गाय माता के साथ क्यों यह सलूक?

Friday, Apr 17, 2020 - 01:10 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
दांतों तले तृण दाबकर दीन गायें कह रहीं,
हम पशु तुम हो मनुज पर योग्य क्या तुमको यही।
हमने तुम्हें मां की तरह है दूध पीने को दिया।
देकर कसाई को हमें तुमने हमारा वध किया।
जारी रहा यदि यही क्रम यहां यों ही हमारे नाश का।
तो अस्त समझो सूर्य भारत भाग्य के आकाश का।
जो तनिक हरियाली रही वह भी नहीं रह पाएगी।
यह स्वर्णभूमि कभी मरघट ही बन जाएगी।

आज देश में गायों की दुर्दशा दर्शाने के  लिए मैथिलीशरण गुप्त की इस कविता से कारुणिक और कुछ और हो ही नहीं सकता। राष्ट्रकवि को इस दुव्र्यवहार का कारण जानने की उत्कंठा है, उससे भी अधिक यह चिंता कि हिन्दुओं के पवित्रतम धर्म प्रतीकों में से एक गायों के साथ यह सलूक क्यों, जबकि गाय इस देश का धर्मशास्त्र है, कृषि शास्त्र है। अर्थशास्त्र है, नीतिशास्त्र है। उद्योग शास्त्र हैं, समाजशास्त्र है, विज्ञानशास्त्र है, आरोग्यशास्त्र है। पर्यावरण शास्त्र है,  अध्यात्मशास्त्र है।

जिन्हें हम ‘गौ माता’ कहते हैं उनके प्रति कुपुत्र व्यवहार की ताजा मिसाल मुम्बई की बीते दिनों की ही एक घटना है। गोरेगांव के करुणा परिवार से संबद्ध पशु अधिकार कार्यकत्र्ता भाविन गठानी ने जवाहर नगर की एक बंद दुकान से एक गाय के कराहने की आवाज सुनी थी। पुलिस के साथ भीतर जाकर उन्होंने देखा तो बुरी तरह कराहते बेजुबान पशु की हालत देख कर उनके आंसू निकल आए। गाय सूखकर कांटा हो गई थी। उसकी आंखों के भीतर और शरीर के दूसरे हिस्सों के ऊपर कीड़े चल रहे थे। हवाबंद तबेले में इस अबोध प्राणी को छह दिन से चारा और पानी कुछ भी नहीं मिला था। गाय गंभीर रूप से बीमार थी और उसका दूध बेचकर कमाई करने वाला तबेला मालिक इलाज पर खर्च होने वाले खर्च की चिंता से उसे बाहर से ताला लगाकर निकल गया था।

एक नहीं छह दिन से वह इसी हालत में बंद थी। बाम्बे सोसायटी फॉर कु्रएल्टी टू एनिमल्स के लोग गाय को बहुत शोचनीय स्थिति में परेल स्थित अपने अस्पताल में लाए, जहां उसने कुछ ही क्षणों में दम तोड़ दिया। पुलिस ने अब इस शख्स के खिलाफ एफ.आई. आर. दर्ज की है।

मुम्बई के कई इलाकों में आप गायों को खुलेआम विचरण करते देखते होंगे, जिन्हें उनका दूध बेचकर मोटी कमाई करने वाले मालिक उनकी हालत पर वहां छोड़ गए हैं। अपनी गंदगी से खुद बेजार होते, आने-जाने वालों को परेशानी का सबब बनी बेचारी गायों के सामने पेट भरने के लिए आसपास पड़ी सड़ी हुई सब्जियों और दूसरी चीजों के सिवा कोई विकल्प नहीं है, जो कई बार प्लास्टिक के साथ भीतर जाकर उनकी गंभीर बीमारियों का सबब बनता है।

खार का चौथा रास्ता ऐसी ही एक जगह है। यहां आप कई गायों के दोनों पैर बंधे और खुलेआम इंजैक्शन दिए जाते भी देख लेंगे। गौशालाओं और पिंजरापोल की गायों का हाल उनसे कुछ ही बेहतर है। फैडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटैक्शन आर्गेनाइजेशंस ने मुम्बई की 10 गौशालाओं सहित महाराष्ट्र की 35 गौशालाओं का निरीक्षण कर निष्कर्ष निकाला है कि प्रदेश की 90 फीसदी से अधिक गौशालाएं गौ-कल्याण कानूनों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर रही हैं। संस्था के अनुसार, महाराष्ट्र की 16 फीसदी गौशालाओं में गायों को ज्यादा दूध के लिए उनके बछड़ों से अलग दिन भर बांधे रखा जाता है। यहां उनके लिए चिकित्सा या अग्निकांड जैसी एमरजैंसी हालातों से बचाव के लिए कोई एहतियाती व्यवस्था नहीं है। इन गौशालाओं में न तो पर्याप्त संख्या में कर्मचारी हैं न उन्हें पर्याप्त सरकारी इमदाद हासिल है। गोबर और गौमूत्र के निस्तार की व्यवस्था न होने से यहां गंदगी का एकछत्र साम्राज्य है। महाराष्ट्र का पशुपालन विभाग इन आरोपों को गलत बतलाता है।

दुर्दशा की शिकार गौशालाएं
2014 की मवेशी गणना के अनुसार देश में 12.20 करोड़ गाएं हैं। 3030 गौशालाओं में से ज्यादातर की हालत खराब है। छोटे-छोटे बाड़ों में क्षमता से कई गुना बूढ़ी, कमजोर और विकलांग गायों को ठूंस दिया जाता है। उपेक्षा, इलाज की कमी और भूख से इनमें दस फीसदी हर महीने जान गंवा देती हैं।

गौशालाओं में गैर-दुधारू गायों के साथ भेदभाव किया जाता है। उनके बछड़ों को भी बेच दिया जाता है। ज्यादा दूध देने के लिए उन पर कृत्रिम और बलात् तरीके अपनाए जाते हैं। गौवध और गौमांस पर प्रतिबंध के बावजूद बड़े पैमाने पर देश में गौमांस के साथ मृत गायों के अस्थिपिंजर और चमड़े की तस्करी हो रही है।

बाम्बे पिंजरापोल : गायों का अपना घर
आज जब गौशालाएं खुद गोमाता पर होने वाले अत्याचारों की साक्षी हैं वहीं माधवबाग के पास बाम्बे पिंजरापोल के हृष्ट-पुष्ट और सेहतमंद 1500 गोवंश किसी भी गोशाला के लिए एक सबक हो सकते हैं। गायों का जिनमें हर एक का अपना नाम है उनका पेट खराब न हो और उन्हें शूगर की बीमारी न लग जाए इसके लिए पिंजरापोल की गायों को बाहर का खाना खिलाना मना है। गोभक्तों के लिए पिंजरापोल से ही घास, अनाज या वहीं बनने वाले लड्डू खरीदना जरूरी है। दो एकड़ हवादार जगह में फैली इस गोशाला के गौवंश में बूढ़ी और परित्यक्त गाएं ही नहीं ज्योतिहीन और विकलांग गाएं भी हैं। दुधारू तो बहुत ही कम। यहां उन्हें अच्छी खुराक और इलाज ही नहीं मिलता बूढ़ी हो जाने पर उन्हें बाम्ब पिंजरापोल ट्रस्ट के ही अन्य केंद्रों में भेज दिया जाता है जहां उनके इलाज के लिए अलग से डाक्टर हैं।

घाटकोपर (प.) में श्री रणछोडराय मंदिर की गायों की नियमित जांच के लिए भी पशु चिकित्सकों की नियमित ड्यूटी है। अनागांव, भिवंडी श्री गोपाल गोशाला में 450 से ज्यादा गायों में कई खुद उनके मालिकों द्वारा यहां लाकर छोड़ी गई हैं कुछ अवैध कत्लखानों से मुक्त कराई हुई हैं और कई बीमारी और रास्तों में वाहनों से घायल होने के बाद यहां पहुंची हैं। इस गोशाला में मृत्यु के बाद गायों की अंत्येष्टि के लिए एक पुजारी भी है।

माटुंगा (पूर्व) के नीलकांत महादेव मंदिर की गौशाला में उनके लिए पंखों की भी व्यवस्था है। संन्यास आश्रम, विलेपार्ले का एक बड़ा आकर्षण तो इसकी गौशाला ही है। चार एकड़ में फैली भायंदर की केशव सृष्टिï की गौशाला अपने सुप्रबंधित गोपालन से एक मिसाल बन गई है। —विमल मिश्र

Jyoti

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