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Wednesday, Oct 16, 2019 - 09:37 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
रूस के महान विचारक पी.डी. ऑस्पिंस्काई एक बार महान दार्शनिक और संत जॉर्ज गुरजियफ से मिलने गए। उन्होंने गुरजियफ से कहा, “यूं तो मैंने शास्त्रों का गहन अध्ययन किया है और अनुभव के दम पर भी काफी ज्ञान अर्जित किया है, पर मैं कुछ और भी जानना चाहता हूं। क्या आप मेरी मदद कर सकते हैं?” गुरजियफ समझ गए कि ऑस्पिंस्काई के मन में अपने ज्ञान का थोड़ा घमंड हो गया है।

कुछ देर सोचने के बाद गुरजियफ ने एक कोरा कागज उठाया और ऑस्पिंस्काई की ओर उसे बढ़ाते हुए बोले, “यह अच्छी बात है कि तुम कुछ सीखना चाहते हो लेकिन मैं कैसे समझूं कि तुमने अब तक क्या सीखा है क्या नहीं? तुम ऐसा करो, जो कुछ जानते हो और नहीं जानते हो उन दोनों के बारे में इस कागज पर अलग-अलग लिख दो।“

“जो तुम पहले से ही जानते हो उसके बारे में तो चर्चा करना व्यर्थ है। जो तुम नहीं जानते उस पर ही चर्चा करना ठीक रहेगा।"

बात एकदम सरल थी लेकिन इस पर अमल करना ऑस्पिंस्काई के लिए मुश्किल हो गया। एकबारगी उनके मन में वे विषय आए जिन पर उन्होंने काफी कुछ पढ़ रखा है और फिर वे विषय जिन पर अभी कुछ नहीं पढ़ा। दिक्कत यह हुई कि जो कुछ जानते थे उन पर भी सोचना शुरू किया तो अहसास होने लगा कि उस विषय के भी फला-फलां पहलुओं पर तो कुछ पता ही नहीं। काफी देर उधेड़बुन में रहने के बाद भी जब कुछ समझ नहीं आया तो उस कोरे कागज को वापस करते हुए गुरजियफ से बोले,  “श्रीमान! मैं तो कुछ भी नहीं जानता। आज आपने मेरी आंखें खोल दीं।“

ऑस्पिंस्काई के विनम्रतापूर्वक कहे इन शब्दों से गुरजियफ बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, “अब तुमने जानने योग्य पहली बात जान ली कि तुम कुछ नहीं जानते। यही ज्ञान की पहली सीढ़ी है।“

Jyoti

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