी इसमें शामिल हो गया परंतु अन्य देशों में गीत और वाद्यों के मेल को ही संगीत माना जाता है तथा नृत्य अलग विधा है। युग और काल कोई भी रहा हो आज तक संगीत एवं नृत्य की परंपरा अनवरत चली आ रही है। यही नहीं, हमारा गीत और संगीत सरहदों के पार भी शिद्दत से सुना जाता है।
 
संगीत के तीन भाग
भारत में उत्तरी संगीत एवं दक्षिणी संगीत कर्नाटक शैली प्रचलन में रही है। संगीत को शास्त्रीय संगीत, उपशास्त्रीय संगीत और सुगम संगीत तीन भागों में विभक्त किया गया है। उपशास्त्रीय संगीत में ठुमरी, कजरी, टप्पा एवं डोरी आते हैं। सुगम संगीत में भजन, भारतीय फिल्मी गीत, गजल, पॉप संगीत एवं लोक संगीत को स्थान दिया गया है।
 
भारतीय संगीत सात स्वरों सा, रे, ग, म, प, ध, नि, सा के मेल से बना है। इनके प्रभाव से उत्पन्न संगीत मन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। भारतीय संगीत की अनुपम धरोहर को उन्नत बनाने में यहां के संगीतकारों के महान योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है। नौशाद, शंकर-जयकिशन, मनमोहन, रवि, सी. रामचंद्र, खय्याम, ए.आर.रहमान, रोशन, अनिल विश्वास जैसे अनेक ख्यातिनाम संगीतकारों का भारतीय संगीत को नई ऊंचाइयां देने में उल्लेखनीय योगदान रहा।      
       
सदाबहार नगमों की बात करें तो लता मंगेशकर, आशा भौंसले, मुकेश, महेंद्र कपूर, मोहम्मद रफी, मन्ना डे और किशोर कुमार ने बरसों दिलों पर राज किया और इनके गीतों का जादू आज भी कायम है। इनके बाद अलका याग्निक, कुमार सानू, सोनू निगम, कविता कृष्णमूर्ति ने भी 90 के दशक में अपने गीतों की गायकी का खूब रंग जमाया।
 
आगे के दौर में अरिजीत सिंह, आतिफ, अरमान मलिक एवं श्रेया घोषाल की आवाज युवा दिलों पर छा गई। इन प्रमुख संगीतकारों के साथ-साथ अन्य संगीतकारों ने भी संगीत को समुन्नत बनाया।
 
भीमसेन जोशी, रवि शंकर, डी.के.पट्टममाल, तंजावुर वृंदा एवं पवन सिंह ऐसे सुविख्यात नाम हैं जिन्होंने शास्त्रीय संगीत को सहेजने और गर्वित बनाने में अपना चिरस्मरणीय योगदान दिया। संगीत प्रेमियों एवं संगीतज्ञों के लिए यह गर्व का विषय है कि विश्व भर में संगीत महोत्सव आयोजित कर गीत, संगीत, नृत्य, संगीतज्ञों को प्रोत्साहन दिया जाता है।
 
भारत में कुरुक्षेत्र का अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव, मध्य प्रदेश में खजुराहो महोत्सव, कालीदास नाट्य महोत्सव, तानसेन संगीत समारोह, ओडिशा में कोणार्क महोत्सव, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान तथा अन्य राज्यों में आयोजित किए जाने वाले महोत्सव संगीत दिवस की उपादेयता को प्रतिपादित करते हैं।

 

Niyati Bhandari

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