Hindu grihastha ashram: शास्त्रों से जानें कैसा होता है Home Sweet Home

punjabkesari.in Wednesday, Apr 16, 2025 - 07:24 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Hindu grihastha ashram: गृहस्थाश्रम को धन्य एवं श्रेष्ठ कहा गया है। यदि गृहस्थ अपनी परम्परा, दायित्व और मर्यादाओं का पूर्णतया निर्वाह करे तो गृहस्थाश्रम धन्य हो जाता है। यथा :
सानन्दं सदनं सुताश्च सुधिय: कांता प्रियालापिनी।
इच्छापूर्तिधनं स्वयोषिति रति: स्वाज्ञापरा: सेवका:।।
आतिथ्यं पुरपूजनं प्रतिदिनं मिष्ठान प्रानं गृहे।

साधो: संगमुपासते च सततं धन्यो गृहस्थाश्रम:।
अर्थात : जिस गृहस्थ जीवन में आनंदपूर्ण गृह, बुद्धिमान पुत्र, प्रियवंदा स्त्री, इच्छापूर्ति के लिए पर्याप्त धन, अपनी पत्नी से प्रीति, आज्ञाकारी सेवक, अतिथि सत्कार, देव पूजन, प्रतिदिन मधुर भोजन तथा संतों के संग सत्संग का सुअवसर सदा सुलभ होता है, वही गृहस्थाश्रम धन्य है। 

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पद्मपुराण के अनुसार ‘गृहस्थाश्रम: पुण्यतम: सर्वदा तीर्थवद् गृहम।’
अर्थात गृहस्थाश्रम परम पवित्र है, घर सदा तीर्थ के समान है।

जीवन मुक्त, परमसिद्ध विरक्त योगी, यति, सन्यासी भी गृहस्थ के आतिथ्य का आश्रय लेते हैं और गृहस्थ ‘अतिथि देवो भव:’ सार्थक कर अपने को धन्य और बड़भागी समझता है। हिन्दू संस्कृति का प्रसाद (मार्गदर्शन) अपने वंशज तथा मानव मात्र को इस प्रकार मिला :
अभिवादन शीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन: चत्वारि तस्य वर्धंते आयुॢवद्या यशो बलम।

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अभिवादन, विनम्रता, नित्य वृद्धजनों (अपने से श्रेष्ठजनों) की आदर सहित सेवा करने से चार चीजों की वृद्धि होती है- आयु, विद्या, सुयश एवं बल।

‘न गृर्हण गृहस्थ:’
अर्थात केवल घर में रहने से ही कोई गृहस्थ नहीं होता, इसीलिए हमारी संस्कृति स्वरूपा नारी का आदर करने की प्रेरणा देते हुए शास्त्रों में कहा गया है :

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यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
अर्थात जहां नारी की पूजा (आदर) होती है, वहां देवता सदैव रमण किया करते हैं और वह घर, सुख, समृद्धि, श्रीयुक्त होकर स्वर्ग बन जाता है।


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Content Writer

Niyati Bhandari

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