Yatra: ये हैं हिमाचल के ‘प्राचीन’ और ‘अनूठे’ मंदिर

Wednesday, Oct 19, 2022 - 12:51 PM (IST)

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Yatra: हिमाचल में ऐसे अनेक स्थल हैं जिनकी ऐतिहासिक एवं पौराणिक पृष्ठभूमि है। वहां ऐसे प्राचीन तथा अनूठे मंदिरों की भी कमी नहीं, जिनकी शान व पहचान पौराणिक काल से लेकर अभी तक कायम है। ये सदैव यायावरों, पर्यटकों तथा शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं।

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बिना छत का मंदिर
मंडी से 110 किलोमीटर दूर सराज घाटी में मां शिकारी देवी का मंदिर है, जिस पर छत नहीं है। मां खुले आसमान तले रहना पसंद करती हैं। मंदिर के दर्शन करने लाखों की संख्या में यात्री आते हैं। करसोग घाटी से भी यहां पहुंचा जा सकता है। सर्द ऋतु में बर्फबारी के दौरान मंदिर दो-तीन माह बंद रहता है।

खजाने वाली झील
शिकारी देवी के समीप ही देव कमरूनाग का मंदिर है। इस मंदिर के सामने झील है। लोगों की मान्यता है कि इस झील में देव कमरू नाग का करोड़ों का खजाना हीरे-जवाहरात/ सोना-चांदी रूप में है। नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित इस झील में श्रद्धालु अपनी मन्नत मांगने या पूरी होने पर सिक्के या सोना-चांदी चढ़ाते हैं। आषाढ़ माह में यहां सारानाहुली मेला लगता है। घने देवदार के जंगल में स्थित देवस्थल हाल ही के वर्षों में पर्यटकों का भी आकर्षण का केंद्र रहा है।

तैरते भूखंड
मंडी से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रिवालसर हिंदू, बौद्ध तथा सिखों की सांझा संस्कृति का प्रतीक स्थल है। कस्बे के मध्य में पवित्र झील में भूखंड तैरते नजर आते हैं। बैसाखी के अवसर पर यहां मेले का आयोजन होता है। बौद्ध अनुयायियों की यह पवित्र स्थली है। लोसर पर्व यहां धूमधाम से मनाया जाता है। विदेशी पर्यटकों के बीच यह स्थल अधिक लोकप्रिय है। इसी तरह पराशर मंदिर अपनी अनूठी स्थापत्य कला व यहां स्थित पवित्र झील के लिए देश भर में मशहूर है।

250 ग्राम का गेहूं का दाना
पांडवों के समय के इस मंदिर में लाखों वर्षों से धूना जल रहा है। मंदिर का इतिहास परशुराम से भी जुड़ा है। मंदिर प्रांगण में अनेक प्राचीन मूर्तियां हैं। मंदिर के भंडार गृह में रखा 250 ग्राम का गेहूं का दाना आकर्षण का केंद्र है। इसे मंदिर के साथ अन्नपूर्णा मंदिर के समीप खोजा गया है। यहां बेखल झाड़ी से बना ढोल भी प्राचीन समृद्धता को दर्शाता है। इसे भीम के ढोल के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा ही ढोल ममेल मंदिर वे तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामाक्षा मंदिर में भी है।

कोल बांध जलाशय
मंडी जनपद में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तत्तापानी में गर्म पानी के चश्मे आकर्षण का केंद्र रहे हैं। कोल बांध के निर्माण से बने जलाशय के कारण यहां के चश्मे जलाशय में डूब गए हैं लेकिन सरकार ने इनको अन्यत्र विकसित कर दिया है ताकि इस स्थल की धार्मिक आस्था यथावत बनी रहे। 800 मैगावाट कोल बांध परियोजना के निर्माण से यहां मानव झील बनी है जोकि पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इस झील में नौकायन व रिवर राफ्टिंग का लुत्फ पर्यटक उठा रहे हैं। कोल बांध परियोजना जलाशय में साहसिक खेल गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा, जिसके तहत जलाशय में नौकायन व इसके समीप स्थलों पर पर्वतारोहण एवं ट्रैकिंग जैसे कार्यक्रम आयोजित होंगे। साहसिक खेल गतिविधियों से स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी मुहैया होंगे।

प्राचीन लोकतंत्र
कुल्लू में मणिकर्ण घाटी के ‘मलाणा’  गांव को विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र  माना जाता है। इसका ‘संचालन यहां के देवता ‘जमलू’ करते हैं। इस गांव में सदियों से ग्राम स्वराज प्रणाली चल रही है। इसके लिए परिषद का गठन किया जाता है, जिसमें 11 सदस्य होते हैं। चार वार्डों से सदस्यों का चुनाव होता है। प्रशासनिक कार्रवाई के लिए दो सदन बनाए गए हैं। गांववासियों के विवाद को इन्हीं सदनों में निपटाया जाता है। फिर भी समस्या हो तो देवता जमलू की अदालत में निर्णय होता है, जो सर्वमान्य होता है। आज भी यह परम्परा है।

हिंडबा मंदिर
मां हिंडबा का मंदिर पर्यटन नगरी मनाली से लगभग तीन किलोमीटर दूर पुरानी मनाली में देवदारों के घने जंगल के बीच स्थित है। यह पैगोडा शैली में बना काष्ठकला का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के गर्भगृह में माता की पाषाण मूर्ति है। मान्यता है कि जब पांडव वनवास में थे, उस दौरान भीम ने हिंडबा के राक्षस भाई को मारकर क्षेत्र को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इसके बाद हिंडबा ने उनसे विवाह कर लिया। कहते हैं कि कुल्लू राज परिवार के पहले शासक विहंगमणिपाल को माता ने ही यहां का राजकाज बख्शा था।

सांस्कृतिक धरोहर कुल्लू दशहरा
17वीं शताब्दी में कुल्लू के राजपरिवार द्वारा देव-मिलन से शुरू हुआ महापर्व दशहरा आज भी घाटी की देव संस्कृति को जिंदा रखने का महत्वपूर्ण प्रयास है। यह पर्व जहां कुल्लू के लोगों के भाईचारे का मिलाप है, वहीं घाटी में कृषि व बागवानी कार्य समाप्त होने के बाद ग्रामीणों की खरीदारी का भी प्रमुख पर्व है।

Niyati Bhandari

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