जीवनकाल में इन लोगों से प्रेम होगा, तभी होगी परमात्मा की प्राप्ति

Saturday, Jun 24, 2017 - 11:19 AM (IST)

आचार्य रामानुजाचार्य एक महान संत एवं संप्रदाय-धर्म के आचार्य थे। दूर-दूर से लोग उनके दर्शन एवं मार्गदर्शन के लिए आते थे। वह बहुत सहज तथा सरल रीति से उपदेश देते थे। एक दिन एक युवक उनके पास आया और चरणों में वंदना करके बोला, ‘‘मुझे आपका शिष्य बनना है। आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिए।’’


रामानुजाचार्य ने कहा, ‘‘तुझे शिष्य क्यों बनना है?’’ 


युवक ने कहा, ‘‘मेरा शिष्य होने का हेतु तो परमात्मा से प्रेम करना है।’’ 


संत रामानुजाचार्य ने तब कहा, ‘‘इसका अर्थ है कि तुझे परमात्मा से प्रीति करनी है परंतु मुझे एक बात बता दे कि क्या तुझे तेरे घर के किसी व्यक्ति से प्रेम है?’’ 


युवक ने कहा, ‘‘न, किसी से भी मुझे प्रेम नहीं।’’ 


तब फिर संतश्री ने पूछा, ‘‘तुझे तेरे माता-पिता या भाई-बहन पर स्नेह आता है क्या?’’ 


युवक ने नकारते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी पर भी तनिक मात्र भी स्नेह नहीं आता। पूरी दुनिया स्वार्थपरायण है, ये सब मिथ्या, मायाजाल है इसीलिए तो मैं आपकी शरण में आया हूं। तब संत रामानुज ने कहा, ‘‘बेटा, मेरा और तेरा कोई मेल नहीं, तुझे जो चाहिए वह मैं नहीं दे सकता।’’ 


युवक यह सुन स्तब्ध हो गया। उसने कहा, ‘‘संसार को मिथ्या मानकर मैंने किसी से प्रीति नहीं की। परमात्मा के लिए मैं इधर-उधर भटका। सब कहते थे कि परमात्मा के साथ प्रीति जोडऩा हो तो संत रामानुज के पास जा, पर आप तो इंकार कर रहे हैं।’’ 


संत रामानुज ने कहा, ‘‘यदि तुझे तेरे परिवार से प्रेम होता, जिंदगी में तूने तेरे निकट के लोगों में से किसी से भी स्नेह किया होता तो मैं उसे विशाल स्वरूप दे सकता था। थोड़ा भी प्रेमभाव होता, तो मैं उसे ही विशाल बनाकर परमात्मा के चरणों तक पहुंचा सकता था। छोटे से बीज में से विशाल वटवृक्ष बनता है परंतु बीज तो होना चाहिए, जो पत्थर जैसा कठोर एवं शुष्क हो उसमें से प्रेम का झरना कैसे बहा सकता हूं? यदि बीज ही नहीं तो वटवृक्ष कहां से बना सकता हूं? तूने किसी से प्रेम किया ही नहीं तो तेरे भीतर परमात्मा के प्रति प्रेम की गंगा कैसे बहा सकता हूं?’’

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