व्यास पूजा: आज मनाया जाएगा महर्षि वेद व्यास का जन्मोत्सव
Tuesday, Jul 16, 2019 - 10:51 AM (IST)
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पौराणिक महाकाव्य युग की महान विभूति, वेदों के सारगर्भित ज्ञान महाभारत, अट्ठारह पुराण श्रीमद् भागवत, शिव पुराण इत्यादि तथा ब्रह्मसूत्र जैसे परम कल्याणमयी साहित्य दर्शन के रचयिता तथा भगवान विष्णु जी के अंशावतार चिरंजीवी भगवान वेद व्यास जी का जन्म आषाढ़ मास की पूर्णिमा को कालपी में यमुना नदी के किसी द्वीप पर हुआ तथा श्याम वर्ण होने के कारण यह कृष्ण द्वैपायन कहलाए। द्वैपायन का अर्थ है द्वीप में निवास करने वाला। वेद व्यास जी ऋषि पराशर के पुत्र थे। महर्षि वेद व्यास जी ने धर्म की ग्लानि देख कर वेद का विभाग कर उन्हें चार भागों में विभक्त कर दिया तथा ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद के रूप में उनका नामकरण किया ताकि अल्पबुद्धि एवं स्मरण शक्ति रखने वाले मनुष्य भी वेदों का अध्ययन कर सके।
वेद में निहित ज्ञान अत्यंत गूढ़ होने के कारण, वेदों के सारगर्भित ज्ञान को लोक व्यवहार में समझाने के लिए महर्षि वेद व्यास जी ने पंचम वेद महाभारत की रचना की तथा पुराणों में वर्णित कथाओं के माध्यम से वेद ज्ञान की ध्वनि को जन-साधारण को सुलभ कराया ताकि पुराणों में वर्णित वेदों के मूल भाव को समझ कर कलियुग में उनका कल्याण मार्ग प्रशस्त हो सके।
महाभारत ग्रंथ का लेखन विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी ने महर्षि वेद व्यास जी से सुन कर किया था। भगवान शिव ने सहस्र कोटि मंत्रों से महा पुराण की रचना की। भगवान वेद व्यास जी ने ज्ञान के इस महान सागर को मात्र चार लाख मंत्रों में 18 पुराणों में विभक्त कर वैदिक सनातन धर्म की परम कल्याणमयी ज्ञाननिधि को जन-साधारण को सुलभ कराया।
इसी कारण से वेद व्यास जी की जयंती गुरु पूर्णिमा तथा गुरु पूजा के रूप में पूरे विश्व में भव्य स्तर पर मनाई जाती है। भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा लोक कल्याण के उद्देश्य से अर्जुन को कर्त्तव्य मार्ग का बोझ करवाने वाला तथा विश्व में सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला तथा अत्यंत पूजित ज्ञान ‘श्रीमद् भगवद् गीता’ महाभारत ग्रंथ में ही वर्णित है।
वेद व्यास जी की कृपा से ही आज संसार के लोगों को ‘श्रीमद् भगवद् गीता’ रूपी भगवान की अमृतवाणी सुलभ हुई है। व्यास जी की कृपा से दिव्य दृष्टि प्राप्त कर संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत के युद्ध का वृत्तांत सुनाया।
महर्षि वेद व्यास जी की कृपा से ही वैदिक सनातन धर्म की ज्ञान निधि सुरक्षित हुई। उन्होंने संसार में अद्वैतवाद की स्थापना की कि जीव मूल रूप से ईश्वर का सनातन अंश है। माया के तीन गुणों के कारण ही वह अपने आप को कर्ता समझता है तथा स्वयं को ईश्वर से पृथक मानता है। भगवान वेद व्यास जी द्वारा प्रतिपादित वेद ज्ञान की शुद्ध व्याख्या अद्वैतवाद को आदि शंकराचार्य जी ने आगे बढ़ाया। आदि शंकराचार्य को भगवान वेद व्यास जी ने स्वयं आकर मार्गदर्शन प्रदान किया। वेद व्यास जी स्वयं विष्णु रूप हैं तथा भगवान विष्णु जी ने वेद व्यास जी के रूप में अवतरित होकर महाभारत तथा पुराणादि ज्ञान के दीप को प्रज्वलित किया। वेदों के कठिन भाव को सरल रूप से रचने का जो लोक कल्याण का कार्य वेद व्यास जी ने किया, इसी कारण वे सृष्टि के समस्त विद्वानों के समक्ष अग्र पूज्य हैं। इसलिए विद्वान लोग, जिस आसन पर विराजमान होकर ज्ञान प्रदान करते हैं, उसे व्यास गद्दी के नाम से संबोधित किया जाता है। भगवान श्री कृष्ण स्वयं श्री गीता जी में कहते हैं ‘मुनीनामप्यहं व्यास:’। मुनियों में वेदव्यास मैं हूं।
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमं। देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जय मुदीरयेत।।
श्री नारायण एवं नरोत्तम नर तथा देवी सरस्वती और व्यास जी को नमस्कार करने के बाद ही महाभारत और पुराण आदि का श्रवण अथवा कथन करना चाहिए।
जयति पराशरस्सु: सत्यवती हृदयनन्दनो व्यास:। यस्यऽऽस्यकमलगलितं वाङ्गमयममृंत जगत्पिवति।।
सत्यवती के हृदय नंदन पराशर के पुत्र श्री व्यास जी की जय हो। जिनके मुख कमल से निकले अमृत का पान सारा संसार करता है।