'हैपिनेस क्लास' में करें प्रवेश, खुश रहने के लिए याद रखें ये बात
Sunday, Jul 17, 2022 - 01:59 PM (IST)
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Happiness class: जिस दिन आप यह निश्चय कर लेंगे कि मैं हमेशा आनंद में रहूंगा तब फिर दुनिया की कोई ताकत आपको दुखी नहीं कर सकेगी। यदि कोई आपके बारे में बुरा कहता है, आपकी आलोचना करता है, नुक्सान पहुंचाता है या फिर कोई विषम स्थिति आती है तो स्वयं से प्रश्र करें, ‘‘मुझे दुखी होने की क्या आवश्यकता है? मैं दुखी कैसे हो सकता हूं? मैं तो स्वयं आनंद हूं’’।
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सुखी जीवन की कुंजी इसी बात में है कि सतत् स्मरण रखें, ‘‘मैं इस जगत में सुख प्राप्त करने आया हूं क्योंकि मैं स्वयं आनंद हूं। मैं यहां दूसरों को सुख देने आया हूं न कि स्वयं दुखी होने।’’
यदि अन्य सभी विकल्पों को छोड़कर आपने इस सत्य को दृढ़ता से धारण कर लिया तो विश्वास करिए कि आपके लिए सुखी जीवन के अनेक द्वार खुल जाएंगे।
आपको दृढ़तापूर्वक यह निश्चय करना पड़ेगा कि, ‘‘मैं हमेशा प्रसन्न रहूंगा और दुनिया की कोई भी वस्तु व्यक्ति या परिस्थिति मुझे दुखी नहीं कर सकती।’’
यदि कोई बीमारी हो भी जाए तो यही दृष्टिकोण रखें। खुद से बार-बार कहें, ‘‘मैं पूर्णरूप से स्वस्थ हो जाऊंगा। मेरी प्रकृति ही स्वस्थ रहने की है। यह तो मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। यह शरीर मुझे मिला ही इसलिए है कि अंतिम दिन तक यह मेरे लिए कार्य करता रहे। मैं इस जगत में रोग ग्रस्त होकर जीवन जीने नहीं आया हूं। मुझे तो स्वस्थ जीवन जीना है।’’
यह स्वस्थ और सुंदर जीवन का महत्वपूर्ण सूत्र है। इसके अतिरिक्त यह भी धारणा दृढ़ करें कि जो भी कार्य पूरे मनोयोग से किया जाता है उसमें सफलता अवश्य मिलती है। यही जीवन का सत्य है। हम स्वाभाविक रूप से सकारात्मक हैं। इसलिए ऐसा प्रयास करें कि सफलता के प्रति सकारात्मकता शरीर के रोम-रोम में प्रतिध्वनित होने लगे।
तीसरी महत्वपूर्ण धारणा है कि ‘‘मैं स्वयं आनंद हूं।’’ भावपूर्वक प्रतिदिन इसका स्मरण करें ताकि इसके प्रति आपकी सहज निष्ठा बन जाए। जब कभी दुखद परिस्थिति आए तो विचार करें, ‘‘मैं दुखी कैसे हो सकता हूं। मेरी तो प्रकृति ही सुख स्वरूप है।’’
जैसे शक्कर से मिठास अलग नहीं की जा सकती, अग्रि से ऊष्मा और सूर्य से प्रकाश, उसी प्रकार तुम स्वयं आनंद हो, सुख स्वरूप हो तो फिर उसके बिना तुम्हारा अस्तित्व ही कैसे हो सकता है?
एक बार ज्ञानानुभूति हो जाने पर कि, ‘‘मैं आनंद हूं’’ जीवन की सारी प्रतिकूलताएं अपने-आप समाप्त हो जाती हैं। जो व्यक्ति अपने अंतरतम में स्थित आत्मस्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाता है उसे फिर बाह्य परिस्थितियां, व्यक्ति, कामनाएं और विषय विचलित नहीं कर पाते। ऐसे व्यक्ति को फिर जीवन में कोई भय नहीं सताता। वह कभी न क्रोधित होता है और न निराश। निष्कर्षत: हमें तीन बातों का सतत् स्मरण करना चाहिए ताकि उनके प्रति हमारी सहज निष्ठा बन जाए-
मैं हमेशा प्रसन्न और स्वस्थ रहूंगा। यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।
सफलता के प्रति सकारात्मकता मेरा सहज स्वभाव है। पूरे मनोयोग से किए कार्य में सफलता अवश्य मिलती है।
मैं स्वयं आनंद हूं फिर मैं दुखी कैसे हो सकता हूं? मेरी तो प्रकृति ही सुख स्वरूप है।