करते हैं ईश्वर पर भरोसा तो नहीं है संग्रह की आवश्यकता

Saturday, May 09, 2020 - 11:22 AM (IST)

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शाहशुजा किरमानी किरमान के बादशाह थे जो बाद में बड़े सूफी संत हुए। एक बार उनकी बेटी के लिए नजदीक के सुल्तान ने अपने बेटे का रिश्ता भेजा। इस रिश्ते से शाहशुजा मायूस हो गए, क्‍योंकि डे बादशाहत से लगाव ही नहीं रहा था और वह अपनी बेटी को किसी महल में नहीं 5 भेजना चाहते थे। एक रोज वह मस्जिद में नमाज पढ़ रहे थे। नजदीक ही एक नौजवान भी नमाज पढ़ रहा था । नौजवान बाहर निकला, तो उसके पीछे वह भी निकल आए। उन्होंने देखा कि नौजवान एक गुलाम के पैरों में लगे कांटे निकाल कर उसे पानी पिला रहा था।

शाहशुजा को उसकी नेकदिली व सादापन बेहद पसंद आया और उन्होंने उससे अपनी बेटी की शादी की हामी भरवा ली। शादी के बाद बादशाह की बेटी उस गरीब नौजवान के घर पहुंची। लड़के ने एक टूटे बर्तन में दूध और सूखी रोटी उसे दी और कहा, यही रखा था । इसे खाकर शुक्र करो। यह देखकर लड़की उठी और नौजवान को छोड़कर झोपड़ी से जाने लगी।

नौजवान बोला, "मैंने पहले ही कहा था मेरी गरीबी में महलों की जीनत नहीं रह पाएगी।'' 

लड़की ने जवाब दिया, मैं अपने बाप से पूछने जा रही हूं कि यह कौन है, जो अगले वक्त के लिए भी खाना बचाकर रख लेता है ? अगर वह खुदा का नेक बंदा होगा, तो उसने कुछ भी जमा न छोड़ा होगा। बादशाह की लड़की की यह बात सुनकर नौजवान बड़ा शर्मिंदा हुआ और बोला, "मुझे माफ करो। मुझमें शाहशुजा जैसी फकीरी नहीं। उसने तो अपनी बेटी को भी महल कौ चमक की जगह सूफी पंखों की हवा दी है। हर झोपड़ी में गरीब नहीं होता। शाहशुजा तो महलों का फकौर है और तुम उन फकीरों की मल्लिका हो।'' 

शाहशुजा की बेटी भीआला दर्ज की सूफी संत हुईं और हमेशा एक ही सबक देती रहीं कि अगर तुम्हें अपने ईश्वर पर भरोसा है तो संग्रह मत करो। जमाखोरी कच्चे ईमान का नतीजा है।
 

Jyoti

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