आज रात या कल सुबह 9 बजे तक जपें ये मंत्र, किसी को भी कर सकते हैं वश में

Wednesday, Jul 10, 2019 - 06:57 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (VIDEO)
गुप्त नवरात्रि में नौवें नंबर पर आती है मां मातंगी। बता दें इन्हें शिव जी की अर्धांगिनी के रूप में पूजा जाता है। वो इसलिए क्योंकि शिव जी को मतंग कहा जाता है, इन्हीं के नाम से देवी को मातंगी के रूप में पूजा जाता है। शास्त्रों में दस महाविद्याओं में से नौवीं देवी मातंगी को उत्कृष्ट तंत्र ज्ञान से सम्पन्न, कला और संगीत पर महारत प्राप्त करने वाली माता कहा गया है।

मान्यताओं के अनुसार इन्हें उच्छिष्ट चांडालिनी व महा-पिशाचिनी, उछिष्ट साम मोहिनी, लघु श्यामा, राज मातंगी, वैश्य मातंगी, चण्ड मातंगी, कर्ण मातंगी, सुमुखि मातंगी, षडाम्नायसाध्य इत्यादि के नाम से भी जाना जाता हैं। शास्त्रों में रति, प्रीति, मनोभाव, क्रिया, शुधा, अनंग कुसुम, अनंग मदन तथा मदन लसा देवी मातंगी की आठ शक्तियां बताई गई हैं।

आइए जानें इनकी साधना विधि व पूजन मंत्र-
देवी मातंगी की साधना रात्रिकालीन है, इसलिए इसे रात को 9 बजे के बाद ही शुरू करना चाहिए। सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहिनकर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठ जाएं और अपने सामने लाल वस्त्र बिछा लें और साधना में मां मातंगी का चित्र, यंत्र और लाल मूंगा माला का प्रयोग करे परंतु सामग्री उपलब्ध न हो तो किसी ताबे की प्लेट मे स्वास्तिक बनाकर और उस पर एक सुपारी स्थापित कर दें और उसे ही यंत्र मानकर सच्चे मन से इसकी पूजा करें।  
मंत्र जाप के लिए स्फटिक माला, लाल हकीक माला, मूंगा माला, रुद्राक्ष माला में से किसी भी माला का उपयोग हो सकता है।

ध्यान मंत्र-
ॐ श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्बिभ्रतीं,
पाशं खेटमथांकुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम्।
रत्नालंकरणप्रभोज्ज्वलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां,
मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धिप्रदाम्।।

बीज मंत्र-
ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा

कवच स्तोत्र-
ॐ शिरो मातंगिनी पातु भुवनेशी तु चक्षुषी।
तोडला कर्ण युगलं त्रिपुरा वदनं मम।।३।।

पातु कण्ठे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा।
त्रिपुष्पा पार्श्वयोः पातु गुदे कामेश्वरी मम।।४।।

ऊरुद्वये तथा चण्डी जंघयोश्च हरप्रिया।
महामाया पादयुग्मे सर्वांगेषु कुलेश्वरी।।५।।

अंगं प्रत्यंगकं चैव सदा रक्षतु वैष्णवी।
ब्रह्मरन्ध्रे सदा रक्षेन्मातंगीनामसंस्थिता।।६।।

रक्षेन्नित्यं ललाटे सा महापिशाचिनीति च।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेद्देवी रक्षतु नासिकाम्।।७।।

महापिशाचिनीं पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा।
लज्जा रक्षतु मां दन्ताञ्चोष्ठौ सम्मार्जनीकरा।।८।।

चिबुके कण्ठदेशे च ठकारत्रितयं पुनः।
स-विसर्गं महादेवि! हृदयं पातु सर्वदा।।९।।

नाभिं रक्षतु मां लोला कालिकावतु लोचने।
उदरे पातु चामुण्डा लिंगे कात्यायनी तथा।।१०।।

उग्रतारा गुदे पातु पादौ रक्षतु चाम्बिका।
भुजौ रक्षतु शर्वाणीं हृदयं चण्डभूषणा।।११।।

जिह्वायां मातृका रक्षेत्पूर्वे रक्षतु पुष्टिका।
विजया दक्षिणे पातु मेधा रक्षतु वारुणे।।१२।।

नैर्ऋत्यां सुदया रक्षेद्वायव्यां पातु लक्ष्मणा।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी मातंगी शुभकारिणी।।१३।।

रक्षेत्सुरेशी चाग्नेये बगला पातु चोत्तरे।
ऊर्घ्वं पातु महादेवि देवानां हितकारिणी।।१४।।

पाताले पातु मां नित्यं वशिनी विश्वरूपिणी।
प्रणवं च ततो माया कामबीजं च कूर्चकं।।१५।।

मातंगिनी ङेयुतास्त्रं वह्निजाया वधिर्मनुः।
सार्द्धैकादशवर्णा सा सर्वत्र पातु मां सदा।।१६।।

Jyoti

Advertising