धोखे से बचना है तो याद रखें श्रीकृष्ण की ये सीख

Wednesday, Feb 20, 2019 - 02:58 PM (IST)

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इस बात से तो वाकिफ ही हैं भगवान कृष्ण ने कई अवतार लिए और उनके हर अवतार के पीछे कोई न कोई वजह जरूर रही है। जब उन्होंने कृष्ण रूप में अवतार लिया तो उसके पीछे कंस के दुराचारों से लोगों को बचाना था। वैसे तो उनका हर अवतार ही मोहित करने वाला रहा है। लेकिन अगर हम बात करे कृष्ण अवतार के बारे में तो उनका ये अवतार मनमोहित करने वाला रहा। उनका रूप इतना सुंदर था कि कोई भी उन्हें देखकर अपनी सुध-बुध भूल जाए। जहां उनका रूप इतना मोहित करने वाला था तो वहीं उनके स्वभाव के बारे में भी सब जानते हैं। बाल रूप में उन्होंने ऐसी बहुत सी लीलाएं की हैं जिन्हें अगर आज भी याद किया जाए तो ये आभास होता है कि हम भी कहीं न कहीं उस समय उनके आस-पास ही रहे होंगे। लेकिन वहीं दूसरी ओर अगर बात की जाए महाभारत युद्ध के समय की तो उन्होंने अर्जुन का मार्ग दर्शन किया और उसे गीता का ज्ञान भी दिया। आज हम आपको उनके स्वभाव, गुण और उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातों के बारे में बताएंगे। कहते हैं कि अगर व्यक्ति उन बातों को अपने जीवन में उतार ले तो वे एक सफल व्यक्ति या यूं कहे कि एक बेहतर इंसान बन सकता है। तो आइए जानते हैं उन बातों के बारे में- 

शांत स्वभाव
ये बात तो सब जानते हैं कि भगवान कृष्ण बचपन से ही नटखट थे, फिर भी वह बेहद शांत स्वभाव के थे। कंस के हर प्रहार का उन्होंने बड़ी शांति के साथ सामना किया और समय आने पर कंस के हर प्रहार का मुंह तोड़ दिया। इस बात से हमें ये सीख मिलती है कि कठिन समय में भी अपने आप को शांत रखने में ही भलाई होती है।

सादा जीवन 
श्रीकृष्ण का संबंध एक बड़े घराने यानि राजा नंद के पुत्र होने का बावजूद वह अन्य बालकों की तरह ही रहते, घूमते और खेलते थे। उन्होंने कभी भी गोकुल वासियों को अपने परिवार से कम नहीं समझा और न किसी में कोई अंतर किया। इसलिए व्यक्ति को कभी भी अपने स्वभाव में घमंड नहीं लाना चाहिए। सदा हर किसी की मदद के लिए आगे बढ़ते रहना चाहिए।

कभी हार न मानना
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में कभी भी हार न मनाने का संदेश दिया। उनका मानना था कि व्यक्ति को अपने अंत तक प्रयास करते रहना चाहिए, भले ही परिणाम हमारे पक्ष में या न हो।

मित्रता निभाना 
भगवान कृष्ण ने अपने किसी भी मित्र को अपने से अलग नहीं समझा। कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को तो सब लोग जानते ही हैं। भगवान ने सुदामा के साथ अपनी मित्रता को अपने अंत समय तक भी निभाया था। लेकिन आज के समय में अगर लोग दोस्त बना भी ले तो सिर्फ खुद के मतलब के लिए ही दोस्ती करते हैं। किंतु ये स्वभाव व्यक्ति को एक दिन अकेला छोड़ देता है।

माता-पिता का आदर 
श्रीकृष्ण को जन्म देवकी ने दिया था लेकिन उनका पालन-पोषण यशोदा और नंद बाबा ने किया था। यह सब जानते हुए कि वे अपने माता-पिता से दूर हैं फिर भी उन्होंने कभी भी उन्हें अपने दिल से नहीं निकाला। हमेशा उनका आदर और सम्मान किया।
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