Holashtak 2022: 10 से 17 मार्च तक नहीं होंगे शुभ काम, पढ़ें कथा

Tuesday, Mar 08, 2022 - 10:51 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Holashtak 2022: फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलिका दहन तक की अवधि को शास्त्रों में होलाष्टक कहा गया है। यह अवधि इस वर्ष 10 से 17 मार्च अर्थात होलिका दहन तक है। होलाष्टक के दौरान गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, विवाह संबंधी वार्तालाप, सगाई, विवाह, किसी नए कार्य, नींव आदि रखने, नया वाहन एवं आभूषण आदि खरीदने, नया व्यवसाय आरंभ करने या किसी भी मांगलिक कार्य आदि का आरंभ शुभ नहीं माना जाता तथा 16 संस्कार भी नहीं किए जाते।  नवविवाहिता को पहली होली मायके की बजाय ससुराल में मनानी चाहिए।

Story of Kamdev and Shiva: एक मान्यता के अनुसार कामदेव द्वारा भगवान शिव की तपस्या भंग करने से रुष्ट होकर शिव जी ने उसे फाल्गुन की अष्टमी तिथि के दिन भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने शिव की आराधना करके कामदेव को पुनर्जीवित करने की याचना की जो उन्होंने स्वीकार कर ली। महादेव के इस निर्णय के बाद जन साधारण ने हर्ष मनाया और होलाष्टक का अंत धुलैंडी को हो गया। इसी परम्परा के कारण होलाष्टक के 8 दिन शुभ कार्यों के लिए वर्जित माने गए हैं।

Holashtak: इसका ज्योतिषीय कारण है कि अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव के हो जाते हैं। इनके निर्बल होने से मानव मस्तिष्क की निर्णय क्षमता क्षीण हो जाती है और इस दौरान गलत फैसले लेने के कारण हानि की संभावना रहती है। 

विज्ञान के अनुसार भी पूर्णिमा के दिन ज्वारभाटा जैसी आपदा आती रहती है और व्यक्ति उग्र हो जाता है। ऐसे में सही निर्णय नहीं हो पाता। 

जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा, वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र्र छठे या आठवें भाव में हैं, उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए। ये अष्ट ग्रह, दैनिक कार्यकलापों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं।

इस अवसाद को दूर रखने के लिए इन 8 दिनों में मन में उल्लास लाकर वातावरण को जीवंत बनाने के लिए लाल या गुलाबी रंग का प्रयोग विभिन्न तरीकों से किया जाता है। 

लाल रंग के परिधान मन में उत्साह उत्पन्न करते हैं इसीलिए उत्तर प्रदेश में आज भी होली का पर्व एक दिन नहीं अपितु 8 दिन मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण भी इन 8 दिनों में गोपियों संग होली खेलते रहे और अंतत: होली में रंगे लाल वस्त्रों को अग्नि को समर्पित कर दिया।
 
होली मनोभावों की अभिव्यक्ति का पर्व है जिसमें वैज्ञानिकता, ज्योतिषीय गणना, उल्लास, पौराणिक इतिहास, भारत की सुंदर संस्कृति का समावेश है जिसमें सब लोग अपने भेदभाव मिटा कर एक ही रंग में रंगे जाते हैं।

इस दिन से मौसम की छटा में बदलाव आना आरंभ हो जाता है। सर्दियां अलविदा कहने लगती हैं और गर्मियों का आगमन होने लगता है। साथ ही वसंत के आगमन की खुशबू फूलों की महक के साथ प्रकृति में बिखरने लगती है।    

Niyati Bhandari

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