लॉकडाउन के बाद सीखें ताजगी से जीना

Monday, Jun 01, 2020 - 10:52 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

वर्तमान जीवन की अति व्यस्तता ही जीवन को संत्रास प्रदान कर रही है। जीवन कह रहा है मुझे उन्मुक्त रूप से बहने दो, हम कहते हैं अभी रहने दो। जीवन कह रहा है मुझे ठहरने दो, हम कहते हैं अभी दौड़ते रहो। जीवन कह रहा है मुझे परिवर्तन चाहिए, हम कहते हैं कि अब तो बहुत देर हो गई है। अब परिवर्तन कैसा?

निरंतर विकास ही जीवन है और जड़ता मृत्यु जिंदगी को सहज फूल की तरह खूबसूरत और हल्की बनाने के लिए, उसमें ताजी एवं शीतल हवा प्रवाहित करने के लिए खुला झरोखा भी रखना होगा। तभी आप अपने जीवन में नए वातावरण, नई ताजगी व स्वागत योग्य परिवर्तन ला सकेंगे। यह एक जीवन सूत्र भी है ‘वातावरण बदलेगा तो जीवन भी बदलेगा।’ इसे आत्मसात करके प्रयास करें कि हम अपने आसपास का वातावरण बदलेंगे।

जीवन में बढ़ रहा असंतोष सदैव संत्रास ही देगा। जहां संतोष है वहां समाधान व सुख दोनों हैं। असंतोष अहितकारी व मानसिक चोट पहुंचाता है। असंतोष रूपी दुख बिच्छु के डंक की तरह कष्टदायक होता है। ऐसे व्यक्तियों से हम रू-ब-रू भी होते रहते हैं जो सरकारी या गैर-सरकारी सर्विस के दौरान बड़े पदों पर अधिकारी के रूप में रहे हैं। 

सेवानिवृत्त होने के बाद कई लोगों से सुनने को मिल जाता है कि मैं तो घर बैठे कंटाली गया हूं। सोचता हूं पुन: कोई निजी कम्पनी ज्वाइन कर लूं। फिर विचार यह भी आता है कि वहां परिश्रम ज्यादा करना पड़ा तो मेरी उम्र व शरीर की स्थिति उसके लिए तैयार नहीं होगी। पूर्ण निवृत्त होकर घर पर बैठ जाता हूं तो अन्य कई प्रकार की स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे पत्नी और पुत्र की ओर से असंतोष, बीमारी, बुढ़ापे के कारण अकेलापन। टाइम पास करने के लिए मंदिर या अन्य धर्म स्थान में क्या दिन भर बैठा रहूं?

लोग भूल जाते हैं इस जीवन के मूल्य को। ऐसे सज्जन पुरुष गलती कर रहे हैं। क्या उनका जन्म अफसर, नेता, अधिकारी या व्यापारी बनने के लिए हुआ है? क्या संसार के भोगों को भोगने के लिए ही इस देह को धारण किया है? किसी की ऐसी धारणा है तो वह मिथ्या कहलाएगी। सतत् प्रवाहमान नदी से वह प्रेरणा ले जैसे नदी बहती है तब स्वच्छ रहती है। जीवन भी बहता पानी है, रुकने से प्रदूषित होगा। निश्छल खेलते बच्चों की प्रसन्नता से प्रेरणा लें। सबके साथ स्नेह व प्रसन्नता का व्यवहार करें। लाइब्रेरी में जाकर ज्ञान-विज्ञान की विधि-विधाओं में पारंगत बनने का प्रयास करें। अध्यात्म की साधना में लग कर आत्मा को उज्ज्वल बनाने का प्रयास करें। ऐसा चिंतन करने वाले कितने हैं? 

जो ऐसा चिंतन करना नहीं जानते हैं उनके लिए जीवन बोझ बन जाता है। इस दुर्लभ जीवन को कभी बोझ मत मानो और बासी मत होने दो। बासी पदार्थ का कोई मूल्य नहीं होता। मूल्य होता है ताजगी का, प्रसन्नता का। हमें ‘फर्स्ट क्लास’ जीवन जीना है या ‘थर्ड क्लास’? फर्स्ट क्लास का जीवन जीना है तो उसे सदैव तरोताजा रखें। जीवन का बासीपन उसे ‘थर्ड फर्स्ट क्लास जैसा है उसे थर्ड क्लास जैसा मत होने दो। मैं देख रहा हूं आज अधिकांश लोग थर्ड क्लास का ही जीवन जी रहे हैं।

हकीकत तो यह है कि स्वयं व्यक्ति अपनी विचारधारा पर नंगी तलवार से पहरा दे रहा है। अपने परिवार, पत्नी, पुत्र, पुत्रियों, मित्र मंडली, व्यापार, खेल सीरियल आदि सबकी पूर्ण जानकारी रखता है। इस परिधि से बाहर निकलने का प्रयास भी नहीं करता। बर्तनों को मांजने से चमक आती है वैसे ही विचारों को भी हम मांजने में पारंगत बनेंगे तो उनमें भी नई चमक प्रकट होगी। इससे देश, समाज को नई दिशा व नई दृष्टि मिल सकती है। विचारों को मांजने के लिए, उनमें ताजगी भरने के लिए अज्ञानमय रूढ़िवादी विचारों के घेरे को तोड़ना होगा।

सफलता हासिल करने के लिए नए-नए व्यक्तियों से सम्पर्क करना, उनके विचारों को समझना भी आवश्यक है, उनसे कुछ सीखें। संकल्पपूर्वक अभ्यास करने से हर क्षेत्र में दक्षता हासिल की जा सकती है। एक ही प्रकार के लोगों से मेल-जोल रखने से दक्षता हासिल नहीं हो सकती। प्रबुद्ध जनों से सम्पर्क, नए संगठनों में सम्मिलित होने से सामाजिक दायरा जहां विस्तृत होगा वहीं विचारों में व्यापकता आएगी। जीवन में आनंद की वृद्धि होगी, जो मस्तिष्क के लिए पौष्टिक खुराक का काम करेगी।

जीवन में ताजगी लाने के लिए ऐसे मित्र वर्ग का चयन करें जिनका आचार, विचार और व्यवहार उन्नत हो जिनमें व्यापकता हो। आज के इस गतिशील जीवन में संकुचित विचारधारा वालों का भविष्य बहुत उज्ज्वल नहीं होता। जिम्मेदारी से परिपूर्ण और महत्वपूर्ण पदों पर वे ही व्यक्ति सफल होते हैं जिनके विचारों में व्यापकता व ताजगी हो। मित्रता में उन्हें प्राथमिकता दें जो तुच्छ व निकम्मी बातों से मुक्त हों। 

Niyati Bhandari

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