विचार करें, मृत्यु न होती तो संसार कैसा होता ?

punjabkesari.in Wednesday, Apr 09, 2025 - 03:45 PM (IST)

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सहस्रों वर्षों से बड़े-बड़े मनीषी मृत्यु पर विजय पाने के लिए आध्यात्मिक साधना करते रहे हैं, परंतु मृत्यु पर विजय नहीं पाई जा सकी। यह तथ्य दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से सत्य है कि मनुष्य की सदा बने रहने की भावना बलवती है, परंतु मृत्यु अटल है। मृत्यु न होती तो लोग जीवन से तंग आ जाते, मरने को दौड़ते परंतु मर न पाते। अमर होने की उनकी लालसा कितनी विडम्बनापूर्ण होती, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जीवन व्यर्थ, नीरस तथा सौंदर्य रहित होता। यदि मृत्यु न होती तो न कोई धर्म होता, न अनुष्ठान, न कोई पुण्य होता, न पाप, न भविष्य की चिंता होती, न वर्तमान के सुधार की अभिलाषा। सभी धर्मस्थल बंद हो जाते और धर्माचार्य एक किनारे बैठ जाते।

PunjabKesari Hindu beliefs about death

मृत्यु भय के कारण ही मानव में देव आराधना की भावना उत्पन्न हुई और उसने विश्व के एक नियंता की कल्पना की। यदि मृत्यु न होती तो इनके मानने का कोई अर्थ न रह जाता। मृत्यु के पश्चात पुनर्जन्म की भी कल्पना की गई। जब मृत्यु ही न हो तो पुनर्जन्म कैसा। यदि मृत्यु न होती तो सारा दर्शन और चिंतन पद्धति ही बदल जाती।

यदि मृत्यु न होती तो बड़े-बड़े लोग अपने पीछे अपने स्मृति चिन्ह न छोड़ जाते और उन्हें बड़े-बड़े भवन और र्कीत स्तम्भ बनवाने की आवश्यकता ही न होती। अशोक के र्कीत स्तम्भ, कुतुब मीनार, मिस्र के पिरामिड और संसार का सातवां अजूबा ताजमहल अमर होने की लालसा की प्रवृत्ति मात्र हैं। यदि मृत्यु न होती तो संसार का सौंदर्य भी न होता।

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पौराणिक कथाओं में आता है कि कुछ असुरों ने अमर होने के वरदान ले रखे थे। इन असुरों में वृत्तासुर, भस्मासुर, मुर और राहू आदि के नाम लिए जा सकते हैं। अमरता के वरदान पाने पर इन्होंने देव तथा मनुष्य जाति को महान पीड़ा दी। वृत्तासुर को दधीचि ऋषि ने, भस्मासुर को शिव जी ने, मुर को श्री कृष्ण ने और राहू को देवताओं ने समाप्त किया। यदि आज भी कुछ लोग अमर होने की चेष्टा न करें तो निश्चय ही वे पीड़ा पैदा करेंगे और उन्हें समाप्त करने के लिए कई दधीचियों, शिव, कृष्ण और देवताओं को जन्म लेना पड़ेगा।

कहते हैं कि अमरीका के वैज्ञानिक ऐसा अनुसंधान कर रहे हैं, जिससे मृत व्यक्ति को जीवित किया जा सकता है। यदि अमरीका को इसमें सफलता मिल जाती है तो इसका क्या परिणाम होगा? भगवान करे उन्हें सफलता न मिले। यदि सफलता मिलती है तो विश्व में हाहाकार मच जाएगा। आंदोलन छिड़ जाएंगे और अमरीका को अपना अनुसंधान कार्य बंद करना पड़ेगा। कबीर जी ने जब यह कहा था कि ‘अब हम अमर भये न मरेंगे’ तो उनका अमर होने का अभिप्राय यह था कि वह मृत्यु की वास्तविकता को समझ गए थे। वह जीवन मुक्त हो गए थे, इसीलिए उन्होंने स्वयं के लिए अमर होने की बात कही थी।

चाहे तीर्थंकर हों, चक्रवर्ती, वासुदेव या बलदेव ही क्यों न हों, उन्हें शरीर छोड़ना ही पड़ता है। शरीर अमर नहीं होता अपितु कार्य अमर होते हैं। हमारे महापुरुषों ने भी पार्थिव शरीर छोड़ दिया और अपने महान कार्यों से अमर हो गए हैं।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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