Hanuman Jayanti 2020: आज भी रहस्यात्मक है श्री हनुमान का जन्म स्थान

Monday, Apr 06, 2020 - 08:50 AM (IST)

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वर्तमान झारखंड प्रदेश के अंतर्गत छोटानागपुर का दक्षिणी हिस्सा वास्तव में दण्डकारण्य का प्रवेश द्वार है। यहां जनपद गुमला के प्रखंड गुमला (गोमेला) अंतर्गत आंजन नामक ग्राम है। इसे माता अंजनी एवं केसरीनंदन, शंकर सुवन, पवन पुत्र हनुमान की जन्मस्थली माना जाता है। गुमला से उत्तर की ओर 15 किलोमीटर दूर घाघरा मार्ग पर एक ग्राम है टोटो। टोटो से पश्चिम की ओर 6 किलोमीटर दूर है आंजन। जनपद लोहरदगा मुख्यालय से यह 40 किलोमीटर दूर है। झारखंड की राजधानी रांची से लोहरदगा, घाघरा, टोटो, फिर आंजन है।



आंजन ग्राम से साढ़े 6 किलोमीटर दूर है आंजन पहाड़, जिसकी एक गुफा में लगभग 3 फुट की ऐसी प्रतिमा मिली है, जिसमें माता अंजनी की गोद में बाल रूप हनुमान बैठे हैं। यह प्रतिमा विश्व में अद्वितीय है। आंजन ग्राम में प्रमुखत: उरांव जनजाति के निवासी हैं। इस गांव के चहुं ओर इसी जाति का निवास प्रमुखत: है। ये माता अंजनी एवं हनुमान को अपने में से ही मानते हैं। इनका कथन है कि हनुमान व उनकी माता अंजनी उनके पूर्वज हैं, जिनकी वे पूजा करते हैं।


लोहरदगा, गुमला व सिमडेगा जिलों में हर गांव में ईसाईकरण हुआ है परंतु आंजन के इर्द-गिर्द के निवासी जो सभी श्री राम भक्त व हनुमान भक्त हैं, अपने को ऊँ राम कहते हैं, उरुगन ठाकुर हैं। ये लोग प्रत्येक वर्ष चैत्र रामनवमी को एकत्र होकर आंजन पहाड़ की उस गुफा के ऊपर का भारी पत्थर हटाकर प्रतिमा की पूजा करते थे, पश्चात पुन: पत्थर रखकर चले आते थे।

वि.सं. 2010 (सन् 1953 ई.) में आंजन ग्राम में मंदिर की स्थापना हुई। वि.सं. 2042 (सन् 1985-86 ई.) में श्रीहरि वनवासी विकास समिति, रांची द्वारा आंजन में मंदिर निर्माण कर उक्त प्रतिमा की छवि की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। अब चूंकि गुफा से प्रतिमा को यहीं ले आया गया है तो भक्तजन यहीं पूजन करने लगे, फिर भी लोग गुफा के दर्शन को जाते रहे। अत: बाद में माता अंजनी की गोद में बैठे बाल हनुमान की प्रतिमा पहाड़ की गुफा में भी स्थापित की गई।



आंजन बहुत ही पुराना गांव है। यहां शिवलिंग की पूजा-अर्चना की परम्परा अति प्राचीन है। शिवधाम भी पास ही है। वैसे शिवलिंगनुमा पत्थर खेत टांड़-डांड़ में भी बिखरे मिलते हैं। स्थानीय किंवदंती है कि हनुमान जन्म के पश्चात माता अंजनी आगे एक वर्ष के 360 दिनों की गणना के अनुसार प्रत्येक दिन एक तालाब में स्नान कर एक नए स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर, महुए का एक पेड़ लगाती थीं। रांची गजेटियर के अनुसार किसी प्राचीन राजा ने यहां 300 शिवलिंगों की स्थापना की थी एवं 300 तालाब खुदवाए थे।


अभी भी यहां 22 शिवलिंग, 25 महुए के पेड़ एवं साथ ही सेयान, पुरईन, करकट आदि नामों के कुल 14 तालाब बचे हुए हैं। वैसे आज भी प्राय: 100 से अधिक शिवलिंग उस काल के हैं, जो मूल स्थानों पर पड़े हैं पर 22 की स्थिति अच्छी है।

आंजन पहाड़ पर स्थित चक्रधारी मंदिर में आठ शिवलिंग दो पंक्तियों में स्थापित हैं। इन्हें अष्ट शंभू कहा जाता है। चक्रधारी (मंदिर में स्थापित) शिवलिंग के ऊपर चक्र है जो अपने ढंग का अकेला है क्योंकि चक्रधारी शिवलिंग संभवत: और कहीं नहीं है। यह चक्र एक भारी पत्थर का बना है। चक्र के मध्य एक छेद है। शिवलिंग के अति समीप एक त्रिशूल स्थापित है।

यहां आदिवासी (जनजाति) एवं सदावासी (सदान) सभी समान रूप से पूजन करने आते हैं। कहा जाता है कि यहां के जनजाति पुजारी बैगा अपने दल के साथ माता अंजनी की पूजा करके जब यहां के सर्वप्रमुख शिवलिंग चक्रधारी बाबा की पूजा करते हैं तो निश्चित रूप से आकाश मेघाच्छादित होकर वर्षा होती है। आंजन ग्राम में वि.सं. 2010 (सन् 1953 ई.) में सर्वप्रथम शिव मंदिर का निर्माण हुआ था, जबकि आंजन पहाड़ पर चक्रधारी शिव मंदिर प्राचीन है।



आंजन में नकटी देवी का स्थान अति प्राचीन है। अंजनी गुफा से सटी एक पहाड़ी है, जिसे धमधमिया पहाड़ी कहा जाता है। इस पहाड़ी का आकार बैल की तरह है। इसमें चलने पर एक स्थल पर धम-धम की आवाज होती है। इससे अनुमान होता है कि पहाड़ी के नीचे खाली स्थान है। यहां के लोगों का कथन है कि इस पहाड़ी के नीचे माता अंजनी का कोषागार था। माता अंजनी अपनी बहुमूल्य वस्तुओं को यहां रखा करती थीं। कालक्रम से यह ढक गया। अत: चलने पर धम-धम होता है।

अंजनी को सर्वाधिक सहृदय, दयालु तथा भक्तों की मनोकामना की पूर्ति में सहायक देवी के रूप में मानकर पूजा की जाती है। इन्हें आंजन की ग्रामदेवी भी माना जाता है। अंजनी माता जिस गुफा में रहती थीं, उसका प्रवेश द्वार एक विशाल पत्थर की चट्टान से बंद है। गुफा के द्वार के एक छिद्र से अक्षत एवं पुष्प अंदर चढ़ाते हैं।



यह गुफा अंदर से 1500 फुट से अधिक लंबी है। लोगों का ऐसा विश्वास है कि यह गुफा खटवा नदी तक जाती है, जहां से माता अंजनी कभी-कभार खटवा नदी तक स्नान करने जाती थीं और लौट आती थीं। खटवा नदी में भी एक सुरंग है। ग्रामीण बतलाते हैं कि यह सुरंग आंजन गुफा तक ले जाती है, किंतु किसी में यह साहस नहीं होता कि इस सुरंग से आगे बढ़ा जाए। 

आंजनधाम का इतिहास गौरवपूर्ण है। यह श्री राम के परम भक्त हनुमान की जन्मस्थली है। लुप्त इतिहास के प्रकट होने, सभ्य संसार को यहां अद्वितीय प्रतिमा के दर्शन मिलने से अब जनजातिगण (आदिवासी), सदावासी (सदान), प्रवासी यानी अन्य राज्यों व प्रदेशों के भारतवासी जनों का यहां आना-जाना लगा रहता है। कुछ नए निर्माण भी हुए हैं।



विशेष : आंजन से लगभग 35 किलोमीटर पूर्व-दक्षिण में किष्किंधा पर्वत, पालकोट (गुमला) में है और वहां से इतनी ही दूर पूर्व-दक्षिण में श्री रामरेखा धाम है। गुमला से दक्षिण-पश्चिम में भगवान श्री राम की प्रसिद्ध गुफा, रामगुफा है।

झारखंड के जनपद रामगढ़ के प्रखंड गोला में मुख्यालय से पूर्व की ओर डीमरा संर्गडीह के उत्तर पहाड़ पर भगवान श्री राम, लक्ष्मण व सीता के चरण चिन्ह विद्यमान हैं, जहां मकर संक्रांति व श्री रामनवमी पर मेला लगता है। भगवान रामचंद्र के आगमन के चिन्ह जनपद चतरा के भदुली एवं कोल्हुआ में विद्यमान हैं।

झारखंड में महाभारतकालीन कई स्मृतियां एवं संरचनाएं आज भी स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं। जैसे बानादाग (हजारीबाग), भदुली व कोल्हुआ (चतरा), पिस्कानगड़ी (रांची) यहां महर्षि कर्दम का आश्रम ‘कर्दमा’ है, जो अब कोडरमा कहलाता है।

महर्षि गर्ग का आश्रम स्थल व उनके नाम से जानी जाने वाली नदी गर्ग अब गरगा कहलाती है, जो वर्तमान बोकारो जिले की बोकारो स्टील लि. कंपनी से पूर्व में है।

Niyati Bhandari

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