Guru Pradosh: शुभ मुहूर्त के साथ पढ़ें कथा और महत्व

Thursday, Jul 02, 2020 - 10:04 AM (IST)

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हमारी संस्कृति में और शास्त्रों में गुरु प्रदोष व्रत का बहुत महत्व है । ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से कुंवारी लड़कियों को मनचाहा वर मिलता है और शादीशुदा दंपत्ति को पुत्र संतान की प्राप्ति होती है। पति की दीर्घायु और दांपत्य सुख के लिए भी महिलाएं खास तौर पर यह व्रत रखती हैं। आज 2 जुलाई, गुरुवार को प्रदोष व्रत है। उसके साथ-साथ आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी भी है और इस व्रत का मुहूर्त दोपहर 3:16 पर शुरू होकर 3 जुलाई को 1:16 पर समाप्त होगा। इस व्रत में भगवान शिव की पूजा सूर्यास्त से पौना घंटा पहले और सूर्यास्त के पौना घंटा बाद तक भी की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से दांपत्य जीवन में आ रही समस्याओं का भी निवारण होता है । यह व्रत गुरुवार को पड़ने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत भी कहते हैं।

ऐसी मान्यता है कि विधिपूर्वक यह व्रत रखने से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में आने वाली बाधाएं भी समाप्त होती हैं। इस व्रत के पीछे एक कथा भी प्रचलित है। 

इस पौराणिक कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृतासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। उस समय देवताओं ने दैत्य सेना को बुरी तरह पराजित किया। जिससे वृत्रासुर अत्यंत क्रोधित होकर स्वयं युद्ध के लिए उद्यत हो गया। उसने आसुरी माया से विकराल रूप धारण कर लिया और देवताओं को ललकारा। भयभीत होकर देवता बृहस्पति देव की शरण में पहुंचे। तब बृहस्पति ने वृत्रासुर की पृष्ठभूमि से परिचित करवाते हुए देवताओं को बताया कि पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था और बहुत बड़ा तपस्वी और कर्म निष्ठ था । उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था।

एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत शिव दर्शन को चला गया और वहां जब उसने भगवान शिव के वाम अंग में माता पर्वती को विराजमान देखा तो राज तुल्य अहंकार में आकर उसने उपहास उड़ाते हुए कहा, "धरती लोक पर तो हम माया मोह में फंसे होने के कारण स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं लेकिन आप तो देवलोक में भी स्त्री मोह नहीं त्याग पा रहे।" 

चित्ररथ के मुख से यह बात सुनकर भगवान शिव तो मुस्कुराते रहे लेकिन माता पार्वती ने क्रोध में आकर उन्हें शाप देते हुए कहा, " तू अब दैत्य रूप धारण करके धरती पर रहेगा।"  

देव गुरु बृहस्पति ने देवताओं को कहा कि इस दैत्य को भगवान शिव के प्रदोष व्रत के जरिए ही खत्म किया जा सकता है। तब इंद्र ने यह व्रत किया और वृतासुर पर विजय प्राप्त की।

ऐसी मान्यता भी है कि इस व्रत को करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उनका हमेशा आशीर्वाद बना रहता है। कई जगहों पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्त्री पुरुष दोनों ही यह व्रत करते हैं। 

गुरमीत बेदी
gurmitbedi@gmail.com

Niyati Bhandari

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