ईश्वर ही होता है सबका सच्चा साथी, पढ़े ये प्रसंग

Tuesday, Jan 07, 2020 - 04:29 PM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
बड़ौदा नरेश, अरविंद घोष की प्रतिभा से काफी प्रभावित थे। उन्होंने उन्हें अपनी रियासत में शिक्षा शास्त्री बनाया था। ईश्वर और इंसानियत में घोष बाबू की शुरू से ही श्रद्धा थी। वह किसी को भी संदेह की दृष्टि से देखना नहीं जानते थे। उनकी सोच थी कि सभी मनुष्य परमात्मा का प्रतिरूप हैं, तब वे बुरे कैसे हो सकते हैं? उन्हें जो वेतन मिलता था, उसे अपने कमरे में लिखने-पढ़ने वाली मेज पर रख दिया करते थे। 

वेतन को उन्होंने न कभी छुपाकर रखा और न ही कोई ताला लगाया। अरविंद घोष कोई हिसाब-किताब नहीं रखते थे और न किसी से रुपए-पैसों के बारे में पूछते। एक बार उनके एक मित्र ने उनसे कहा, ''आपके वेतन का पैसा है, खुला ही रख देते हैं। कितने ही कर्मचारी और मिलने-जुलने वाले आते-जाते रहते हैं। यह तो ठीक व्यवस्था नहीं है। इस पर अरविंद घोष बोले, ''क्यों ठीक नहीं है? आपको शंका है कि कोई व्यक्ति रुपए ले जा सकता है? मित्र बोले,' हां, यही बात है। अगर कोई ले भी जाता है या ले गया हो तो आप न तो रुपए का हिसाब रखते हैं, न ही गिनते हैं। इसलिए आपको क्या पता चलेगा?

अरविंद घोष ने अपने स्वभावानुसार कहा, ''भाई, रुपयों-पैसों की गिनती तो मैं करता नहीं और करके करूंगा भी क्या? मुझे जितनी जरूरत होती है, उसकी पूर्ति होती रहती है। दोनों समय भरपेट भोजन मिल जाता है। ईश्वर उसकी व्यवस्था कर देता है। तो मैं समझता हूं कि सबका सच्चा व्यवस्थापक तो ईश्वर ही है। मैं ईश्वर के प्रतिरूप मनुष्यों के बीच में रहता हूं। फिर मैं किसी पर अविश्वास क्यों करूं? इसी विचारधारा के धनी अरविंद घोष जगप्रसिद्ध दार्शनिक और संन्यासी के रूप में विख्यात हुए।

Lata

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