होली के हैं अनेकों रंग, खुशियो से भरा है ये त्यौहार

Sunday, Mar 28, 2021 - 02:53 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
होली के त्यौहार की खरीदारी करने के लिए नीलिमा बाजार निकल गई। वहां पहुंचकर जगह-जगह सजे होली के रंगों के ढेर देख कर वह एक दुकान के सामने ठिठक गई। दुकान के अंदर भीड़ होने के कारण वह बाहर से ही सामान का चुनाव करने लगी।

सेल्समैन उसे अलग-अलग डिजाइन की पिचकारियां दिखाने लगा। इतने में उसका ध्यान दूर खड़े एक छोटे से लड़के पर गया जो शायद लिफाफा बीनने वाला था।

उसने अपनी पीठ पर एक बड़ा-सा प्लास्टिक का थैला लटका रखा था। उसकी मासूम निगाहें बड़े ही प्यार से रंगों और पिचकारियों को निहार रही थीं। जैसे ही वह दुकान की ओर बढ़ता सेल्समैन उसे धमका कर वहां से भगा देता। वह दूर जाकर फिर से एकटक उन्हें देखने लगता।

अचानक नीलिमा के मन में न जाने क्या आया, उसने एक पिचकारी और थोड़े से रंग लिए और उसे देने के लिए हाथ बढ़ाया मगर उसने सेल्समैन की ओर देखते हुए सिर हिला कर लेने से मना कर दिया। नीलिमा ने मिन्नत करते हुए सामान उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आ जाओ...डरो मत... यह मैं, तुम्हें दे रही हूं, ले लो!’’

झट से उसने अपनी जेब से दस रुपए का एक मुड़ा-तुड़ा नोट निकाला और उसे पकड़ाने लगा। वह हंसते हुए बोली, ‘‘अरे नहीं, तुम ऐसे ही रख लो।’’ 

सामान पकड़ता हुआ वह धीरे से बोला, ‘‘एक पिचकारी और लेनी है।’’

वह हंस पड़ी और बोली, ‘‘वह किसके लिए?’’

‘‘मेरे दो भाई-बहन हैं छोटे, एक पिचकारी होगी तो दोनों आपस में लड़ेंगे!’’

उसकी बात सुन कर वह स्तब्ध रह गई। तभी उसने एक पिचकारी उसको और पकड़ा दी। उसने झट से उसके हाथ में नोट रखा और पिचकारी लेकर ‘होली आई रे...’ कह कर भागते  हुए भीड़ में कहीं गुम हो गया।

वह उसके चेहरे पर जिस मुस्कान को देखना चाहती थी, उसे देखने से वंचित रह गई मगर उसका दिया हुआ नोट अभी भी उसके हाथों में पड़ा मुस्कुरा रहा था।  -सीमा वर्मा
 

Jyoti

Advertising