जानें, शास्त्रों में ‘क्रोध’ को राक्षस क्यों कहा है ?

Friday, Sep 03, 2021 - 10:08 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

How to Respond to Anger and Angry People: एक समय की बात है। ऋषि अवमूलक तपस्या में लीन थे। घोर तपस्या से प्रसन्न भगवान शिव प्रकट होकर बोले, ‘‘ऋषिवर! हम तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हैं। वर मांगो।’’ 

अवमूलक ने चरण वंदना करके कहा, ‘‘हे प्रभु! मन के विकार दूर हो जाएं पर सद्गुणों के साथ एक अंश क्रोध का अवश्य रहने दें।’’

शिव जी ने ऋषि को देखा और उन्हें इनकी इच्छा अनुसार ऐसा ही आशीर्वाद दे दिया। शास्त्रों में कहा गया है कि क्रोध मनुष्य का शत्रु है तो ऋषि ने ऐसा वरदान क्यों मांगा। क्रोध नकारात्मक रूप है जो मनुष्य को राक्षस बना देता है। क्रोध मत करो का उपदेश देने से पहले उसे अपने आचरण में ढालना आवश्यक है। गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में पांडव अस्त्र-शस्त्र चलाना सीख रहे थे। गुरु ने सिखाया था ‘‘क्रोध मत करो।’’ 

एक दिन गुरु ने पांडव भ्राताओं को कुछ काम करने के लिए दिया। अगले दिन युधिष्ठिर के अतिरिक्त सब काम करके लाए। द्रोणाचार्य के लिए असहज था कि युधिष्ठिर ने उनकी बात पूरी नहीं की। वह क्रोध से आग बबूला हो युधिष्ठिर को बुरा-भला कहने लगे। युधिष्ठिर बिना उत्तेजित हुए सिर झुकाए डांट सुनते रहे। थककर द्रोणाचार्य चुप हुए। कुछ क्षण स्वयं को संभालने के पश्चात उन्होंने शिष्य से पूछा कि छोटे से अपराध पर इतनी डांट पड़ने के बाद भी वह कुछ नहीं बोला। क्यों? 

युधिष्ठिर ने सिर झुकाकर जवाब दिया, ‘‘आपने क्रोध न करना सिखाया है। मैं उसका अभ्यास करता रहा। मुझे प्रसन्नता है कि मैं अपने क्रोध को जीत सका।’’

द्रोणाचार्य सन्न। मेरे शिष्य ने मुझे हरा दिया। मैंने शिक्षा दी और मैं ही उस आचरण से भटक गया। उन्होंने अपनी गलती स्वीकार कर युधिष्ठिर को आशीर्वाद दिया। समाज, परिवार के रिश्तों में खटास क्रोध के कारण आती है। एक-दूसरे की बात से क्रोधित होकर बुरा-भला कह देना, दूसरे का अपमान कर देना ठीक नहीं है। भगवान बुद्ध वृक्ष के नीचे बैठे थे। एक व्यक्ति जो बुद्ध की लोकप्रियता से जलता था, अकेला देख, उनसे लडऩे आ पहुंचा। उकसाने के लिए वह उन्हें अपशब्द बोलने लगा। भगवान बुद्ध शांत भाव से बैठे रहे। गाली देने वाला बौखलाकर भद्दी-भद्दी गालियां देने लगा और बहुत देर तक बोलता रहा। बुद्ध उसी तरह तपस्या में लीन रहे। थक-हार कर वह व्यक्ति लौट गया।  एक व्यक्ति दूर से सब देख रहा था। वह बुद्ध के पास आया और पूछा, ‘‘आपने अपशब्दों का जवाब क्यों नहीं दिया?’’  

बुद्ध ने पास पड़ा एक बड़ा-सा अनगढ़ पत्थर उठाकर व्यक्ति को दिया तो वह बोला, ‘‘भगवन! यह पत्थर मेरे किस काम का? मुझे नहीं चाहिए। आप ले लो।’’

बुद्ध ने वह पत्थर फैंक दिया और बोले, ‘‘तुम्हें यह पत्थर नहीं चाहिए। तुमने नहीं लिया। अपशब्द उस व्यक्ति ने बोले थे। मुझे नहीं चाहिए थे। मैंने नहीं लिए। बस इतनी सी बात है।’’  इसलिए ही हमारे ऋषियों ने क्रोध को निषिद्ध की श्रेणी में रखा था।     

Niyati Bhandari

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