गंगा दशहरा: गंगा में अस्थियों के विसर्जन  से मिलता है मोक्ष?

Friday, May 29, 2020 - 06:29 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जैसे कि अपनी वेबसाइट के माध्यम से हम आपको पहले ही बता चुके हैं, 01 जून को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। हालांकि इस बार गंगा तटों पर श्रद्धालु विधि वत पूजा नहीं पाएंगे, संभावना है कोरोना के चलते लॉकडाउन की अवधि को बढ़ा दिया जाए। मगर अपनी वेबसाइट के द्वारा हम अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि समय-समय पर आप तक हर तरह की जानकारी आप तक पहुंचा सके। इसी बीच अब हम आपको बताने वाले हैं गंगा दशहरा के बारे में। कथाओं के अनुसार इस दिन गंगा मां का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुई थी। सनातन में गंगा को सबसे पावन माना गया है। बल्कि कहा जाता है जो शुभ कार्य आदि करके प्राचीन युगों में मोक्ष मिलता कलियुग में वो फल केवल गंगा में स्नान करने से मिलेगा। कहने का भाव है गंगा को मोक्ष दायिनी कहा गया है।

यही कारण है कि मृत्यु के बाद मनुष्य की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करना श्रेष्ठ माना जाता है। अस्थि विसर्जन के लिए हिंदू समाज में अगर किसी नदी का सबसे अधिक महत्व है तो वो है गंगा नदी का। बता दें ज्यादातर हरिद्वार में स्थित हर की पौढ़ी पर कपालक्रिया और अस्थि विसर्जन किया जाता है। कथाओं की मानें तो ऐसा करने के पीछे का कारण है गंगा का इतिहास।

गरूड़ पुराण सहित कई ग्रंथों में जिक्र है कि गंगा को देव नदी या स्वर्ग की नदी है। गंगा स्वर्ग से निकली नदी है, जिसे भगीरथ अपनी तपस्या से पृथ्वी पर लेकर आए थे। माना जाता है, गंगा भले ही जाकर समुद्र में मिल जाती है लेकिन गंगा के पानी में बहने वाली अस्थि से पितरों को सीधे स्वर्ग मिलता है। गंगा का निवास आज भी स्वर्ग ही माना गया है। इसी सोच के साथ मृत देहों की अस्थियां गंगा में बहाई जाती है, जिससे मृतात्मा को स्वर्ग की प्राप्ति हो। पुराणों में बताया गया है कि गंगातट पर देह त्यागने वाले को यमदंड का सामना नही करना पड़ता।

महाभागवत में यमराज ने अपने दूतों से कहा है कि गंगातट पर देह त्यागने वाले प्राणी इन्द्राद‌ि देवताओं के ल‌िए भी नमस्कार योग्य हैं तो फ‌िर मेरे द्वारा उन्हें दंड‌ित करने की बात ही कहां आती है। उन प्राणियों की आज्ञा के मैं स्वयं अधीन हूं। इसी कारण अंत‌िम समय में लोग गंगा तट पर न‌िवास करना चाहते हैं।

Jyoti

Advertising