Home Sutra: देवी-देवताओं की पूजा से बढ़कर मिलता है, इनकी सेवा का पुण्य

Tuesday, Feb 23, 2021 - 08:44 AM (IST)

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Mata Pita aur Guru Ki Mahima: हमारे धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है और इसके रचयिता राजर्षि मनु के विचार भारतीय मनीषा में सर्वमान्य हैं। माता-पिता, गुरुजनों एवं श्रेष्ठजनों को सर्वदा प्रणाम, सम्मान और सेवा करने के संदर्भ में मनुस्मृति का निम्रलिखित श्लोक बड़ा ही अनुकरणीय है : अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम। (2/21)

अर्थात वृद्धजनों यथा माता-पिता, गुरुजनों एवं श्रेष्ठजनों को सर्वदा अभिवादन-प्रणाम तथा उनकी सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल ये चारों बढ़ते हैं।

Manu Smriti: मनुस्मृति के एक अन्य श्लोक में माता-पिता और आचार्य को अति महत्वपूर्ण स्थान देते हुए कहा गया है कि दस उपाध्यायों से बढ़कर एक आचार्य होता है- सौ आचार्यों से बढ़कर पिता होता है और पिता से हजार गुणा बढ़कर माता गौरवमयी होती है।

Inspirational Context: तैत्तिरीयोपनिषद में कहा गया है-‘‘मातृदेवो भव’’, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव।’’ अर्थात माता-पिता और आचार्य को देवता मानो। ये तीनों प्रत्यक्ष ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। इन्हें सदैव संतुष्ट और प्रसन्न रखना हमारा परम धर्म है।

Anmol Vachan: गरुड़ पुराण में कहा गया है कि माता-पिता के समान श्रेष्ठ अन्य कोई देवता नहीं है। अत: सदा सभी प्रकार से हमें अपने माता-पिता की पूजा और सेवा करनी चाहिए।

Religious Katha: श्री वाल्मीकी रामायण में सीता जी से भगवान राम कहते हैं, ‘‘जिनकी सेवा से अर्थ, धर्म और काम तीनों पुरुषार्थ की सिद्धि होती है, जिनकी आराधना से तीनों लोकों की प्राप्ति हो जाती है, उन माता-पिता के समान पवित्र इस संसार में दूसरा कोई भी नहीं है। इसलिए लोग इन प्रत्यक्ष देवताओं की आराधना करते हैं।’’

Inspirational Story: महाभारत में भीष्म पितामह राजा युधिष्ठिर को धर्म का उपदेश देते हुए कहते हैं, ‘‘राजन! समस्त धर्मों से उत्तम फल देने वाली माता-पिता और गुरु की भक्ति है। मैं सब प्रकार की पूजा से इनकी सेवा को बड़ा मानता हूं। इन तीनों की आज्ञा का कभी उल्लंघन नहीं करना चाहिए।’’

पद्मपुराण में कहा गया है :

सर्वतीर्थमयी माता, सर्वदेवमय: पिता। मातरं पितंर तस्मात सर्वयत्नेन पूजयेत।।  (सृष्टिखंड 47/11)

अर्थात माता सर्वतीर्थमयी और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है इसलिए सभी प्रकार से यत्नपूर्वक माता-पिता का पूजन करना चाहिए। जो माता-पिता की प्रदक्षिणा करता है उसके द्वारा सातों द्वीपों से युक्त पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। गणेश जी द्वारा माता पार्वती और पिता महादेव की परिक्रमा करने के कारण ही वह माता-पिता के लाडले बने और आज भी अग्रदेव और विघ्नविनाशक के रूप में घर-घर में पूजे जाते हैं।

Importance and Role of Mother Father and Guru in our life: शास्त्र कहता है कि माता-पिता अपनी संतान के लिए जो कष्ट सहन करते हैं उसके बदले पुत्र यदि सौ वर्ष तक माता-पिता की सेवा करे तब भी वह उनसे उऋण नहीं हो सकता। श्री रामचरितमानस में भगवान श्री राम अनुज लक्ष्मण को माता-पिता और गुरु की आज्ञापालन का फल बताते हुए कहते हैं कि ‘‘जो लोग माता-पिता, गुरु और स्वामी की शिक्षा को स्वाभाविक ही शिरोधार्य कर पालन करते हैं उन्होंने ही जन्म लेने का लाभ प्राप्त किया है अन्यथा जगत में जन्म लेना ही व्यर्थ है। जो पुत्र उचित-अनुचित का विचार छोड़ कर पिता के वचनों का पालन करते हैं, वे सुख और सुयश के पात्र होकर स्वर्ग में निवास किया करते हैं।

 Mother Father Teacher God: धर्मग्रंथों में गुरुतत्व परब्रह्म के समान बताते हुए उसकी अपार महिमा का वर्णन किया गया है। गुरु ही हमें ईश्वर से मिलने का मार्ग बताता है। वह हमें असत से सत की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर और मृत्यु से अमृत की ओर ले जाने का कार्य करता है। हमारे धर्मशास्त्रों में माता-पिता और गुरुजनों का निरादर करने, उनकी बातों की अवहेलना करने और उन्हें दुख पहुंचाने वालों की तीव्र भर्सना की गई है।

Religious Context: वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि जो माता-पिता और आचार्य का अपमान करता है वह यमराज के वश में पड़कर उस पाप का फल भोगता है। पद्मपुराण में भी कहा गया है कि जो पुत्र अंगहीन, दीन, वृद्ध, दुखी तथा रोग से पीड़ित माता-पिता को त्याग देता है वह कीड़ों से भरे हुए दारुण नरक में पड़ता है। जो पुत्र अपने कटुवचनों द्वारा माता-पिता को दुखी करता है वह पापी बाघ की योनि में जन्म लेकर घोर दुख उठाता है।

Anmol vichar: आज संस्कारहीनता और पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होने के कारण वर्तमान पीढ़ी द्वारा माता-पिता एवं गुरुजनों की उपेक्षा ही नहीं अपितु  उत्पीड़न तक हो रहा है। वृद्ध माता-पिता को बोझ समझकर भगवान भरोसे छोड़ा जा रहा है। वृद्धाश्रमों की बढ़ती हुई संख्या और मांग इस बात का प्रमाण है कि माता-पिता अनावश्यक वस्तु की कोटि में रखे जाने लगे हैं। वे आज जीवन के अंतिम  पड़ाव में सेवा, सहानुभूति, चिकित्सा और प्रेम के दो मीठे वचनों को सुनने के लिए तरस रहे हैं।

Importance of Mata Pita Sewa: जो पुत्र बचपन में माता-पिता को अपने मूत्र से गीले हुए बिस्तर पर सुलाया करता था वही पुत्र अब अपने कटुवचनों से उनके नेत्रों को भी गीला करने में संकोच नहीं कर रहा है। आज की पीढ़ी यह भूल रही है कि एक दिन उनको भी वृद्धावस्था का दंश झेलना पड़ेगा तब यदि उनके साथ भी ऐसा ही व्यवहार हुआ तो उन्हें कैसा लगेगा? तब क्या वे भी चाहेंगे कि उन्हें वृद्धाश्रमों की शरण लेनी पड़े अथवा दर-दर की ठोकरें खानी पड़ें ?

 

 

Niyati Bhandari

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