इबादत से कई बढ़कर है ज़रूरतमंद की सेवा

Thursday, Aug 01, 2019 - 09:13 AM (IST)

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खिरकानी और हसन दोनों भाई खुदा की इबादत में लगे रहते थे। उनके घर में उनके अलावा बूढ़ी मां भी रहती थी। कुछ दिनों से मां बीमार रहने लगी थी इसलिए दोनों भाइयों ने तय किया कि वे रोज़ मस्जिद नहीं जाएंगे। एक भाई मस्जिद जाता और दूसरा घर पर मां की देखभाल करता। कुछ दिन ऐसा चला लेकिन मां के हालात देख लगता नहीं था कि वह जल्दी ठीक होगी और दोनों भाइयों का रोज़ मस्जिद जाना संभव हो पाएगा।

अब हसन का मन करता कि वह अधिक समय खुदा की इबादत करे जिससे मन को सुकून मिले। खिरकानी को पता चला तो वह बोला, ‘‘भैया, अब से आप रोज़ खुदा की इबादत करने मस्जिद चले जाना। मैं मन में ही खुदा को याद कर लिया करूंगा।’’

अब हसन रोज़ मस्जिद में खुदा की इबादत करने लगा। एक दिन उसे खुदा की आवाज़ सुनाई दी, ‘‘बंदे, तेरे भाई के कर्मों से खुश होकर मैंने उसे जन्नत दी है और उसी के कारण मैं तेरे भी गुनाह माफ़ कर तुझे जन्नत बख्शता हूं।’’

खुदा की बात सुनकर हसन का सिर चकरा गया। उसने विनम्रता से पूछा, ‘‘परवरदिगार, मैं हर समय आपकी बंदगी में लगा रहता हूं। भाई से ज्यादा मेरा आपसे लगाव है। ऐसे हालात में तो मेरे भाई को मेरी वजह से जन्नत मिलनी चाहिए थी लेकिन हो उलटा रहा है। ऐसा क्यों?’’

खुदा ने कहा, ‘‘बंदे, बात यह है कि इस समय मुझे तेरी इबादत की इतनी ज़रूरत नहीं है जितनी वृद्धा मां को तेरी सेवा की है।

मां व जरूरतमंद की सेवा इबादत से कहीं ज्यादा सुकून देने वाली होती है।’’

खुदा की बात सुन हसन का सिर झुक गया। उसे अपनी गलती का एहसास हो गया था।

Jyoti

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