होलिका दहन: आप भी दुश्मन को मात देने की सोच रहे हैं...

Saturday, Mar 07, 2020 - 11:48 AM (IST)

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रमन और अमित सहपाठी थे। रमन एक मेधावी छात्र था लेकिन अमित मन लगाकर नहीं पढ़ता था। उसका ध्यान शरारतों की तरफ  ही रहता। कभी किसी का उल्टा-पुल्टा चित्र बनाकर उसके नीचे बिल्ली, गधा, बंदर आदि लिख देता और कभी किसी सहपाठी की कोई वस्तु निकालकर दूसरे के बस्ते में रख देता। नतीजा निकलता कि उन दोनों में झगड़ा हो जाता और अमित मन ही मन खुश होता रहता।

इस बार जब परीक्षा हुई तो रमन के बराबर वाली पंक्ति में ही अमित बैठा परीक्षा दे रहा था। अमित को कुछ आता तो नहीं था, इसलिए वह बार-बार रमन को नकल करवाने के लिए कह रहा था लेकिन रमन अपना पेपर हल करने में व्यस्त रहा। रमन को तो वह पहले से ही अच्छा नहीं लगता था, अब उसके मन में उसेे नकल न करवाने का गुस्सा बढ़ गया।  होली का त्यौहार आ रहा था। अमित ने होली के त्यौहार पर कुछ करने का निर्णय किया। 

 होली में केवल एक दिन बाकी रह गया था। अमित ने पापा से 500 रुपए लिए ताकि वह एक बड़ी पिचकारी और अलग-अलग रंग खरीद कर ला सके लेकिन उसने रमन पर कौन-सा रंग फैंकना था, उसके अलावा किसी और को नहीं पता था। नमन और शक्ति अमित के दोस्त थे। स्कूल से छुट्टी होने के पश्चात तीनों दोस्त बाजार की तरफ रवाना हो गए ताकि अपनी-अपनी पसंद की पिचकारियां खरीद सकें। नमन और शक्ति ने रंग भी खरीदे लेकिन अमित ने केवल थोड़ा-सा रंग ही खरीदा।

‘‘अरे केवल इतना-सा रंग?’’  नमन ने अमित से पूछा तो अमित बोला, ‘‘मेरे पास बंदोबस्त है।’’

रमन हर रोज शाम को अपने दादा जी को पार्क में घुमाने के लिए ले जाता था। होली की संध्या को जब वह अपने दादा जी को घुमाने के बाद घर लौट रहा था। तभी उसने देखा कि उसके पास से अमित के पापा अपनी बाइक से गुजरे हैं। सड़क की हालत ठीक नहीं थी। अचानक ही रमन ने देखा कि अमित के पापा की जेब से मोबाइल फिसलकर सड़क पर आ गिरा है। रमन ने उन्हें आवाजें भी दीं लेकिन वह तेज गति से आगे निकल चुके थे।

 रमन ने फटाफट जाकर मोबाइल उठाया। उसने फोन करने की कोशिश की लेकिन उसका पासवर्ड लगा हुआ था।  रमन ने पहले दादा जी को घर छोड़ा। फिर वह मोबाइल लेकर अमित के घर की तरफ जाने लगा।  रमन ने अमित के घर की घंटी दबाई। अमित की मम्मी ने दरवाजा खोला। अमित की मम्मी ने उसका हालचाल पूछकर उसे ड्राइंग रूम में बिठा दिया। तब तक अमित भी आ गया।

 ‘‘अरे तुम ?’’ अमित को अपनी आंखों पर यकीन न हुआ।

 अमित के पापा भी ड्राइंग रूम में आ गए। उनके चेहरे पर थोड़ी परेशानी नजर आ रही थी।

‘‘अंकल जी, आप कुछ परेशान से लग रहे हैं। खैरियत तो है?’’ रमन ने पूछा।

 अमित के पापा बोले, ‘‘बेटा मैं अपना मोबाइल ढूंढ रहा हूं। पता नहीं कहां रख बैठा हूं या कहीं गिर।’’

 रमन ने झट अपनी जेब से मोबाइल निकालकर उनको देते हुए कहा, ‘‘कहीं यह तो नहीं?’’

अमित के पापा की आंखेें खुली की खुली रह गईं। रमन ने उन्हें सब कुछ बता दिया। अमित के पापा ने उसे गले से लगा लिया।
जब रमन वापस आने के लिए दरवाजे से बाहर निकला तो अमित ने उसे रोक लिया। वह बोला, ‘‘रमन, तुम कितने अच्छे हो लेकिन मैं तुमसे घृणा करता रहा हूं। मुझे आज अपनी गलती का अहसास हो गया है कि मेरी ही नीयत बुरी थी, मैं ही अपराधी जैसी सोच रखता था। मैंने कल होली पर तुम पर पिचकारी में नाली का गंदा पानी भरकर फैंकना था लेकिन आज मुझे अहसास हुआ है कि तुम्हारे जैसे ईमानदार और समझदार दोस्त के बगैर मैं हीरो नहीं बल्कि जीरो हूं। मुझे क्षमा कर देना...।’’

‘‘अमित भाई, आप अपना यह शौक भी पूरा कर लेना। मैं, हाजिर हूं..।’’ 

रमन ने कहा तो अमित की नजरें झुक गईं। वह उसे गले लगाता हुआ बोला, ‘‘क्यों शर्मिंदा कर रहे हो यार।’’

 अमित की मम्मी दरवाजे के पीछे खड़ी उनकी बातें सुन रही थीं।

‘‘वाह यह और भी खुशी की बात है कि सुबह का भूला अमित घर लौट आया है।’’ अमित की मम्मी ने कहा। 

वह फिर बोली, ‘होलिका दहन’ की परम्परा है कि हमें अपने अवगुणों, बुराइयों तथा कुरीतियों को कूड़ा-कचरा समझकर हमेशा के लिए मन से निकाल देना चाहिए। होली दहन वास्तव में प्रेम की अग्नि है जिसमें हमें आपसी नफरत की मंदभावना को जला देना चाहिए। यदि हम सौहार्द और सुख-शान्ति से मिलजुल कर होली खेलेंगे तभी इसके रंगों की सार्थकता है। होली अहिंसा का नाम है, आपसी लड़ाई-झगड़े का नहीं।’’

अगले दिन सुबह होते ही अमित रमन के घर पहुंचा। रमन ने दरवाजा खोला। अमित ने रमन को ‘होली मुबारक’ कहा। दोनों दोस्तों ने हंसते-मुस्कुराते हुए एक-दूसरे को गले लगाया। फिर सभी एक-दूसरे के गाल पर रंग लगाते हुए होली की मुबारक देने लगे।

गली में बच्चों की टोलियां गा रही थीं, ‘‘होली है भई होली है। मिलकर गाओ होली है।’’

Niyati Bhandari

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