होली से जुड़ी ये पौराणिक मान्यताएं नहीं जानते होंगे आप

Friday, Mar 06, 2020 - 03:42 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होली का पर्व मनाया जाता है और इस साल ये खास दिन 09 मार्च दिन सोमवार को पड़ रहा है। कहते हैं कि ये एक ऐसा त्योहार है, जिसमें हर कोई अपने गिले शिकवे दूर कर होली के रंगों में रंग जाता है। पूरे देश में होली की धूम अलग ही होती है। हर काल में इस उत्सव की परंपरा और रंग बदलते रहे हैं। वक्त के साथ सभी राज्यों में होली को मनाने और उसको स्थाननीय भाषा में अन्य नाम से पुकारने लगे। आज हम आपको इस पर्व से जुड़ी कुछ खास जानकारी देने जा रहे हैं, जिस कम ही लोग जानते होंगे।

होलका पर्व
प्राचीनकाल में होली को होलाका के नाम से जाना जाता था और इस दिन आर्य नवात्रैष्टि यज्ञ करते थे। इस पर्व में होलका नामक अन्य से हवन करने के बाद उसका प्रसाद लेने की परंपरा रही है। होलका अर्थात खेत में पड़ा हुआ वह अन्न जो आधा कच्चा और आधा पका हुआ होता है, संभवत: इसलिए इसका नाम होलिका उत्सव रखा गया होगा। प्राचीन काल से ही नई फसल का कुछ भाग पहले देवताओं को अर्पित किया जाता रहा है। 
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होलिका दहन
इस दिन के अनुसार असुर हरिण्याकश्यप की बहन होलिका का दहन हुआ था और प्रहलाद जोकि उनकी गोद में थे वे बच गए थे। इसी की याद में होलिका दहन किया जाता है। यह होली का प्रथम दिन होता है। संभव: इसी कारण इसे होलिकात्वस भी कहा जाता है।
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कामदेव को किया था भस्म 
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म करने के बाद जीवित भी किया था। एक अन्य मान्यता है कि इसी दिन राजा पृथु ने अपने राज्य के बच्चों को बचाने के लिए राक्षसी ढुंढी को लकड़ी जलाकर आग से मार दिया था, इसीलिए होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहा जाता है।

फाग उत्सव 
बता दें कि त्रेतायुग के प्रारंभ में भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया था, इसकी याद में ही धुलेंडी मनाई जाती है। होलिका दहन के बाद 'रंग उत्सव' मनाने की परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के काल से प्रारंभ हुई। तभी से इसका नाम फगवाह हो गया, क्योंकि यह फागुन माह में आती है। कृष्ण ने राधा पर रंग डाला था। इसी की याद में रंग पंचमी मनाई जाती है। श्रीकृष्ण ने ही होली के त्योहार में रंग को जोड़ा था।

Lata

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