होली का असली लुत्फ उठाना है तो जाएं यहां

Tuesday, Mar 19, 2019 - 11:29 AM (IST)

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जैसे कि सब जानते हैं कि होली का त्यौहार नज़दीक है। ये त्यौहार रंगों का त्यौहार माना जाता है। इस दिन पूरे देशभर में विभिन्न प्रकार के रंगों से लोग एक-दूसरे को रंगते हुए प्यार और एकता का जश्न मनाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है हमारे देश में एक ऐसी भी जगह है जहां रंगों से नहीं बल्कि राख से होली खेली जाती है। जी हां, आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन भारत में एक ऐसी जगह पाई जाती है जहां लोग अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए रंगों से नहीं बल्कि मुर्दों की राख से होली खेलते हैं। तो चलिए देर न करते हुए आपको बताते हैं कि आखिर भस्म होली खेलने के पीछे का असल कारण क्या है।

हम बात कर रहे हैं कि बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी जिसे बनारस भी कहा जाता है। जहां होली के दिन लोग रंगों से नहीं बल्कि मुर्दों की चिताओं की राख या भस्म से एक-दूसरे को रंगते हैं। मान्यता के अनुसार काशी के महाश्मशान पर जलती चिताओं की चिता से होली खेली जाती है। बता दें इस बार होलिका दहन 20 मार्च दिन बुधवार और होली का पर्व 21 मार्च यानि गुरुवार को मनाया जाएगा।

कहा जाता है कि एक और जहां पूरा देश अनेक प्रकार के रंगों से होली खेलता है तो वहीं दूसरों ओर बनारस के मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव के भक्त श्मशान की राख से होली खेलते हैं। बता दें ये राख कोई आम राख नहीं होली बल्कि चिताओं की भस्म होती है।

बहुत से लोग होंगे जिन्हें नहीं पता होगा कि इस पीछे का असल कारण भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां पार्वती के लौट आने की खुशी में भगवान शंकर ने चिता की राख से होली खेली थी। बताया जाता है कि यहां कारण है कि यहां के लोग अपने प्रभु यानि भगवान शंकर को रिझाने के लिए चिताओं की राख से होली खेलते हैं।

बताया जाता है कि होली के दिन भस्म होली के आरंभ से पहले श्मशान घाट के देवता महाश्मशानाथ की पूजा-अर्चना की जाती है। जिसे बाद भक्त ढोल-नगाड़ों के साथ श्मशान घाट पर भस्म होली खेली जाती है। मान्यता है कि जो भी भक्त होली के दिन बनारस के मणिकर्णिका घाट पर होली खेलने जाता है उस पर भगवान शंकर की कृपा होती है। इसके साथ ही उसे जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है और उसकी सभई मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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Jyoti

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