Budha Gyan: वचन और कर्म में रहें संयत

Wednesday, Sep 15, 2021 - 02:02 PM (IST)

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एक बार भगवान बुद्ध भिक्षा के लिए एक किसान के यहां पहुंचे। तथागत को भिक्षा के लिए आया देखकर किसान उपेक्षा से बोला श्रमण मैं हल जोतता हूं और तब खाता हूं, तुम्हें भी हल जोतना और बीज बोना चाहिए और तब खाना खाना चाहिए।

बुद्ध ने कहा महाराज मैं भी खेती ही करता हूं, इस पर किसान को जिज्ञासा हुई बोले, गौतम मैं न तुम्हारा हल देखता हूं न बैल और न ही खेती के स्थल। तब आप कैसे कहते हैं कि आप भी खेती ही करते हैं। आप कृपया अपनी खेती के संबंध में समझाएं।

बुद्ध ने कहा, ‘‘महाराज मेरे पास श्रद्धा का बीज, तपस्या रूपी वर्षा, प्रजा रूपी जोत और हल है, पापभीरूता का दंड है, विचार रूपी रस्सी है, स्मृति और जागरूकता रूपी हल की फाल और पेनी है, मैं वचन और कर्म में संयत रहता हूं।

मैं अपनी इस खेती को बेकार घास से मुक्त रखता हूं और आनंद की फसल काट लेने तक प्रयत्नशील रहने वाला हूं, अप्रमाद मेरा बैल है जो बाधाएं देखकर भी पीछे मुंह नहीं मोड़ता है, वह मुझे सीधा शांति धाम तक ले जाता है। इस प्रकार मैं अमृत की खेती करता हूं।’’

Jyoti

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