ज़िंदगी के असली मकसद को पूरा करती है गुरु नानक साहिब की ये सीख

Sunday, Jan 08, 2023 - 04:57 AM (IST)

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Guru Nanak dev ji teachings: गुरु नानक देव जी के आगमन के समय संसार विचित्र दौर से गुजर रहा था। अज्ञानी वैद्य चारों ओर भरे हुए थे। लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे। कोई निदान नहीं था। कोई उस (अंतर अवस्था) तक नहीं पहुंच पा रहा था, जिसके कारण (दुख) दर्द था। श्री गुरु नानक साहिब ने कहा कि पहले तो मनुष्य और समाज के रोग की पहचान हो। उसके बाद उसका सटीक निदान भी ढूंढ लिया जाए। बिना रोग पहचाने उपचार करने का कोई अर्थ नहीं था। गुरु साहिब ने रोग की पहचान समाज की अज्ञानता के रूप में की।

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उनके विचार में अज्ञान सबसे बड़ा अंधकार था। इस घोर अंधकार में मनुष्य न स्वयं को देख पा रहा था, न परमात्मा को जिसके पास शक्ति थी वह मनमानी पर उतारू था। गुरु साहिब का आगमन ऐसे अंधकार को दूर करने वाले प्रकाश की तरह था :
सतिगुरु नानकु प्रगटिआ
मिटी धुंधु जगि चानणु होआ।
जिउ करि सूरजु निकलिआ
तारे छपि अंधेरु पलोआ।


श्री गुरु नानक साहिब जिस ज्ञान के प्रसार के लिए आए, उसने अज्ञान के अंधेरे को इस तरह दूर किया जैसे जब आकाश में सूरज निकलता है तो तारे आलोप हो जाते हैं और अंधकार दौड़ जाता है। भाई गुरदास जी ने इसे स्पष्ट करते हुए आगे कहा कि श्री गुरु नानक देव जी जहां-जहां भी गए वहां लोग उनके अनुयायी बन गए, उनके विचारों को धारण करने लगे। घर-घर में धर्म का प्रकाश फैल गया और लोग परमात्मा के यश का गायन करने में रम गए। यह शायद संसार का सबसे कठिन कार्य था जिसका संकल्प लेकर गुरु साहिब इस धरती पर आए थे।

महापुरुषों का जीवन सामान्य मनुष्यों के लिए सदैव प्रेरणादायक और मार्गदर्शक होता है। उनके जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग घटित होते हैं जो जीवन के गहरे अर्थों को उद्घाटित करके सामान्य मनुष्यों को जीने की सही समझ प्रदान कर जाते हैं।

महान आध्यात्मिक चिंतक, समाज-सुधारक, नवधर्म-प्रणेता प्रथम पातशाह श्री गुरु नानक देव जी का जीवन-पथ भी ऐसे अनगिनत प्रसंगों से ओत-प्रोत है जो मानव-मात्र को सहज जीवन-युक्तियां सिखाते हैं।



व्यापार के लिए मिले बीस रुपयों से साधु-संतों को भोजन करा देने वाला सच्चा सौदा-प्रसंग, भाई लालो जी की परिश्रम से कमाई सूखी रोटी का स्वीकार तथा मलिक भागो के शोषण से बनाए पकवानों का तिरस्कार, संतोष का सबक और मक्का में ‘ईश्वर किस दिशा में नहीं है’ की स्थापना करने जैसे अनेक प्रसंग तो गुरु जी के विषय में प्रसिद्ध हैं ही, परंतु जन्म-साखियों में कुछ ऐसे अल्प-ज्ञात प्रसंग भी दर्ज हैं जो गुरु जी के जीवन को मानवता के प्रकाश-स्तंभ के रूप में स्थापित करते हैं।

सच्चे मन से स्मरण
श्री गुरु नानक देव जी सुलतानपुर लोधी में नवाब दौलत खां के मोदीखाने के संचालक थे। नवाब को पता चला कि गुरु जी कहते हैं-‘‘न को हिंदू न मुसलमान।’’ नवाब ने गुरु जी को बुलाकर इस बाबत पूछताछ की तो गुरु जी बोले-‘‘सभी एक ही ईश्वर की संतान है।’’

नवाब ने कहा ऐसा है तो चलो हमारे साथ नमाज पढ़ो। गुरु जी उसके साथ चले गए, परंतु पंक्ति से अलग खड़े होकर नवाब और काजी को नमाज पढ़ते देखते रहे।

नमाज के बाद नवाब ने नाराजगी से पूछा ‘‘आपने नमाज क्यों नहीं पढ़ी?’’ तो गुरु जी ने कहा कि ‘‘मैं किसके साथ नमाज पढ़ता? आपका ध्यान तो काबुल में घोड़े खरीदने-बेचने में था। सच्चे मन से स्मरण किए बिना कोई इबादत स्वीकार नहीं होती।’’ नवाब निरुत्तर रह गया।



आत्मिक शुद्धि अनिवार्य
अपनी धार्मिक यात्राओं के दौरान एक बार गुरु जी प्रयाग में त्रिवेणी के निकट विराजमान थे। वहां बहुत-सी जनता दर्शनों के लिए आ पहुंची। संगत ने गुरु जी से प्रश्र किया कि हम पूजा-पाठ तो बहुत करते हैं परंतु न तो उसकी असर होता है और न उसमें रस ही आता है। इस पर गुरु जी ने समझाया कि काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को त्यागोगे तभी वास्तविक आनंद प्राप्त होगा।

राज में त्याग का उपदेश
बनारस के निकट स्थित नगर चंदरौली का राजा हरिनाथ गुरु जी से प्रभावित होकर राज्य त्याग कर संन्यास लेने के लिए प्रस्तुत हुआ तो गुरु जी ने उपदेश दिया कि प्रजा की सेवा करो, राज में ही योग के फल की प्राप्ति होगी।



बांट कर खाओ
गुरु जी का कथन था कि बांट कर खाओ।

रामेश्वरम के निकट कुछ योगियों ने इस पर शंका प्रकट की और गुरु जी को एक तिल देकर कहा कि इसे कैसे बांट कर खाया जा सकता है? गुरु जी ने तिल को सिलबट्टे पर पीस कर सभी को बांट दिया। यह देख कर योगियों ने भक्ति-भाव से गुरु जी को प्रणाम किया।

एक पैसे का सच-एक पैसे का झूठ यात्राओं के दौरान एक बार गुरु जी स्यालकोट नगर में पहुंचे तो भाई मरदाना जी ने गुरु जी से जीवन का सत्य समझाने की प्रार्थना की।

गुरु जी ने भाई मरदाना जी को शहर में भाई मूला के पास भेजा और कहा कि एक पैसे का सच और एक पैसे का झूठ लेकर आओ। भाई मूला ने कागज के टुकड़े पर लिख दिया ‘मरना सच’ और ‘जीना झूठ’। गुरु जी ने भाई मरदाना जी को समझाया- यही है जीवन का सच।

गृहस्थ का गौरव
श्री गुरु नानक देव जी जब पेशावर के निकट गोरख हटड़ी में पहुंचे तो योगियों ने पूछा, ‘‘आप उदासी हो या गृहस्थी?’’

गुरु जी ने उत्तर दिया, ‘‘मैं गृहस्थी हूं।’’

योगियों ने कहा कि , ‘‘जैसे नशेड़ी व्यक्ति प्रभु का ध्यान नहीं कर सकता उसी प्रकार माया में फंसा गृहस्थी भी ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।’’

गुरु जी ने उत्तर दिया कि ‘‘ईश्वर सद्गुणों से प्राप्त होता है। गृहस्थी या संन्यासी जो सद्गुण धारण करेगा वही ईश्वर को प्राप्त कर सकेगा।’’

इस प्रकार श्री गुरु नानक देव जी के जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो मनुष्य को जीने की सही राह दिखाते हैं।

Niyati Bhandari

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