लोहड़ी मनाने का ये है सही तरीका

Saturday, Jan 12, 2019 - 09:18 AM (IST)

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2019 में मनाया जाने वाला पहला त्यौहार है लोहड़ी। उत्तर भारत में इसकी खास धूम रहती है। जिस घर में नई शादी हुई हो अथवा संतान का जन्म हुआ हो वहां तो लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इस पर्व पर मौसम की कड़ाके की ठंड होती है और लोग लोहड़ी वाले दिन अपने घरों के बाहर अलाव जलाकर अग्रि की पूजा करते हैं ताकि उनके घरों में दरिद्रता का नाश हो और सुख-समृद्धि का साम्राज्य स्थापित हो सके। पंजाब और हरियाणा में तो लोहड़ी का त्यौहार मनाए जाने की बात ही निराली है। आपसी प्रेम और भाईचारे की मिसाल कायम करने वाला एक अनूठा पर्व है लोहड़ी जिसे सभी एक साथ मिलजुल कर नाच-गाकर खुशियां मनाकर मनाते हैं। 
लोहड़ी के दिन छोटे बच्चे और कुंवारी लड़कियां घरों में पहुंच जाती हैं और लोहड़ी मांगती हैं। लोहड़ी के रूप में उन्हें कुछ रुपए, मूंगफली, रेवड़ी व मक्का की खील (पापकार्न) मिलते हैं। नवविवाहितों के साथ अठखेलियां करती हुई लड़कियां यह कह कर लोहड़ी मांगती हैं : 
लोहड़ी दो जी लोहड़ी, जीवै तुहाडी जोड़ी।

इसी प्रकार नवजात शिशुओं को भी गोद में उठाकर लड़कियां उन्हें गीतों के जरिए से आशीर्वाद देते हुए उनके माता-पिता से लोहड़ी मांगती हैं। इस प्रकार लोहड़ी के नाम पर उन्हें जितने भी रुपए या खाने-पीने की सामग्री मिलती है, उसे वे आपस में बराबर बांट लेती हैं।

लोहड़ी से कुछ दिन पहले ही गली-मोहल्ले के लड़के-लड़कियां घर-घर जाकर लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी मांगने लगते हैं और लोहड़ी के दिन उत्सव के समय जलाई जाने वाली लकड़ियां व उपले मांगते समय भी बच्चे लोहड़ी के गीत गाते हैं : 
हिलणा वी हिलणा, लकड़ी लेकर हिलणा
हिलणा वी हिलणा, पाथी लेकर हिलणा 
दे माई लोहड़ी तेरी जिए जोड़ी।

जिस घर से लोहड़ी या लकड़ियां व उपले नहीं मिलते, वहां बच्चों की टोली इस प्रकार के गीत गाती हुई भी देखी जा सकती है : 
कोठे उते हुक्का, ये घर भुक्खा,
उड़दा-उड़दा चाकू आया,
माई दे घर डाकू आया। 

लड़कियां जब घर-घर जाकर लोहड़ी मांगती हैं और उन्हें लोहड़ी मिलने का इंतजार करते हुए कुछ समय बीत जाता है तो वे गीत गाते हुए कहती हैं : 
साडे पैरां हेठ सलाइयां, 
असी केहड़े वेले दीयां आइयां।
साडे पैरां हेठ रोड, माई सानूं छेती-छेती तोर।

इन गीतों के बाद भी जब उन्हें लगता है कि उस घर से उन्हें कोई जवाब नहीं मिल रहा तो वे पुन: गीत गाते हुए कहती हैं : 
साडे पैरा हेठ दहीं, असी इथों हिलणा वी नहीं।

समय के बदलाव के साथ हालांकि घर-घर से लकडिय़ां व उपले मांग कर लाने की परम्परा समाप्त होती जा रही है लेकिन लोहड़ी के दिन सुबह से ही रात के उत्सव की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और रात के समय लोग अपने-अपने घरों के बाहर अलाव जलाकर उसकी परिक्रमा करते हुए उसमें तिल, गुड़, रेवड़ी, चिड़वा इत्यादि डालते हैं और माथा टेकते हैं। उसके बाद अलाव के चारों ओर बैठ कर आग सेंकते हैं। तब शुरू होता है गिद्दे और भंगड़े का मनोहारी कार्यक्रम, जो देर रात तक चलता है।
लोहड़ी के दिन लकड़ियां व उपलों का जो अलाव जलाया जाता है, उसकी राख अगले दिन मोहल्ले के सभी लोग सूर्योदय से पूर्व ही अपने-अपने घर ले जाते हैं क्योंकि इस राख को ईश्वर का उपहार माना जाता है।

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Niyati Bhandari

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