कैसे, गांधारी बनी सौ पुत्रों की माता

Wednesday, Jan 24, 2018 - 05:59 PM (IST)

कौरवों के पिता धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन थे। इसलिए उनकी पत्नी ने भी अपनी इच्छा से नेत्रहीन होकर जीवन जीने की प्रतिज्ञा ले ली थी। उन्होंने ने भी शादी के बाद नेत्रहीन होकर ही अपनी जीवन व्यतीत किया था। धृतराष्ट्र चाहते थे कि उनके भाइयों की संतान होने से पहले उनको संतान हो जाए, क्योंकि नई पीढ़ी का सबसे बड़ा पुत्र ही राजा बनता था। उन्होंने गांधारी से खूब प्रेमपूर्ण बातें कीं ताकि वह किसी तरह एक पुत्र दे सके। मगर ऐसा हो नहीं पा रहा था। आखिरकार एक दिन मुनि व्यास हस्तिनापुर आए। गांधारी ने उनकी खूब सेवा की। महर्षि व्यास ने गांधारी से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तब गांधारी ने धृतराष्ट्र के समान सौ पुत्र होने का वरदान मांगा। व्यासजी ने आशीर्वाद दिया।

 

कुछ समय बाद गांधारी गर्भवती हुई। महीने गुजरते गए, नौ महीने दस में बदले, ग्यारह महीने हो गए, मगर कुछ नहीं हुआ। उसे घबराहट होने लगी। उधर कुंती के गर्भ से पांडु के बड़े पुत्र युधिष्ठिर का जन्म हो गया। धृतराष्ट्र और गांधारी तो दुख और निराश में डूब गए। युधिष्ठिर का जन्म पहले हुआ था इसलिए स्वाभाविक रूप से राजगद्दी पर उसी का अधिकार था। बारह महीने बीतने के बाद भी गांधारी बच्चे को जन्म नहीं दे पा रही थी। उसने सोचा ये क्या हो रहा है। यह बच्चा जीवित भी है या नहीं। हताशा में आकर उसने अपने पेट पर प्रहार कर गर्भ को गिरा दिया। उसके बाद, उसका गर्भपात हो गया।

 

व्यासजी ने इस पूरी घटना को दिव्य दृष्टि से देख लिया था। वे गांधारी के पास गए और बोले आज तक मेरी कोई बात गलत नहीं निकली है, न ही अब होगी। वह जैसा भी है, मांस का वही पिंड मेरे पास लेकर आओ। उन्होंने गांधारी से कहा तुम शीघ्रता से सौ कुंड बनवाकर उन्हें घी से भरवा दो और दो वर्ष के लिए उन्हें सुरक्षित जगह रखवाने का प्रबंध करवा दो। गांधारी की आज्ञा से सेवकों ने सारी तैयारी कर दी। मुनि व्यास ने उस पिंड पर जल छिड़का तो उसके एक सौ एक टुकड़े हुए जिसे दो साल के लिए एक सुरक्षित स्थान पर रख दिया गया। उन्हीं मांस के पिंडों से सौ कौरव पुत्र व एक कन्या का जन्म हुआ था।

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