सदा जवान बने रहने का सपना हो सकता है सच

Friday, Dec 31, 2021 - 11:49 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

How to stay young forever naturally: बुढ़ापे को लेकर मनुष्य सदा से ही व्यथित रहा है। भर्तृहरि ने अपने नीतिशतकों में बुढ़ापे के बारे में कहा है- ‘बुढ़ापे में बीमारियां देह पर दुश्मन की तरह हमला करती हैं, फूटे मटके से बहते पानी की तरह उम्र लगातार रिसती जाती है, झुर्रियों से भर जाता है शरीर, आंखें, कान व दांत सब जवाब दे जाते हैं, सगे-संबंधी बात नहीं सुनते। कैसा दुखदायी है, बेटा भी दुश्मन हो जाता है बूढ़े आदमी का।’

सदा जवान बने रहने का सपना देखने वालों को भी एक दिन निराश होना पड़ता है, जब कनपटी के आसपास सफेद बाल उतरने लगते हैं। उम्र के आंकड़े गिनने में कोई तुक या तर्क नहीं है क्योंकि उम्र सच में एक आंकड़ा ही होती है। जवान बने रहने के लिए ये आंकड़े मदद नहीं कर पाएंगे अगर दिल बूढ़ा हो चुका है तो फिर 50 का होते ही आदमी मायूसी में घिर जाता है। जैसे-जैसे आंकड़े बढ़ते जाते हैं आदमी शंकालू होता जाता है कि लो अब बुढ़ापा आ ही गया।

बनी रहे सीखने की ललक
आंकड़ों के गणित में उलझनों से बचने के लिए जरूरी है कि हमारी विभिन्न रुचियां हों और हमारे कार्यक्षेत्र का दायरा व्यापक और उत्साह भरा हो। हममें सीखने की ललक बनी रहे। फिर आपस में बैठकर हम अपनी उम्र के आंकड़े नहीं गिनेंगे कि जिंदगी के इतने बरस बीत चुके हैं।

जमाना किसी से पूछ कर नहीं बदलता
उम्र के हर पड़ाव पर हम बूढ़े होते जाते हैं मगर वृद्धावस्था में हमें कुछ खतरों के प्रति सावधान रहना सीखना होगा। बीती बातों पर अफसोस प्रकट करते रहने से सचमुच किसी का फायदा नहीं होने वाला। आगे आने वाले समय पर अपना ध्यान लगाएं। हम हर समय यही अफसोस जताते रहते हैं कि हमारे जमाने में ऐसा होता था। जमाना किसी से पूछ कर नहीं बदलता। बदलाव ही सबसे बड़ा सच है जिसे जितनी जल्दी स्वीकारा जाए उतना ही लाभप्रद है।

बंद न करें अपने लोगों में रुचि लेना
अपने से कम उम्र के लोग आपको नकार रहे हैं या आपके साथ समय नहीं बिताना चाहते, ऐसा खेद प्रकट करते रहने से भी बचना आवश्यक है। बड़े होते आपके बच्चे, पोते-पोतियां या रिश्तेदार अपनी स्वाभाविक और बेरोकटोक स्वतंत्रता के साथ अपना समय बिताना पसंद करेंगे, ऐसा सच आपको स्वीकारना ही होगा। नहीं तो उनसे समय की मांग करके आप उन पर बोझ बन जाएंगे मगर अपने लोगों में रुचि लेना बंद नहीं करना चाहिए। उनके बारे में चिंता घटाते चले जाने में ही समझदारी है। उनकी उतनी ही फिक्र करें जितनी आपको पच जाए और उन्हें भी बुरी न लगे।

अर्थपूर्ण कार्य में रहें व्यस्त
यह सब बुढ़ापे में किसी न किसी अर्थपूर्ण काम में लीन रह कर ही हासिल किया जा सकता है। मृत्यु का एक दिन साक्षात्कार करना ही है तो रोज-रोज उसके डर से क्यों मरना। जवानी में मरने से डरना तो समझ में आता है कि कितना काम बकाया है, अभी कुछ देखा-भोगा नहीं है मगर बुढ़ापे में तो हम जीवन के सच के करीब होते हैं। सभी प्रकार के दुख-सुख से वाकिफ हैं तो फिर मौत के डर की भावना से मुक्त हो जाएं।  

 

Niyati Bhandari

Advertising