Geeta saar: आज से ही मानना शुरू करें श्री कृष्ण की ये बात, जीवन में जागेगा नया जोश

punjabkesari.in Friday, Apr 18, 2025 - 04:04 PM (IST)

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Bhagwat geeta saar: भगवान श्री कृष्ण की अमृत वाणी गीता ज्ञान में द्वारिकाधीश ने अपने प्रिय सखा अजुर्न को जीवन के जटिल प्रश्नों के उत्तर समझाएं हैं।  सुखी, शांत और संतुष्ट जीवन जीने के लिए आज भी श्री गीता जी के सही मार्गदर्शन को अपनाया जा सकता है। ये दुनिया का सबसे प्रैक्टिकल ग्रंथ है। विश्व में लगभग हर ग्रंथ की नींदा हुई है लेकिन श्री गीता जी एक मेनुयल की भांति जीवन जीने की कला सिखाती हैं। व्यक्ति का मन आंतरिक संग्राम के लिए महाभारत का कुरुक्षेत्र है। जहां हर क्षण संग्राम जारी रहता है, अत: हम सबको वह ज्योति, ज्ञान तथा सन्मति प्राप्त करनी चाहिए, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को दिया है। जीवन के मुख्य तत्वों का वर्णन करते हुए परमात्मा श्रीकृष्ण ने सम्पूर्ण जगत की समस्याओं का वर्णन किया है, जो सार्वभौमिक है। 

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इस संसार में मनुष्य जीवन व्यतीत करने के 2 ही मार्ग हैं- एक है ज्ञान मार्ग और दूसरा मोहमाया का मार्ग। मनुष्य तो अपने मन का दास है जैसे वह कहता है उसके पांव वैसे ही चलते जाते हैं। यह उसका भ्रम है कि वह स्वयं चल रहा है। कुछ मनुष्य अपना जीवन ज्ञान के साथ व्यतीत करते हैं। वे सांसारिक कार्य करते हुए भी धन और मित्र के संग्रह में लोभ नहीं करते। जितना धन मिल गया उसी में संतुष्ट हो जाते हैं पर कुछ लोगों के लालच और लोभ का अंत ही नहीं है। वे धन से कभी संतुष्ट नहीं होते हैं और मोह माया के मार्ग पर चलते जाते हैं। ऐसे लोगों का पीछा परेशानियां कभी नहीं छोड़ती। 

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Geeta saar गीता सार- जब भी हों परेशान तो पढ़ें श्री कृष्ण की ये सीख होगा आप में एक नई ऊर्जा और जोश का संचार
क्यों व्यर्थ चिंता करते हो ? किससे व्यर्थ डरते हो ? कौन तुम्हें मार सकता है ? आत्मा न पैदा होती है, न मरती है।

जो हुआ, वह अच्छा हुआ। जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है। जो होगा वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिंता न करो। वर्तमान चल रहा है।

तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो ? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया ? तुमने क्या पैदा किया था, जो नष्ट हो गया ? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया। खाली हाथ आए, खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझकर मग्न हो रहे हो। बस, यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखों का कारण है।

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परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो, विचार से हटा दो। फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम इस शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा परंतु आत्मा स्थिर है, फिर तुम क्या हो?

तुम अपने आप को भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को अपनाता है वह चिंता, शोक से सर्वदा मुक्त है।

जो कुछ भी तुम करते हो, उसे भगवान को अर्पण करते चलो। ऐसा करने से तुम सदा जीवन-मुक्ति का आनंद अनुभव करोगे।

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Content Writer

Niyati Bhandari

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