Hariyali teej vrat katha: भगवान शिव ने मां पार्वती को सुनाई थी हरियाली तीज की कथा
punjabkesari.in Wednesday, Aug 07, 2024 - 06:43 AM (IST)
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Hariyali teej vrat katha: पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने माता पार्वती जी को उनके पिछले जन्म की याद दिलवाई कि किस तरह तुमने बाल्यावस्था में घोर तप किया था। तुमने उस तपस्या में अन्न, जल का त्याग कर दिया था। तुम्हारे पिता तुम्हारी इस तपस्या को देखकर बहुत निराश हो गए थे। फिर एक दिन नारद जी तुम्हारे घर आए। तुम्हारे पिता ने उनके आने का कारण पूछा फिर नारद जी ने बताया कि मैं भगवान विष्णु जी के कहने पर यहां आया हूं।
Hariyali teej vrat katha: पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने माता पार्वती जी को उनके पिछले जन्म की याद दिलवाई कि किस तरह तुमने बाल्यावस्था में घोर तप किया था। तुमने उस तपस्या में अन्न, जल का त्याग कर दिया था। तुम्हारे पिता तुम्हारी इस तपस्या को देखकर बहुत निराश हो गए थे। फिर एक दिन नारद जी तुम्हारे घर आए। तुम्हारे पिता ने उनके आने का कारण पूछा फिर नारद जी ने बताया कि मैं भगवान विष्णु जी के कहने पर यहां आया हूं।
भगवान विष्णु आपकी कन्या की तपस्या से प्रसन्न होकर उससे विवाह करना चाहते हैं। तुम्हारे पिता तुम्हारे विवाह के लिए खुशी-खुशी मान गये। फिर नारद जी तुम्हारे पिता से आज्ञा लेकर वहां से चले गए परंतु जब तुम्हें अपने विवाह का समाचार मिला तब तुम बहुत निराश हो गई।
फिर तुम्हारी सहेली ने तुम से तुम्हारे दुख का कारण पूछा तब तुमने उसे बताया कि मैं सच्चे मन से भगवान शिव का वरण कर चुकी हूं। भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाना चाहती हूं। मेरे पास प्राण त्यागने के अतिरिक्त अब कोई ओर रास्ता नहीं है। फिर तुम्हारी सखी ने तुम्हे बताया कि जिस को भी मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया हो तब जीवन भर उसी के साथ रहना चाहिए। तुम्हे भगवान शिव के प्रति सच्ची आस्था रखनी चाहिए। तुम्हारी सहेली तुम्हें वन में लेकर चली गई।
उधर तुम्हारे पिता तुम्हे घर में न पाकर बड़े दुःखी हुए उन्होंने तुम्हारी खोज शुरू करवा दी। मगर तुम अपनी तपस्या में लीन रही। तुम्हारी इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मैंने तुमसे वर मांगने को कहा तब तुमने मुझे कहा कि ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूं, मैं आपकी अर्धांगिनी बनना चाहती हूं। मैं तुम्हें मनवांछित वर देकर वहां से चला गया।
तब तुम्हारे पिता तुम्हारी खोज करते वहां तक आ पहुंचे। उन्होंने तुम से घर जाने को कहां, फिर तुमने उन्हें अपनी तपस्या के बारे में बताते हुए कहां कि तुम भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हो। आप मेरा विवाह विष्णु जी से करने का निश्चय कर चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर से चली गई थी। फिर तुम्हारे पिता ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और कुछ समय के पश्चात पूरे विधि – विधान के साथ हमारा विवाह हुआ।
भाद्रपद कि शुक्ल तृतीया को तुमने जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत को जो भी सच्ची निष्ठा से करेगा उसे मन वांछित फल की प्राप्ति होगी। कुंवारी महिलाओं को मनभावन जीवनसाथी मिलेगा और विवाहित महिलाओं का सुहाग बना रहेगा।