मंदिर से लेकर घर तक कुछ ऐसे मचती है वसंत उत्सव की धूम

punjabkesari.in Wednesday, Feb 01, 2017 - 12:01 PM (IST)

इस दिन देश भर में बड़ी धूमधाम से बसंत उत्सव मनाया जाता है। माघ शुक्ल पंचमी को मथुरा में दुर्वासा ऋषि के मंदिर में बहुत भारी मेला लगता है। अन्य मंदिरों में भी भगवान के विशेष शृंगार किए जाते हैं व वसंती भोग चढ़ाए जाते हैं तथा वसंत राग भी गाए जाते हैं। ब्रज में इस दिन से होली गीत की शुरूआत हो जाती है क्योंकि ब्रज का यह परंपरागत उत्सव है। स्कूलों, कालेजों में कई प्रकार के समारोह संगीत, वाद-विवाद प्रतियोगिताएं व कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। प्राचीन काल में राजा अपने सामंतों के साथ हाथी पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलता था और एक बड़े समारोह के साथ मंदिर में विधिपूर्वक कामदेव की पूजा करता था। मंदिर में अन्य देवताओं पर अनाज की बालियां चढ़ाई जाती थी। 


इस दिन पतंगबाजी का विशेष महत्व है। पूरा आकाश रंग-बिरंगी उड़ती पतंगों से भर जाता है। एक-दूसरे की पतंगें काटते युवाओं का उत्साह देखते ही बनता है। घरों में पीले मीठे चावल, पीली खीर व लड्डू बनाने का विशेष रिवाज है। कई जगहों पर मेलों का आयोजन भी होता है।


वसंत का प्रभाव : वसंत ऋतु में प्रकृति का सौंदर्य सब ऋतुओं से बढ़ कर होता है। वन-उपवन भांति-भांति के फूलों से सुवासित हो जाते हैं व फूलों पर भंवरे मधुपान के लिए लालायित हो उठते हैं। सर्वत्र हरियाली नजर आती है और ऐसे में कवियों के सुप्त भाव भी जागृत होने लगते हैं। ‘गीत गोविंद’ के लेखक जयदेव ने अपनी रचना में मनोहारी वसंत को जिस प्रकार चित्रित किया है वह प्रशंसनीय है।


इस ऋतु की छटा देख सभी प्राणियों में नवजीवन का संचार होता है। आयुर्वेद में इस मौसम में प्रात:काल के भ्रमण को स्वास्थ्य के अनुसार महत्वपूर्ण बताया गया है। 
इस ऋतु में भावनाएं कोमल हो जाती हैं और प्रेमियों के मिलन व प्रेम के प्रति उनकी भावनाओं का आदान-प्रदान इस मौसम में अंगड़ाइयां लेने लगता है। वसंत एक ऐसी आनंददायक ऋतु है जो जन-जन को नव निर्माण और हास विलास के माध्यम से धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है।


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