हनुमान जी की कृपा से आपके जीवन में भी होंगे चमत्कार, कर लिया ये काम

Monday, Mar 02, 2020 - 06:21 PM (IST)

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यूं तो भगवान की पूजा करने के लिए किसी खास दिन की कोई ज़रूरत नहीं होती। जब भी सच्चे मन से भगवान को याद किया जाता है मगर ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर इन देवी-देवताओं को उनके दिन अनुसार पूजा जाता है तो दोगुना चौगुना लाभ प्राप्त होता है। बता दें इसमें हर देवी-देवता को सप्ताह का एक-एक दिन समर्पित किया गया है। जिसमें से मंगलवार का दिन हनुमान जी का माना जाता है। कहा जाता है इस दिन इनकी आराधना अधिक फलदायी मानी जाती है। बल्कि मान्यता तो ये है कि जो भी जातक इस दिन इनकी पूजा करता है उसके जीवन के सभी संकट पल में छू मंतर हो जाते हैं। मगर कुछ लोग ऐसे होते हैं या यूं कहें कि लगभग सभी लोग ऐसे होते हैं जिनके पास अपने दिनचर्या में इतना समय नहीं मिल पाता कि वो विधिवत इनकी पूजा कर सके। तो ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए? इसका जवाब है हनुमान चालीसा। जी हां, मान्यता है कि जो व्यक्ति विधि विधान के साथ इनकी पूजा करने में सक्षम न हो अगर वो सच्चे मन से इसका पाठ कर लें तो जीवन के संकट तो कम होते ही हैं, बल्कि ऐसे ऐसे चमत्कार होने लगते हैं जिनके बारे में इंसान सोच भी नहीं पाता। 

वैसे तो लगभग हनुमान जी के सभी भक्तजन हर रोज़ इसका पाठ करते हैं परंतु मंगलवार या शनिवार किया इसका पाठ सबसे लाभदायक माना जाता है। हनुमान चालीसा के पाठ से पाठकर्ता की कामनाएं भी पूरी होते हैं। लेकिन अगर कोई हनुमान भक्त लगातार 7 दिनों तक हर रोज 7 बार उगते हुए सूर्य या भगवान राम जी के सामने श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें तो कुछ ही दिनों उनकी एक दो नहीं अनेक मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

।। श्री हनुमान चालीसा ।।
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिकै सुमिरौं पवनकुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार॥

।। चौपाई ।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥ 
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥
महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सँजीवनि लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
असकहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिक्पाल जहाँ ते।
कबी कोबिद कहि सकैं कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी शरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनौं लोक हाँक ते काँपे॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोहि अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
असबर दीन्ह जानकी माता ॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
जो शत बार पाठ कर कोईमहा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा॥

।। दोहा ।।
पवनतनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥
 

Jyoti

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