Kundli Tv- कर्ण के बारे में कितना जानते हैं आप ?

Sunday, Dec 09, 2018 - 06:00 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा(VIDEO)
अपना सब कुछ दान कर देने वाले दानवीर कर्ण का नाम अमर और प्रेरणा का स्त्रोत है। अधर्म और अन्याय की मूर्ति दुर्योधन कर्ण का मित्र था, फिर भी द्वापर के इस महान दानी का नाम लोग बड़े आदर के साथ लेते हैं। कर्ण कुंती को सूर्यदेव की कृपा से प्राप्त सूर्यपुत्र था। हस्तिनापुर के युवराज दुर्योधन की कृपा से ही कर्ण अंग देश का राजा बना था। दुर्योधन के इस उपाकार के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हुए वह सदा के लिए अधर्म के नायक का साथी बन गया। द्वापर का यह योद्धा कवच-कुंडल सहित पैदा हुआ था। कुंती ने उसे पेटी में डालकर नदी में बहा दिया था। संयोग से यह पेटी नदी के किनारे लग गई। अंग राज्य के एक सूत ने उस पेटी और उसमें बालक को देखा और घर ले आया।

उसकी पत्नी राधा जो संतानहीन थी, बच्चे को पाकर धन्य हो गई। बालक को हृदय से लगाते ही उसके स्तनों में दूध उतर आया था। बालक का शरीर सूर्य की तरह चमक रहा था। कवच-कुंडल की आभा ही निराली थी। माता-पिता ने बालक का नाम कर्ण रख कर पालन-पोषण किया। सूर्य पुत्र कर्ण अब सूतपुत्र और राधेय बन गया।

गंगा जी के तट पर दो स्थानों पर कर्ण ने अपना निवास रखा ताकि सुबह गंगा स्नान कर व भगवान सूर्य को अर्ध्य देकर दान दे सके। एक मुंगेर के पास और दूसरा वर्तमान कर्णवास (बुलंदशहर) में। कर्ण हर रोज सवा मन सोना दान करता था।

पांडवों की विजय के लिए कर्ण से उसके कवच-कुंडल को अलग करना जरूरी था। भगवान श्रीकृष्ण की योजना के अनुसार इंद्र ब्राह्मण याचक के रूप में कर्ण के पास जा पहुंचे। अपने जन्म देवता और शुभचिंतक सूर्य देवता के मना करने पर भी कर्ण ने अपने स्वभाव और वचनबद्धता के अनुकूल एक ही क्षण में अपने शरीर को छीलकर कवच और कानों से कुंडल निकाल कर इंद्र की मनोकामना पूरी कर दी। शरीर पर कवच कुंडल रहते कर्ण को मारना असंभव था, जो उसे जन्म से ही प्राप्त थे। ऐसा करके कर्ण ने युद्धभूमि में अपनी वीरगति को स्वयं निमंत्रण दिया। इंद्र की मनोकामना तो पूरी हो गई पर छल-कपट और धोखे से प्राप्त सफलता से देवराज इंद्र पर कलंक लग गया।

कर्ण के पास अब भी भगवान परशुराम से मिले हुए पांच ऐसे बाण थे जिनके अचूक वार से कोई भी बच नहीं सकता था। इन बाणों को कुंती ने मां का ममतामयी आंचल कर्ण के सामने फैलाकर प्राप्त कर लिया। सुबह के समय जब कर्ण सूर्य की ओर हाथ उठाए खड़ा रहता था, तब ही उसके पास मांगने भिक्षुक पहुंचते थे, क्योंकि उस समय कोई कर्ण से उसका प्राण भी मांगता तो भी वह न नहीं करता था। यह जानकर की कुंती उसकी मां है, कर्ण ने उन्हें मां का सम्मान तो जरूर दिया परन्तु दुर्योधन को दिए गए वचन से मुंह नहीं मोड़ा। अंत में कुंती को निराश होकर बिना कर्ण के ही पांडवों के पास वापस आना पड़ा।
हिन्दू धर्म में स्नान का क्या है महत्व(VIDEO)

Niyati Bhandari

Advertising