मानो या न मानो: ईश्वर एक है, अनेक नहीं

Monday, Dec 30, 2019 - 09:42 AM (IST)

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ईश्वर एक है, अनेक नहीं- वेद और वेदानुकूल सभी ग्रंथों में ऐसा ही लिखा है। एक ईश्वर ही अनेक नामों से पुकारा जाता है। प्रत्येक नाम उसके किसी न किसी गुण को प्रकट करता है जैसे- 
ब्रह्म : सबसे बड़ा 
ब्रह्मा : सब जगत् को बनाने वाला।
शिव : कल्याण स्वरूप और कल्याण करने वाला।
विष्णु : चर और अचर सब जगत-में व्यापक।
रूद्र : दुष्ट कर्म करने वालों को दंड देकर रुलाने वाला।
गणेश : सब का स्वामी और पालन करने वाला।
पिता : सब का पालन और रक्षा करने वाला।
देव : विद्वान और विद्या आदि देने वाला।
यम : सब प्राणियों को न्यायपूर्वक यथायोग्य कर्मफल देने वाला।
भगवान : ऐश्वर्यवान।
चंद्र : आनंद स्वरूप और सबको आनंद देने वाला।

ओउम् : यह शब्द तीन अक्षरों अ, उ, म् से बना है। अ+उ=ओ। ओ और म् के बीच में लिखा है ‘‘३’’। ओम् के उच्चारण को लम्बा करने का निर्देश देता है।
अ = विराट्, अग्नि, विश्व आदि।
उ = हिरण्य गर्भ, वायु, तैजस आदि।
म् = ईश्वर, आदित्य, प्राज्ञ आदि।
विराट = जो बहुत प्रकार के जगत-को प्रकाशित करे।
अग्नि = ज्ञान स्वरूप सर्वज्ञ।

विश्व : जो आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु में प्रविष्ट हुआ है।

हिरण्य गर्भ : जो सूर्य आदि तेज वाले पदार्थ का उत्पत्ति तथा निवास स्थान है।

वायु = जो सब चराचर जगत का धारण, जीवन और प्रलय करता है। 
तेजस = जो स्वयं प्रकाश स्वरूप तथा सूर्य आदि तेजस्वी लोकों का प्रकाश करने वाला है।
ईश्वर = सामर्थ्यवान।
आदित्य = जिसका विनाश कभी न हो।
प्राज्ञ = जो सब चराचर जगत के व्यवहार को यथावत जानता है।

ईश्वर के सब नामों में ‘ओम्’ सर्वोत्तम नाम है क्योंकि इससे उसके सबसे अधिक गुण प्रकट होते हैं। यही ईश्वर का प्रधान और निज नाम है। अन्य सभी नाम गौण हैं। ओ३म् एवं ब्रह्म। (वाजुर्वेद 40, 18)

अर्थ : आकाश के समान व्यापक, सबसे बड़ा सब जगत का रक्षक ओ३म् है। ओ३म्क्रतोस्मर। (यजुर्वेद)


अर्थ : ऐ कर्मशील मनुष्य! ओ३म् को याद रख।

ओम् इतिद् अक्षरम् उद्गीथम् उपासीत:। छान्दग्यो-पनिषद्।
अर्थ :
ओम् जिसका नाम है और जो कभी नष्ट नहीं होता, उसी की उपासना करनी योग्य है, और किसी की नहीं।

ओम् इति एतद् अक्षरम् इदम् सर्व तस्य उपव्याख्यानम्।     (मांडूक्योपनिषद्) 
अर्थ : वेदादि सब शास्त्रों में परमेश्वर का प्रधान और निज नाम ‘ओम्’ को कहा गया है।

सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद् वदन्ति। यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्य चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीमी ओम् इति एतत्।।    (कठोयनिषद्)
अर्थ :
सारे वेद जिस पद का वर्णन करते हैं, जिसे जानने के लिए सब तप किए जाते हैं, जिसकी चाहना में यति लोग ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं,वह पद संक्षेप में तुझे बताता हूं, वह पद ‘ओम्’ है।

इन मंत्रों से स्पष्ट सिद्ध होता है कि ईश्वर का मुख्य और निज नाम ‘ओ३म्’ है। अन्य नामों को छोड़ कर ‘ओ३म्’ की ही उपासना करनी चाहिए।      
(‘आर्य मान्यताएं’ पुस्तक से साभार)    

Niyati Bhandari

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