हिंदू धर्म में आवश्यक होती है देवमूर्ति की परिक्रमा, जानें इसका लाभ?

Thursday, May 07, 2020 - 10:31 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू धर्म की पूजा की बात की जाती है तो इसमें देव मूर्ति की परिक्रमा अधिक महत्व बताया गया है। ऐसा क्यों? आखिर क्यों दे मूर्ति की परिक्रमा लगाई जाती है? शास्त्रों में इसके बारे में ऐसा क्या वर्णन मिलता है? जिससे पता चल सके कि इसका महत्व क्या और क्यों है? अगर आपके दिमाग में भी यह सारे पृष्ठ चल रहे हैं तो  तो अपने दिमाग में जरा ब्रेक लगाइए क्योंकि हम आज आपको अपने आर्टिकल के माध्यम से बताएंगे कि शास्त्रों में देव प्रतिमा की परिक्रमा क्यों की जाती है। 

दरअसल वैदिक शास्त्रों में कहा गया है कि स्थानीय मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। उस स्थान के मध्य बिंदु से प्रतिमा के कुछ मीटर की दूरी तक उच्च शक्ति की दिव्य प्रभा रहती है। जो प्रतिमा के निकट में अधिक गहरी और बढ़ती दूरी के हिसाब से कम होती चली जाती है। ऐसे में अगर प्रतिमा के समीप से परिक्रमा की जाए तो देवी शक्ति के  ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज कि मनुष्य को सहज की प्राप्ति होती है। 

चलिए अब जानते हैं इसे करने के नियम-
देवी शक्ति की आवा मंडल की गति दक्षिण भर्ती होती है अतः उनकी दिव्य प्रभा सदैव ही दक्षिण ओर की तरफ़ गतिमान होती है। 

कहां जाता है यही कारण है कि दाएं हाथ की ओर से परिक्रमा के जाना श्रेष्ठ माना जाता है। बाएं हाथ की और से परिक्रमा करने पर देवी शक्ति के ज्योतिर्मंडल की गति हमारे अंदर विद्यमान दिव्य परमाणुओं में टकराव पैदा करती है जिससे हमारा तेज नष्ट हो जाता है। 

अपने इष्ट देवी-देवता की प्रतिमा की विभिन्न शक्तियों की प्रभावती इसको परिक्रमा करके प्राप्त किया जा सकता है, उनका यह तेज दान विघ्नों संकटों विपत्तियों का नाश करता है। 

धार्मिक परंपराओं के अनुसार किसी भी तरह की पूजा पाठ अभिषेक व दर्शन के बाद परिक्रमा करना आवश्यक होता है। परिक्रमा करते समय साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए बीच में कहीं भी रुके नहीं साथ ही जहां से परिक्रमा शुरू की हो वही खत्म करें। कहा जाता है कि अगर परिक्रमा के बीच रोका जाए तो वह अधूरी मानी जाती है। तो वहीं इस दौरान व्यक्ति के मन में किसी के प्रति गंदा बुराई दुर्भावना क्रोध तनाव आदि विकार भी नहीं आने चाहिए। 

यहां जाने किस तेल की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए-
मान्यताओं के अनुसार प्रतिमा की जितनी अधिक परिक्रमा की जाए उतना ही पुण्य फल प्राप्त होता है। किंतु शास्त्रों के अनुसार विभिन्न देवी-देवताओं की परिक्रमा के लिए अलग संख्या निर्धारित की गई है। 

जो इस प्रकार है-
महिलाओं द्वारा वटवृक्ष तुलसी की एक या अधिक परिक्रमा करना लाभदायक माना गया है।

तो वही शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए। मान्यताओं के अनुसार इन की परिक्रमा करने से मन से नकारात्मक विचारों और बुरे सपनों का नाश होता है। ध्यान रहे जब भी भगवान शिव की परिक्रमा करें तो इस बात का  ध्यान रखें कि परिक्रमा करते जलपरी की धारा को न लाघें।


दुर्गा मां की परिक्रमा कर उनके नर्वाण मंत्र का जाप करना बहुत जरूरी माना जाता है।

इसके अलावा गणेश जी और हनुमान जी की तीन परिक्रमा करने का विधान है शास्त्रों के अनुसार इन की परिक्रमा करने से सोचे हुए सभी कार्य निर्विघ्न पूरे हो जाते हैं।

विष्णु जी तथा उनके सभी स्वरूपों की चार बार परिक्रमा करने का विधान है विराम कहा जाता है इससे हृदय परी पुष्ट और संकल्प ऊर्जावान बनकर सकारात्मक सोच में वृद्धि करता है।

Jyoti

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