गीता जयंती 2019: दुनिया को मुट्ठी में करना चाहते हैं तो श्री कृष्ण की इस सीख को पल्ले बांध लें

Sunday, Dec 01, 2019 - 11:48 AM (IST)

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
दिसंबर माह की 8 तारीख़ को श्रीमद्धभगवत गीता जयंती मनाई जाएगी। पुराणों में वर्णन के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण के श्रीमुख से गीता का जन्म हुआ था। अर्थात इस दिन उन्होंने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। हिंदू धर्म का सबसे प्रमुख ग्रंथ कहे जाने वाले ग्रंथ श्रीमद्धभगवत में समस्त वेदों का सार-सार समाहित है। कहा जाता है जिस व्यक्ति को अपने जीवन में सच्ची सफलता की कामना हो उसे रोज़ श्रीमदभगवत गीता के सूत्रों का पाठ अवश्य करना चाहिए। मान्यता है इसके प्रभाव से अर्जुन को महाभारत युद्ध में महाविजय प्राप्त हुई थी ठीक उसी आप भी इन सूत्रों को अपनाकर अपने जीवन जैसी सफलता की कामना करेंगे आपको प्राप्त होगी।

आइए जानते हैं क्या है ये सूत्र-
श्रीमद्धभगवत गीता में श्री कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति जो चाहे बन सकता है अगर वह पूरे विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर ध्यान लगातार चिंतन करे।

प्रत्येक जन्म लेने वाले व्यक्ति के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना। इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।

श्री कृष्ण कहते हैं कर्म मुझे बांधता नहीं क्योंकि मुझे कर्म के प्रतिफल की कोई इच्छा नहीं।

जो व्यक्तिक अपने मन को नियंत्रित नहीं करत सकता, उसके लिए उसका शत्रु के समान कार्य करता है।

इन्द्रियां शरीर से श्रेष्ठ कही जाती हैं। इन्द्रियों से परे मन है और मन से परे बुद्धि है तथा आत्मा बुद्धि से भी अत्यंत श्रेष्ठ है। इसलिए हमेशा आत्मा की सुनें।

श्री कृष्ण कहते हैं मैं धरती की मधुर सुगंध हूं, मैं अग्नि की ऊष्मा हूं सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूं।

जो वयक्ति कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य देखता है वह ही एक बुद्धिमान व्यक्ति कहलाता है। अपने अनिवार्य कार्य करो क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
गीता का ज्ञान देते हुए श्री कृष्ण कहते हैं जब मनुष्य सत्त्वगुण की वृद्धि में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब वो उत्तम कर्म करने वालों के निर्मल दिव्य स्वर्गादि लोकों को प्राप्त होता हैं।

सन्निहित आत्मा का अस्तित्व अविनाशी और अनन्त हैं, केवल भौतिक शरीर तथ्यात्मक रूप से खराब हैं, इसलिए डटे रहो।

किसी और का काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि अपना काम करें भले ही उसे अपूर्णता से करना पड़े।

श्री कृष्ण कहते हैं मैं एकादश रुद्रों में शंकर हूं और यक्ष तथा राक्षसों में धन का स्वामी कुबेर हूं। मैं आठ वसुओं में अग्नि हूं और शिखरवाले पर्वतों में सुमेरु पर्वत हूं।

कोई ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम,या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे न ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाए।

प्रत्येक व्यक्ति को ये समझना होगा कि तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो ? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया ? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया ? क्योंकि न तुम कुछ लेकर आये, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया, जो लिया, इसी भगवान से लिया, जो दिया, इसी को दिया।

चिंता से दुःख उत्पन्न होते हैं किसी अन्य कारण से नहीं,  ये जानने वाला, चिंता से रहित होकर सुखी, शांत और सभी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है।

Jyoti

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