किसी की मदद करने से पहले जानें ये जरूरी बात, तभी मिलेगा पुण्य का भंडार

Wednesday, Feb 02, 2022 - 11:14 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Benefits of helping the poor: किसी की आर्थिक मदद आप एक या दो बार कर सकते हैं, किंतु कर्मठता की प्रेरणा के साथ सहयोग करके, उसको आत्मनिर्भर बनाकर आप सदा के लिए उसकी मदद कर सकते हैं। आत्मनिर्भरता अर्थात स्वयं के बूते मेहनत से जीवन-यापन करना। किसी पर आश्रित न होकर आत्मविश्वास से जीवन जीना। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। यहां एक-दूसरे की पारस्परिक मदद, सहयोग को नैतिकता माना जाता है। किंतु ऐसा गलत प्रमाणित तब होता है जब सहयोग पाने वाला शारीरिक व मानसिक रूप से पंगू बनने लगता है और उसे केवल मांगना ही अच्छा लगने लगता है। वह अपने कर्तव्य पथ से भटक जाता है और कृतज्ञता को प्राप्त होता है। इसके लिए सहयोग करने वाले भी उत्तरदायी होते हैं क्योंकि वे केवल सहयोग पर बल देते हैं किंतु कर्मठता नहीं सिखाते तथा मुफ्तखोरी को बढ़ावा देते हैं। मात्र थोड़ी-सी भलाई व पुण्य के नाम पर।

एक सुंदर प्रसंग
एक मंदिर के बाहर एक अपाहिज बुजुर्ग दंपति भीख मांगा करते थे। मंदिर में आने-जाने वाले श्रद्धालु उन्हें कुछ सिक्के दे दिया करते थे। इस प्रकार अपाहिज दंपति का गुजारा होता रहता था। उसी मंदिर में एक दानी सज्जन आया करते थे। वह उन अपाहिज दंपति को वस्त्र, बिस्तर, जरूरत की कुछ अन्य सामग्री भी दे जाते थे। 

प्रतिदिन की भांति वह दानी सज्जन बहुत से फल-फूल लेकर मंदिर पहुंचा। ग्रहण के कारण मंदिर के कपाट बंद थे। मंदिर के बाहर भिखारी दंपति बैठे हुए थे। दानी सज्जन ने सोचा अब फल-फूलों को घर ले जाकर क्या करूंगा। वह फल-फूल दानी सज्जन ने भिखारी दंपति को दे दिए और चला गया। तभी वहां से गुजरने वाले एक राहगीर ने भिखारी से पूछा फूलमाला कितने की है। भिखारी ने कहा यह बेचने के लिए नहीं है। राहगीर ने कहा बेचते क्यों नहीं, कुछ कमाकर खाओ। भिखारी ने 5 रुपए प्रति फूलमाला और 50 रुपए प्रति किलो फल शाम तक बेच दिए। भिखारी ने 150  रुपए की फूलमालाएं और 300 रुपए के फल बेच दिए। लोग उन्हें अब भिखारी नहीं फल-फूल वाले बाबा कहकर पुकारते थे। 

भिखारी की आंखों से आंसू बहने लगे। कल तक भिखारी की पहचान रखता था, मांग कर खाना और जीना ही जीवन समझता था । एकाएक फल-फूल वाले बाबा शब्द सुनकर कुछ करने की उमंग मन में जागी।

कुछ दिनों बाद दानी सज्जन आए। आज भिखारी दंपति भीख नहीं मांग रहे थे, बल्कि मंदिर के बाहर फल-फूल बेच रहे थे। दानी सज्जन उन्हें देखकर आश्चर्यचकित हुए, खुश भी हुए और पूछा कि यह बदलाव कैसे आया। फल-फूल वाले बाबा ने कहा- बाबूजी आप बड़े लोगों की सहायता से मेरी जरूरत तो पूरी हो जाया करती थी, किंतु जीवन के साथ जरूरतें तो सदा ही लगी हुई हैं। आपके दिए हुए फल-फूलों की टोकरी हमारे सामने रखी थी। एक राहगीर ने कहा इन्हें बेचते क्यों नहीं? कमा कर खाने का आनंद ही कुछ और है। मैंने वे फल-फूल बेच दिए। कुछ पैसे पास रखकर अगले दिन फल-फूल मंडी से लाकर यहां बेचने लगा। पहले भिखारी था तो लोग दयनीय दृष्टि से देखते थे, किंतु अब लोग फल-फूल भी खरीदते हैं और कहते हैं- बाबा आपको देखकर हिम्मत और प्रेरणा मिलती है कि आप अपाहिज होकर भी मेहनत करके खाते हैं।  

एक राहगीर की बात ने मुझे आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता से जीना सीखा दिया। मैंने महसूस किया है कि बिना मेहनत के प्राप्त फल से न खुशी मिलती है, न वह फल सदा रहता है। दूसरों द्वारा की गई दयापूर्ण सहायता आत्मसम्मान पर अंकुश लगाती है। मन में उत्कंठा पैदा होती है। आत्मग्लानि होती है। समाज में आदर नहीं होता। नैतिक दृष्टिकोण से मुफ्त में मिली मदद, सहयोग का उपयोग करके शांति प्राप्त नहीं होती। 

दानी सज्जन सोच रहे थे कि आज इतनी बड़ी सीख मिली है कि मैं बरसों तक बुजुर्ग दंपति की सहायता करके सोचा करता था कि मैं बहुत भला काम कर रहा हूं, किंतु मैं अज्ञानतावश समझ ही नहीं पा रहा था कि मैं उन्हें आत्मनिर्भर बनने की बजाय दूसरों पर आश्रित बनना सिखा रहा था। 

उस राहगीर की सोच को सलाम करते हुए दानी सज्जन ने कहा- हे अनजान राहगीर, आप जो भी थे, बहुत अच्छी सीख देकर गए कि आर्थिक मदद करके हम दो-चार बार किसी की सहायता कर सकते हैं, मगर ऐसा करने से उसकी जरूरतें एक सीमित समय तक ही पूरी कर सकते हैं किंतु कर्मठता की प्रेरणा देकर हम किसी की सहायता के साथ-साथ उसे आत्मनिर्भर बनने का अवसर देते हैं। आत्मनिर्भर व्यक्ति बाहरी सहायता पर विश्वास न करके स्वयं पर विश्वास करते हुए दृढ़ संकल्पित होकर संघर्ष करते हैं। उनका समाज में सदैव आदर सम्मान होता है। 

 

Niyati Bhandari

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